Fishermen at Ballyshannon
Netted an infant last night
Along with the salmon.
An illegitimate spawning,
A small one thrown back
To the waters. But I'm sure
As she stood in the shallows
Ducking him tenderly
Till the frozen knobs of her wrists
Were dead as the gravel,
He was a minnow with hooks
Tearing her open.
She waded in under
The sign of the cross.
He was hauled in with the fish.
Now limbo will be
A cold glitter of souls
Through some far briny zone.
Even Christ's palms, unhealed,
Smart and cannot fish there.
--- Seamus Heaney
Apr 13, 2020
Apr 11, 2020
15 बेहतरीन शेर !!!
1. खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर, सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है - अमीर मीनाई
2. हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता - अकबर इलाहाबादी
3- लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में. - बशीर बद्र
4. तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा, मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है ~ शहाब जाफ़री
5. कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ~ दुष्यंत कुमार
6. कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल, वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए ~ बहादुर शाह ज़फ़र
7. ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर, आराम से वो हैं, जो तकल्लुफ़ नहीं करते..!- इब्राहिम ज़ौक़
6. आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं, सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं - -हैरत इलाहाबादी
7. ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं - नासिख लखनवी
8. करीब है यारो रोज़े-महशर, छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर, जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का -अमीर मीनाई (रोज़े-महशर = प्रलय का दिन)
9. बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते - साक़िब लखनवी
10. हम तालिबे-शोहरत हैं, हमें नंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा - नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ता
11. ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है -जिगर मुरादाबादी
12. यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे - बशीर बद्र
13. बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा - रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’
14. ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है ‘फ़राज़’, औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं - अहमद फ़राज़
15. ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है, कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
2. हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता - अकबर इलाहाबादी
3- लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में. - बशीर बद्र
4. तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा, मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है ~ शहाब जाफ़री
5. कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ~ दुष्यंत कुमार
6. कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल, वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए ~ बहादुर शाह ज़फ़र
7. ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर, आराम से वो हैं, जो तकल्लुफ़ नहीं करते..!- इब्राहिम ज़ौक़
6. आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं, सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं - -हैरत इलाहाबादी
7. ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं - नासिख लखनवी
8. करीब है यारो रोज़े-महशर, छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर, जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का -अमीर मीनाई (रोज़े-महशर = प्रलय का दिन)
9. बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते - साक़िब लखनवी
10. हम तालिबे-शोहरत हैं, हमें नंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा - नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ता
11. ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है -जिगर मुरादाबादी
12. यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे - बशीर बद्र
13. बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा - रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’
14. ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है ‘फ़राज़’, औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं - अहमद फ़राज़
15. ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है, कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है - अल्लामा इक़बाल
Apr 10, 2020
अर्थ
चुप रहने के
हज़ार फ़ायदे
चुप रहनेवाले से
कोई नहीं झगड़ता
किसी को कष्ट नहीं होता
चुप रहनेवाला
कभी दुखी नहीं होता
कभी शिकायत नहीं करता
आलोचना नहीं करता
चुप रहनेवाला
सबको अच्छा लगता है
सबको अच्छा लगने
निहायत ज़रूरी है
चुप रहना
दस हज़ार साल पहले
मनुष्य ने जब
बोलना सीखने की
शुरुआत की
तब उसे नहीं पता था
बोलने से कहीँ बेहतर है
चुप रहना
दस हज़ार साल बाद
ऋषियों की पावन भूमि पर
यह ज्ञान मिला
कि चुप रहनेवाला
सरकार गिराने के आरोप में
आधी रात को
गिरफ़्तार नहीं होता
डॉक्टर कहता है
जनम से बहरा व्यक्ति
जनम से गूंगा हो जाता है
गूंगा होने के लिए
बहरा होना अनिवार्य है
ज्ञानियों का मानना है
जीवन के किसी भी मोड़ पर
थोड़े से प्रयास से
बहरे हो जाओ
गूंगापन ख़ुद आ जाता है
बहरा होने का दूसरा फ़ायदा
कुछ हद तक
अंधापन आ जाता है
आप वही देख पाते हो
जो आंख के आगे है
और हर आंख की
एक सीमा तो होती ही है
और अगर बोलना हो जाए
बेहद ज़रूरी
और जेल भी न जाना हो
तो या तो वर्दी पैदा करो
या गर्दी पैदा करो
या कुर्सी पैदा करो
इनमें से कुछ भी पैदा न कर पाओ
तो बनकर शिखंडी
रक्षा करो
सत्ताधारी अर्जुन की
युद्धोपरांत
पद पुरस्कार प्रतिष्ठा
कुछ भी असंभव नहीं
अप्राप्य नहीं
अतः अनुभवियों की मानो
और चुप रहो
और बोलना ही पड़े
तो ऐसा बोलो
जिसका कोई अर्थ न हो
तकलीफ़ बोलने में नहीं
अर्थ से है
अर्थ चाहिए
तो अर्थ से बचो
चुप रहो
ख़ुश रहो!
---हूबनाथ पांडेय
हज़ार फ़ायदे
चुप रहनेवाले से
कोई नहीं झगड़ता
किसी को कष्ट नहीं होता
चुप रहनेवाला
कभी दुखी नहीं होता
कभी शिकायत नहीं करता
आलोचना नहीं करता
चुप रहनेवाला
सबको अच्छा लगता है
सबको अच्छा लगने
निहायत ज़रूरी है
चुप रहना
दस हज़ार साल पहले
मनुष्य ने जब
बोलना सीखने की
शुरुआत की
तब उसे नहीं पता था
बोलने से कहीँ बेहतर है
चुप रहना
दस हज़ार साल बाद
ऋषियों की पावन भूमि पर
यह ज्ञान मिला
कि चुप रहनेवाला
सरकार गिराने के आरोप में
आधी रात को
गिरफ़्तार नहीं होता
डॉक्टर कहता है
जनम से बहरा व्यक्ति
जनम से गूंगा हो जाता है
गूंगा होने के लिए
बहरा होना अनिवार्य है
ज्ञानियों का मानना है
जीवन के किसी भी मोड़ पर
थोड़े से प्रयास से
बहरे हो जाओ
गूंगापन ख़ुद आ जाता है
बहरा होने का दूसरा फ़ायदा
कुछ हद तक
अंधापन आ जाता है
आप वही देख पाते हो
जो आंख के आगे है
और हर आंख की
एक सीमा तो होती ही है
और अगर बोलना हो जाए
बेहद ज़रूरी
और जेल भी न जाना हो
तो या तो वर्दी पैदा करो
या गर्दी पैदा करो
या कुर्सी पैदा करो
इनमें से कुछ भी पैदा न कर पाओ
तो बनकर शिखंडी
रक्षा करो
सत्ताधारी अर्जुन की
युद्धोपरांत
पद पुरस्कार प्रतिष्ठा
कुछ भी असंभव नहीं
अप्राप्य नहीं
अतः अनुभवियों की मानो
और चुप रहो
और बोलना ही पड़े
तो ऐसा बोलो
जिसका कोई अर्थ न हो
तकलीफ़ बोलने में नहीं
अर्थ से है
अर्थ चाहिए
तो अर्थ से बचो
चुप रहो
ख़ुश रहो!
---हूबनाथ पांडेय
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