जैसा कि चलन चला आया है
भोलू चुराता है परायी दौलत और गोलू विरोध नहीं करता
इसका मतलब है कि भोलू और गोलू रिश्तेदार हैं
या एक ही जाति के हैं
या एक ही संप्रदाय के
या एक ही पार्टी के
यह चलन चला आया है
जैसा कि सामने दिख रहा है
यह चलन भी खूब है कि राजनेता चुरा ले जाते हैं देश
दलाल अर्थव्यवस्था चुरा ले जाते हैं
नानाविध हीरोइनें चुरा ले जाती हैं स्त्री की औक़ात
धर्म के रक्षक धर्म चुरा ले जाते हैं
कोई चीनी चुराता है कोई तेल
कोई तेल और चीनी वाली धरती के सपने चुरा ले जाता है
लेकिन, भोलू और गोलू चुप रहते हैं
क्यों नहीं कहा जा सकता
कि अपने इस प्रजातंत्र में ऐसा चलन है कि दवाइयां तहख़ानों में क़ैद हैं
और रोग तय करते हैं आदमी का भविष्य
यह चलन भी देखिए
भोलू गोलू चुप रहते हैं
तो मतलब है कि वे भी चोरों से कमीशन खाते हैं
या खाने की ललक रखते हैं
या चाहते हैं कि यह ललक पैदा हो उनमें
यही एकतरफा निर्णय क्यों
कि झेल लें वे थोड़ा तनाव
तो शुरू हो विद्रोह
या चुप हैं भोलू गोलू
तो समझो तूफान आने वाला है
यही एकतरफा निर्णय क्यों?
कवि जिसे बता रहे हैं अनर्थ महाअनर्थ
भोलू गोलू उसी में ढूंढ रहे हैं अपना भविष्य
आप मुझे बताइए
यह जो चलन है
भोलू गोलू का चुप रहना
भारतीय दंड संहिता की किस धारा के अंतर्गत जुर्म है?
या संविधान के किस विधान के अनुसार यह है राष्ट्रसेवा
जिसके लिए मिलना चाहिए उन्हें पुरस्कार!
आप मुझे बताइए!!
--- तारानंद वियोगी ( Translated by Avinash Das)
May 30, 2019
May 23, 2019
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था'
"हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे"
~ विनोद कुमार शुक्ल
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे"
~ विनोद कुमार शुक्ल
देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता
यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।
---सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।
---सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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