मैं उस अतीत को
अपने बहुत क़रीब पाता हूँ
जिसे जिया था तुमने
अपने दृढ-संकल्प और संघर्ष से।
परिवर्तित किया था समय-चक्र को
इस वर्तमान में।
मैं उस अन्धी निशा की
भयानक पीड़ा को / जब भी महसूस करता हूँ
तुम्हारे विचारों के आन्दोलन में
मुखर होता है एक रचनात्मक विप्लव
मेरे रोम-रोम में।
तुम बिलकुल नहीं मरे हो बाबा !
जीवित हो हमारी चेतना में,
हमारे संकल्प में, हमारे संघर्षों में।
समता, सम्मान और स्वाधीनता के लिए
मुक्ति-संग्राम जारी रहेगा / जब तक कि
हमारे मुरझाए पौधे के हिस्से का सूरज
उग नहीं जाता है।
---कंवल भारती
Aug 15, 2020
Aug 9, 2020
साहेब! कैसे करोगे खारिज
साहेब !
ओढ़े गये छद्म विषयों की
तुम कर सकते हो अलंकारिक व्याख्या
पर क्या होगा एक दिन जब
शहर आयी जंगल की लड़की
लिख देगी अपनी कविता में सारा सच,
वह सच
जिसे अपनी किताबों के आवरण के नीचे
तुमने छिपाकर रखा है
तुम्हारी घिनौनी भाषा
मंच से तुम्हारे उतरने के बाद
इशारों में जो बोली जाती है
तुम्हारी वे सच्चाइयां
तुम्हें लगता है जो समय के साथ
बदल जाएगी किसी भ्रम में,
साहेब !
एक दिन
जंगल की कोई लड़की
कर देगी तुम्हारी व्याख्याओं को
अपने सच से नंगा,
लिख देगी अपनी कविता में
कैसे तुम्हारे जंगल के रखवालों ने
'तलाशी' के नाम पर
खींचे उसके कपड़े,
कैसे दरवाजे तोड़कर
घुस आती है
तुम्हारी फौज उनके घरों में,
कैसे बच्चे थामने लगते हैं
गुल्ली–डंडे की जगह बंदूकें
और कैसे भर आता है
उसके कलेजे में बारूद,
साहेब !
एक दिन
जंगल की हर लड़की
लिखेगी कविता
क्या कहकर खारिज करोगे उन्हें?
क्या कहोगे साहेब?
यही न....
कि यह कविता नहीं
"समाचार" है.....!!
---जसिंता केरकेट्टा
ओढ़े गये छद्म विषयों की
तुम कर सकते हो अलंकारिक व्याख्या
पर क्या होगा एक दिन जब
शहर आयी जंगल की लड़की
लिख देगी अपनी कविता में सारा सच,
वह सच
जिसे अपनी किताबों के आवरण के नीचे
तुमने छिपाकर रखा है
तुम्हारी घिनौनी भाषा
मंच से तुम्हारे उतरने के बाद
इशारों में जो बोली जाती है
तुम्हारी वे सच्चाइयां
तुम्हें लगता है जो समय के साथ
बदल जाएगी किसी भ्रम में,
साहेब !
एक दिन
जंगल की कोई लड़की
कर देगी तुम्हारी व्याख्याओं को
अपने सच से नंगा,
लिख देगी अपनी कविता में
कैसे तुम्हारे जंगल के रखवालों ने
'तलाशी' के नाम पर
खींचे उसके कपड़े,
कैसे दरवाजे तोड़कर
घुस आती है
तुम्हारी फौज उनके घरों में,
कैसे बच्चे थामने लगते हैं
गुल्ली–डंडे की जगह बंदूकें
और कैसे भर आता है
उसके कलेजे में बारूद,
साहेब !
एक दिन
जंगल की हर लड़की
लिखेगी कविता
क्या कहकर खारिज करोगे उन्हें?
क्या कहोगे साहेब?
यही न....
कि यह कविता नहीं
"समाचार" है.....!!
---जसिंता केरकेट्टा
Aug 5, 2020
धर्म की कमाई
सौंर और गोंड स्त्रियाँ चिरौंजी बनिए की दुकान
पर ले जाती हैं। बनिया तराजू के एक पल्ले पर नमक
और दूसरे पर चिरौंजी बराबर तोल कर दिखा देता है
और कहता है, हम तो ईमान की कमाई खाते हैं।
स्त्रियाँ नमक ले कर घर जाती हैं।
बनिया मिठाइयां बनाता और बेचता है।
उस की दुकान का नाम है।
अब वह चिरौंजी की बर्फी बनाता है,
दूर दूर तक उस की चर्चा है।
गाहक दुकान पर पूछते हुए जाते हैं।
कीन कर ले जाते हैं,
खाते और खिलाते हैं।
बनिया धरम करम की चर्चा करता है।
कहता है,
धरम का दिया खाते हैं,
भगवान् के गुण गाते हैं।
--- त्रिलोचन
पर ले जाती हैं। बनिया तराजू के एक पल्ले पर नमक
और दूसरे पर चिरौंजी बराबर तोल कर दिखा देता है
और कहता है, हम तो ईमान की कमाई खाते हैं।
स्त्रियाँ नमक ले कर घर जाती हैं।
बनिया मिठाइयां बनाता और बेचता है।
उस की दुकान का नाम है।
अब वह चिरौंजी की बर्फी बनाता है,
दूर दूर तक उस की चर्चा है।
गाहक दुकान पर पूछते हुए जाते हैं।
कीन कर ले जाते हैं,
खाते और खिलाते हैं।
बनिया धरम करम की चर्चा करता है।
कहता है,
धरम का दिया खाते हैं,
भगवान् के गुण गाते हैं।
--- त्रिलोचन
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