Sep 7, 2018

अव्यवस्था

देखो -
मेरे मन के ड्राअर में
तुम्हारी स्मृति के पृष्ठ,
कुछ बिखर से गये हैं !
समय के हाथों से
कुछ छितर से गये हैं !
आओ -
तनिक इन्हें सँवार दो,
तनिक सा दुलार दो,
और फिर जतन से सहेज कर -
अपने विश्वास के आलपिन में बद्ध कर,
प्यार के पेपरवेट से
तनिक सा दबा दो !

---ममता कालिया

Sep 5, 2018

कवि

निकलता है
पानी की चिन्ता में
लौटता है लेकर समुन्दर अछोर

ठौर की तलाश में
निकलता है
लौटता है हाथों पर धारे वसुन्धरा

सब्जियाँ खरीदने
निकलता है
लौटता है लेकर भरा-पूरा चांद

अंडे लाने को
निकलता है
लौटता है कंधों पर लादे ब्रह्मांड

हत्यारी नगरी में
निकलेगा इसी तरह किसी रोज़
तो लौट नहीं पाएगा!

--राकेश रंजन

Aug 16, 2018

व्याख्या

एक दिन कहा गया था
दुनिया की व्याख्या बहुत हो चुकी
ज़रूरत उसे बदलने की है
तब से लगातार
बदला जा रहा है
दुनिया को
बदली है अपने-आप भी
पर क्या अब यह नहीं लगता
कि और बदलने से पहले
कुछ
व्याख्या की ज़रूरत है ?

--- नेमिचंद्र जैन