Jun 3, 2025

Zhuravli (Cranes)

Sometimes I feel that all those fallen soldiers,
Who never left the bloody battle zones,
Have not been buried to decay and molder,
But turned into white cranes that softly groan.

And thus, until these days since those bygone times
They have been flying calling us with cries.
Isn’t it why we often hear those sad chimes
And calmly freeze, while looking in the skies?

A tired flock of cranes still flies – their wings flap.
Birds glide into the twilight, roaming free.
In their formation I can see a small gap –
It might be so, that space is meant for me.

The day shall come, when in the mist of ashen
My final rest among those cranes I’ll find,
From the skies calling – in a bird-like fashion –
All those of you, who I’ll have left behind.

Sometimes I feel that all those fallen soldiers,
Who never left the bloody battle zones,
Have not been buried to decay and molder,
But turned into white cranes that softly groan…

सारस

कभी-कभी लगता है मुझको
वे सैनिक रक्तिम युद्ध-भूमि से लौट न जो आए
नहीं मरे वे वहाँ बने
मानो सारस उड़े गगन में, श्वेत पंख सब फैलाए।

उन्हीं दिनों से, बीते हुए जमाने से उड़े गगन में,
गूँजे उनकी आवाजें क्या न
इसी कारण ही अक्सर चुप रहकर
भारी मन से हम नीले नभ को ताकें ?

आज, शाम के घिरते हुए अँधेरे में
देखूँ धुँध-कुहासे में सारस उड़ते,
अपना दल-सा एक बनाए उसी तरह
जैसे जब थे मानव, भू पर डग भरते।

वे उड़ते हैं, लंबी मंजिल तय करते
और पुकारें जैसे नाम किसी के वे,
शायद इनकी ही पुकार से
इसीलिए शब्द हमारी भाषा के मिलते-जुलते ?

उड़ते जाते हैं सारस-दल थके-थके धुँध-कुहासे में भी,
जब दिन ढलता है,
उस तिकोण में उनके जरा जगह खाली
वह तो मेरे लिए, मुझे यह लगता है।

वह दिन आएगा,
मैं सारस-दल के संग हल्के नील अँधेरे में उड़ जाऊँगा,
उन्हें सारसों की ही भाँति पुकारूँगा
छोड़ जिन्हें मैं इस धरती पर जाऊँगा।

--- Rasul Gazmatov  (English translation by an American poet, Leo Schwartzberg)

May 28, 2025

भले दिनों की बात थी

भले दिनों की बात थी
भली सी एक शक्ल थी
ना ये कि हुस्ने ताम हो
ना देखने में आम सी

ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे

कोई भी रुत हो उसकी छब
फ़जा का रंग रूप थी
वो गर्मियों की छांव थी
वो सर्दियों की धूप थी

ना मुद्दतों जुदा रहे
ना साथ सुबहो शाम हो
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
ना ये कि इज्ने आम हो

ना ऐसी खुश लिबासियां
कि सादगी हया करे
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी
की आईना हया करे

ना इखतिलात में वो रम
कि बदमजा हो ख्वाहिशें
ना इस कदर सुपुर्दगी
कि ज़िच करे नवाजिशें

ना आशिकी ज़ुनून की
कि ज़िन्दगी अजाब हो
ना इस कदर कठोरपन
कि दोस्ती खराब हो

कभी तो बात भी खफ़ी
कभी सुकूत भी सुखन
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां
कभी उदासियों का बन

सुना है एक उम्र है
मुआमलाते दिल की भी
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या
फ़िराके-जाँ-गुसल की भी

सो एक रोज क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क को अमर कहूं
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई

मैं इश्क का असीर था
वो इश्क को कफ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
वो बदतर अज़ हवस कहे

शजर हजर नहीं कि हम
हमेशा पा ब गिल रहें
ना ढोर हैं कि रस्सियां
गले में मुस्तकिल रहें

मोहब्बतें की वुसअतें
हमारे दस्तो पा में हैं
बस एक दर से निस्बतें
सगाने-बावफ़ा में हैं

मैं कोई पेन्टिंग नहीं
कि एक फ़्रेम में रहूं
वही जो मन का मीत हो
उसी के प्रेम में रहूं

तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं उस मिजाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं

न उसको मुझपे मान था
न मुझको उसपे ज़ोम ही
जो अहद ही कोई ना हो
तो क्या गमे शिकस्तगी

सो अपना अपना रास्ता
हंसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी
मैं अपनी राह चल दिया

भली सी एक शक्ल थी
भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात दिन
नहीं, मगर कभी कभी

---  अहमद फ़राज़ 

हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत

हया - शर्म, इखतिलात - दोस्ती, रम - वहशत, खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी

किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन,

फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी, असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना,

अज हवस - हवस से भी खराब, शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश

मुस्तकिल - लगातार, वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ, पैर, निस्बतें - संबन्ध

सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, ज़ोम - गुमान, अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम

May 22, 2025

जंगल जंगल बात चली है (Jungle Book) (Old Doordarshan Serial Title Song)

जंगल जंगल बात चली है
पता चला है.. 
जंगल जंगल बात चली है। 
पता चला है..

अरे चड्डी पहन के फूल खिला है
फूल खिला है 
अरे चड्डी पहन के फूल खिला हैं 
फूल खिला है

जंगल जंगल पता चला है, 
चड्डी पहन के फूल खिला है 
जंगल जंगल पता चला है, 
चड्डी पहन के फूल खिला है

एक परिंदा है शर्मिंदा, 
था वो नंगा
भाई इससे तो अंडे के अंदर, 
था वो चंगा

सोच रहा है 
बाहर आखिर क्यों निकला है 
अरे चड्डी पहन के फूल खिला है 
फूल खिला है