Jul 21, 2020

मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही

ज़ालिम को जो न रोके वो शामिल है ज़ुल्म में
क़ातिल को जो न टोके वो क़ातिल के साथ है

हम सर-ब-कफ़ उठे हैं कि हक़ फ़तह-याब हो
कह दो उसे जो लश्कर-ए-बातिल के साथ है

इस ढंग पर है ज़ोर तो ये ढंग ही सही
ज़ालिम की कोई ज़ात न मज़हब न कोई क़ौम

ज़ालिम के लब पे ज़िक्र भी इन का गुनाह है
फलती नहीं है शाख़-ए-सितम इस ज़मीन पर

तारीख़ जानती है ज़माना गवाह है
कुछ कोर-बातिनों की नज़र तंग ही सही

ये ज़र की जंग है न ज़मीनों की जंग है
ये जंग है बक़ा के उसूलों के वास्ते

जो ख़ून हम ने नज़्र दिया है ज़मीन को
वो ख़ून है गुलाब के फूलों के वास्ते
फूटेगी सुब्ह-ए-अम्न लहू-रंग ही सही

---साहिर लुधियानवी

Jul 20, 2020

एक छप्पर भी नहीं है सर छिपाने के लिए

एक छप्पर भी नहीं है सर छिपाने के लिए
हम बने है दूसरों के घर बनाने के लिए

बन चुकी पूरी इमारत आपका कब्ज़ा हुआ
हम तरसते ही रहे बस आशियाने के लिए

जेब मे रखकर वो चेहरे को हमारे चल दिए
जानते है, जा रहे है फिर न आने के लिए

बिजलियाँ चमकें, गिरें, हमको नहीं परवाह अब
नींव तो रख जाएँगे हम आशियाने के लिए

उसने एक दीपक जलाया, ये भी तो कुछ कम नहीं
कुछ तो कोशिश की अन्धेरे को मिटाने के लिए

--- अश्वघोष

Jul 11, 2020

न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है

न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है
नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है
हज़ारों रास्ते खोजे गए उस तक पहुँचने के
मगर पहुँचे हुए ये कह गए भगवान सबका है

जो इसमें मिल गईं नदियाँ वे दिखलाई नहीं देतीं
महासागर बनाने में मगर एहसान सबका है
अनेकों रंग, ख़ुशबू, नस्ल के फल-फूल पौधे हैं
मगर उपवन की इज्जत-आबरू ईमान सबका है

हक़ीक़त आदमी की और झटका एक धरती का
जो लावारिस पड़ी है धूल में सामान सबका है
ज़रा से प्यार को खुशियों की हर झोली तरसती है
मुकद्दर अपना-अपना है, मगर अरमान सबका है

उदय झूठी कहानी है सभी राजा और रानी की
जिसे हम वक़्त कहते हैं वही सुल्तान सबका है

---उदय प्रताप सिंह