मरने को चे ग्वेरा भी मर गए,
और चंद्रशेखर भी,
लेकिन वास्तव में कोई नहीं मरा है।
सब ज़िंदा हैं,
जब मैं ज़िंदा हूँ,
इस अकाल में।
मुझे क्या कम मारा गया है
इस कलिकाल में।
अनेकों बार मुझे मारा गया है,
अनेकों बार घोषित किया गया है
राष्ट्रीय अख़बारों में, पत्रिकाओं में,
कथाओं में, कहानियों में
कि विद्रोही मर गया।
तो क्या मैं सचमुच मर गया!
नहीं, मैं ज़िंदा हूँ,
और गा रहा हूं!
--- रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’
Dec 8, 2019
Dec 4, 2019
नयी-नयी आँखें हों
नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।
मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।
मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।
चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
--- निदा फ़ाज़ली
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।
मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।
मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।
चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
--- निदा फ़ाज़ली
Dec 2, 2019
नयी हँसी
महासंघ का मोटा अध्यक्ष
धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ
सर नहीं,
हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर
बीस बड़े अख़बारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार
क्या हुआ समाजवाद
कहे महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार
आँख मारकर पचीस बार वह, हँसे वह पचीस बार
हँसे बीस अख़बार
एक नयी ही तरह की हँसी यह है
पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था
लोग आँख से आँख मिला हँस लेते थे
इसमें सब लोग दायें-बायें झाँकते हैं
और यह मुँह फाड़कर हँसी जाती है।
राष्ट्र को महासंघ का यह सन्देश है
जब मिलो तिवारी से-हँसो-क्योंकि तुम भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से-हँसो-क्योंकि वह भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से- हँसो- क्योंकि वह भी तिवारी है
जब मिलो मुसद्दी से
खिसियाओ
जातपाँत से परे
रिश्ता अटूट है
राष्ट्रीय झेंप का।
---रघुवीर सहाय
धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ
सर नहीं,
हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर
बीस बड़े अख़बारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार
क्या हुआ समाजवाद
कहे महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार
आँख मारकर पचीस बार वह, हँसे वह पचीस बार
हँसे बीस अख़बार
एक नयी ही तरह की हँसी यह है
पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था
लोग आँख से आँख मिला हँस लेते थे
इसमें सब लोग दायें-बायें झाँकते हैं
और यह मुँह फाड़कर हँसी जाती है।
राष्ट्र को महासंघ का यह सन्देश है
जब मिलो तिवारी से-हँसो-क्योंकि तुम भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से-हँसो-क्योंकि वह भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से- हँसो- क्योंकि वह भी तिवारी है
जब मिलो मुसद्दी से
खिसियाओ
जातपाँत से परे
रिश्ता अटूट है
राष्ट्रीय झेंप का।
---रघुवीर सहाय
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