देवे कुर्वति दुर्दिनव्यतिकरं नास्त्येव तन्मन्दिरं
यत्राहारगवेषणाय बहुशो नासीद् गता वायसी ।
किन्तु प्राप न किञ्चन क्वचिदपि प्रस्वापहेतोस्तथा
प्युद्भिन्नार्भकचञ्चुषु भ्रमयति स्वं रिक्त-चञ्चुपुटम् ।।
अर्थात्
कैसा दुर्दिन दिखाया देव ने
पानी बरसता ही रहा लगातार
कोई घर नहीं था जहाँ न गई हो कौवी
दाना खोजने के लिये.
पर कहीं से कुछ न पा सकी.
चोंचें खोले हुए चूजों को सुलाने के लिये अब वह
घुमा रही है अपनी खाली चोंच
उनकी चोंचों में.
--- अज्ञात (संस्कृत कविता की लोकधर्मी परम्परा)
अनुवाद - डा राधावल्लभ त्रिपाठी
Jan 16, 2019
Dec 12, 2018
Ever Alive
My beloved homeland
No matter how long the millstone
Of pain and agony churns you
In the wilderness of tyranny,
They will never be able
To pluck your eyes
Or kill your hopes and dreams
Or crucify your will to rise
Or steel the smiles of our children
Or destroy and burn,
Because out from our deep sorrows,
Out from the freshness of our spilled blood
Out from the quivering of life and death
Life will be reborn in you again………
---Fadwa Tuqan
No matter how long the millstone
Of pain and agony churns you
In the wilderness of tyranny,
They will never be able
To pluck your eyes
Or kill your hopes and dreams
Or crucify your will to rise
Or steel the smiles of our children
Or destroy and burn,
Because out from our deep sorrows,
Out from the freshness of our spilled blood
Out from the quivering of life and death
Life will be reborn in you again………
---Fadwa Tuqan
Dec 6, 2018
यातना देने के काम आती है देह
देह प्रेम के काम आती है.
वह यातना देने और सहने के काम आती है.
देह है तो राज्य और धर्म को दंड देने में सुविधा होती है
पीटने में जला देने में
आत्मा को तबाह करने के लिए कई बार
देह को अधीन बनाया जाता है
बाज़ार भी करता है यह काम
वह देह को इतना सजा देता है कि
उसे सामान बना देता है
बहुत दुःख की तुलना में
बहुत सुख से खत्म होती है आत्मा
---देवी प्रसाद मिश्र
वह यातना देने और सहने के काम आती है.
देह है तो राज्य और धर्म को दंड देने में सुविधा होती है
पीटने में जला देने में
आत्मा को तबाह करने के लिए कई बार
देह को अधीन बनाया जाता है
बाज़ार भी करता है यह काम
वह देह को इतना सजा देता है कि
उसे सामान बना देता है
बहुत दुःख की तुलना में
बहुत सुख से खत्म होती है आत्मा
---देवी प्रसाद मिश्र
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