जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे हरित क्रांति निर्माता
जय गेहूँ हथियार प्रदाता
जय हे भारत भाग्य विधाता
अंग्रेजी के गायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय समाजवादी रंगवाली
जय हे शांतिसंधि विकराली
जय हे टैंक महाबलशाली
प्रभुता के परिचायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे जमींदार पूँजीपति
जय दलाल शोषण में सन्मति
जय हे लोकतंत्र की दुर्गति
भ्रष्टाचार विधायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
जय पाखंड और बर्बरता
जय तानाशाही सुंदरता
जय हे दमन भूख निर्भरता
सकल अमंगलदायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
--- गोरख पाण्डेय
Aug 15, 2019
Aug 10, 2019
जिहाल-ए-मिस्कीं
जिहाल-ए-मिस्कीं मुकों बा-रंजिश, बहार-ए-हिजरा बेचारा दिल है,
सुनाई देती हैं जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।
वो आके पेहलू में ऐसे बैठे, के शाम रंगीन हो गयी हैं,
ज़रा ज़रा सी खिली तबियत, ज़रा सी ग़मगीन हो गयी हैं।
कभी कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घूंघट उतर रहा है,
तुम्हारे सीने से उठता धुवा हमारे दिल से गुज़र रहा है।
ये शर्म है या हया है, क्या है, नज़र उठाते ही झुक गयी है,
तुम्हारी पलकों से गिरती शबनम हमारी आंखों में रुक् गयी है।
--- गुलज़ार
सुनाई देती हैं जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।
वो आके पेहलू में ऐसे बैठे, के शाम रंगीन हो गयी हैं,
ज़रा ज़रा सी खिली तबियत, ज़रा सी ग़मगीन हो गयी हैं।
कभी कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घूंघट उतर रहा है,
तुम्हारे सीने से उठता धुवा हमारे दिल से गुज़र रहा है।
ये शर्म है या हया है, क्या है, नज़र उठाते ही झुक गयी है,
तुम्हारी पलकों से गिरती शबनम हमारी आंखों में रुक् गयी है।
--- गुलज़ार
Aug 9, 2019
सुनो ब्राह्मण
हमारे पसीने से बू आती है, तुम्हें।
तुम, हमारे साथ आओ
चमड़ा पकाएंगे दोनों मिल-बैठकर।
शाम को थककर पसर जाओ धरती पर
सूँघो खुद को
बेटों को, बेटियों को
तभी जान पाओगे तुम
जीवन की गंध को
बलवती होती है जो
देह की गंध से।
---मलखान सिंह
तुम, हमारे साथ आओ
चमड़ा पकाएंगे दोनों मिल-बैठकर।
शाम को थककर पसर जाओ धरती पर
सूँघो खुद को
बेटों को, बेटियों को
तभी जान पाओगे तुम
जीवन की गंध को
बलवती होती है जो
देह की गंध से।
---मलखान सिंह
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