साहेब !
ओढ़े गये छद्म विषयों की
तुम कर सकते हो अलंकारिक व्याख्या
पर क्या होगा एक दिन जब
शहर आयी जंगल की लड़की
लिख देगी अपनी कविता में सारा सच,
वह सच
जिसे अपनी किताबों के आवरण के नीचे
तुमने छिपाकर रखा है
तुम्हारी घिनौनी भाषा
मंच से तुम्हारे उतरने के बाद
इशारों में जो बोली जाती है
तुम्हारी वे सच्चाइयां
तुम्हें लगता है जो समय के साथ
बदल जाएगी किसी भ्रम में,
साहेब !
एक दिन
जंगल की कोई लड़की
कर देगी तुम्हारी व्याख्याओं को
अपने सच से नंगा,
लिख देगी अपनी कविता में
कैसे तुम्हारे जंगल के रखवालों ने
'तलाशी' के नाम पर
खींचे उसके कपड़े,
कैसे दरवाजे तोड़कर
घुस आती है
तुम्हारी फौज उनके घरों में,
कैसे बच्चे थामने लगते हैं
गुल्ली–डंडे की जगह बंदूकें
और कैसे भर आता है
उसके कलेजे में बारूद,
साहेब !
एक दिन
जंगल की हर लड़की
लिखेगी कविता
क्या कहकर खारिज करोगे उन्हें?
क्या कहोगे साहेब?
यही न....
कि यह कविता नहीं
"समाचार" है.....!!
---जसिंता केरकेट्टा
Aug 9, 2020
Aug 5, 2020
धर्म की कमाई
सौंर और गोंड स्त्रियाँ चिरौंजी बनिए की दुकान
पर ले जाती हैं। बनिया तराजू के एक पल्ले पर नमक
और दूसरे पर चिरौंजी बराबर तोल कर दिखा देता है
और कहता है, हम तो ईमान की कमाई खाते हैं।
स्त्रियाँ नमक ले कर घर जाती हैं।
बनिया मिठाइयां बनाता और बेचता है।
उस की दुकान का नाम है।
अब वह चिरौंजी की बर्फी बनाता है,
दूर दूर तक उस की चर्चा है।
गाहक दुकान पर पूछते हुए जाते हैं।
कीन कर ले जाते हैं,
खाते और खिलाते हैं।
बनिया धरम करम की चर्चा करता है।
कहता है,
धरम का दिया खाते हैं,
भगवान् के गुण गाते हैं।
--- त्रिलोचन
पर ले जाती हैं। बनिया तराजू के एक पल्ले पर नमक
और दूसरे पर चिरौंजी बराबर तोल कर दिखा देता है
और कहता है, हम तो ईमान की कमाई खाते हैं।
स्त्रियाँ नमक ले कर घर जाती हैं।
बनिया मिठाइयां बनाता और बेचता है।
उस की दुकान का नाम है।
अब वह चिरौंजी की बर्फी बनाता है,
दूर दूर तक उस की चर्चा है।
गाहक दुकान पर पूछते हुए जाते हैं।
कीन कर ले जाते हैं,
खाते और खिलाते हैं।
बनिया धरम करम की चर्चा करता है।
कहता है,
धरम का दिया खाते हैं,
भगवान् के गुण गाते हैं।
--- त्रिलोचन
Aug 4, 2020
15 बेहतरीन शेर - 2 !!!
1. 'सुख के लम्हें तक पहुँचते पहुँचते हम उन लोगों से जुदा हो जाते हैं,
जिनके साथ हमनें दुख झेलकर सुख का स्वप्न देखा था।' ~ निर्मल वर्मा
2. सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या, सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या ~ यगाना चंगेज़ी
3. कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा, फिर वही हम वही अमीनाबाद ~ यगाना चंगेज़ी
4. इंशाजी उठो अब कूच करो, इस शहर में दिल को लगाना क्या वहशी को सुकूं से क्या मतलब, जोगी का शहर में ठिकाना क्या ~ इब्ने इंशा
5. जितने हरामख़ोर थे कुरबो-जवार में, परधान बन के आ गये अगली कतार में ~ अदम गोंडवी
6. ख़बर सुन कर मेरे मरने की वो बोले रक़ीबों से, ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में ~ दाग़ देहलवी
7. कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत, जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है ~ नातिक़ लखनवी
8. तेरे घर तक आ चुकी है दूर के जंगल की आग, अब तिरा इस आग से डरना भी क्या लड़ना भी क्या ~ वज़ीर आग़ा
9. बारिश का बदन था उस का हँसना, ग़ुंचे का ख़िसाल उस का हक़ था ~ किश्वर नाहिद
10. शाएर-ए-फ़ितरत हूं जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूं मैं, रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूं मैं
मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीअत देखना, जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूं मैं ~ जिगर मुरादाबादी
11. क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है ~ जिगर मुरादाबादी
12. उस से बढ़ कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं, सब जुदा हो जाएँ लेकिन ग़म जुदा होता नहीं ~ जिगर मुरादाबादी
13. रिंद जो मुझको समझते हैं उन्हे होश नहीं, मैक़दासाज़ हूँ मै मैक़दाबरदोश नहीं ~ जिगर मुरादाबादी
14. जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ हमारे अश्क तेरे आक़बत सँवार चले - फैज़
15. ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें, इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं --जाँ निसार अख़्तर
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