The moon did not become the sun.
It just fell on the desert
in great sheets, reams
of silver handmade by you.
The night is your cottage industry now,
the day is your brisk emporium.
The world is full of paper.
Write to me.
--- Agha Shahid Ali
(The Half-Inch Himalayas, 1987)
Oct 25, 2022
Oct 19, 2022
लाल ज़री - Varieties of Ghazal: Poems of the Middle East
लाल ज़री
अरबी लोगों में कहावत थी कि
जब कोई अजनबी दस्तक दे तुम्हारे दरवाज़े पर,
तो उसे तीन दिनों तक खिलाओ-पिलाओ…
यह पूछने से पहले कि वह कौन है,
कहाँ से आया है,
कहाँ को जाएगा।
इस तरह, उसके पास होगी पर्याप्त ताक़त
जवाब देने के लिए।
या फिर, तब तक तुम बन जाओगे
इतने अच्छे मित्र
कि तुम परवाह नहीं करोगे।
चलो फिर लौट जाएँ वहीं।
चावल? चिलगोज़े?
यहाँ, लो यह लाल ज़री वाला तकिया।
मेरा बच्चा पानी पिला देगा
तुम्हारे घोड़े को।
नहीं, मैं व्यस्त नहीं था जब तुम आए!
मैं व्यस्त होने की तैयारी में भी नहीं था।
यही आडंबर ओढ़ लेते हैं सब
यह दिखाने के लिए उनका कोई उद्देश्य है
इस दुनिया में।
मैं ठुकराता हूँ सभी दावे।
तुम्हारी थाली प्रतीक्षारत है।
चलो हम ताज़ा पुदीना घोलते हैं
तुम्हारी चाय में।
अरबी लोगों में कहावत थी कि
जब कोई अजनबी दस्तक दे तुम्हारे दरवाज़े पर,
तो उसे तीन दिनों तक खिलाओ-पिलाओ…
यह पूछने से पहले कि वह कौन है,
कहाँ से आया है,
कहाँ को जाएगा।
इस तरह, उसके पास होगी पर्याप्त ताक़त
जवाब देने के लिए।
या फिर, तब तक तुम बन जाओगे
इतने अच्छे मित्र
कि तुम परवाह नहीं करोगे।
चलो फिर लौट जाएँ वहीं।
चावल? चिलगोज़े?
यहाँ, लो यह लाल ज़री वाला तकिया।
मेरा बच्चा पानी पिला देगा
तुम्हारे घोड़े को।
नहीं, मैं व्यस्त नहीं था जब तुम आए!
मैं व्यस्त होने की तैयारी में भी नहीं था।
यही आडंबर ओढ़ लेते हैं सब
यह दिखाने के लिए उनका कोई उद्देश्य है
इस दुनिया में।
मैं ठुकराता हूँ सभी दावे।
तुम्हारी थाली प्रतीक्षारत है।
चलो हम ताज़ा पुदीना घोलते हैं
तुम्हारी चाय में।
Oct 14, 2022
अजीब वक्त है
अजीब वक्त है -
बिना लड़े ही एक देश- का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता !
कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में -
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता
बिना लड़े ही एक देश- का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता !
कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में -
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता
--- कुंवर नारायण
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