साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत-ऐ-तमाम मेरी हर खता मुआफ
मई इंतिहा-ऐ-शौक (में) से घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्देह चश्म-ऐ-यार की शय पा के पी गया
पास रहता है दूर रहता है
कोई दिल में ज़रूर रहता है
जब से देखा है उन की आंखों को
हल्का हल्का सुरूर रहता है
ऐसे रहते हैं कोई मेरे दिल में
जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है
अब अदम का येः हाल है हर वक्त
मस्त रहता है चूर रहता है
ये जो हल्का हल्का सरूर है
ये तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया
तेरे प्यार ने , तेरी चाह ने
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया
शराब कैसी (What Drink), खुमार कैसा (what Elevation)
ये सुब तुम्हारी नवाज़िशैं हैं (It is all your gift)
पिलाई है किस नज़र से तू ने (How i have been made into an addict)
के मुझको अपनी ख़बर नही है (I have no awareness of Myself)
तेरी बहकी बहकी निगाह ने (Your lost looks)
मुझे इक शराबी बना दिया....
सारा जहाँ मस्त, जहाँ का निज़ाम (System) मस्त
दिन मस्त, रात मस्त, सहर (Morning) मस्त, शाम मस्त
दिल मस्त, शीशा मस्त, साबू (Cup of Wine) मस्त, जाम मस्त
है तेरी चश्म-ऐ-मस्त से हेर ख़ास-ओ-आम (Everyone) मस्त
यूँ तो साकी हर तरह की तेरे मैखाने में है
वो भी थोडी सी जो इन आंखों के पैमाने में है
सब समझता हूँ तेरी इशवा-करी (Cleverness) ऐ साकी
काम करती है नज़र नाम है पैमाने का.. बस!
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया...
तेरा प्यार है मेरी जिंदगी (My life is your love)
तेरा प्यार है मेरी बंदगी (I am enclosed in your love)
तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी, तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी
न नमाज़ आती है मुझको, न वजू आता है
सजदा कर लेता हूँ, जब सामने तू आता है
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है....
मै अज़ल से बन्दा-ऐ-इश्क हूँ, मुझे ज़ोह्द-ओ-कुफ्र का ग़म नहीं (Deep down I am a lover, I am not sad for hearafter hell)
मेरे सर को डर तेरा मिल गया, मुझे अब तलाश-ऐ-हरम नही
मेरी बंदगी है वो बंदगी, जो मुकीद-ऐ-दैर-ओ-हरम (Bounded to any sacred Place) नही
मेरा इक नज़र तुम्हें देखना, बा खुदा नमाज़ से कम नही (For me to look at you is no less than Namaz)
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
तेरा नाम लूँ जुबां से, तेरे आगे सर झुका दूँ
मेरा इश्क कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ
तेरा नाम मेरे लब पर, मेरा तज़करा है दर दर
मुझे भूल जाए दुनिया , मैं अगर तुझे भुला दूँ
मेरे दिल में बस रहे हैं, तेरे बेपनाह जलवे
न हो जिस में नूर तेरा, वो चराग ही बुझा दूँ
जो पूछा के किस तरह होती है बारिश, जबीं (Forehead) से पसीने की बूँदें गिरा दी
जो पूछा के किस तरह गिरती है बिजली, निगाहें मिलाएं मिला कर झुका दें
जो पूछा शब्-ओ-रोज़ मिलते हैं कैसे, तो चेहरे पे अपने वो जुल्फें हटा दीं
जो पूछा क नगमों में जादू है कैसा, तो मीठे तकल्लुम में बातें सुना दीं
जो अपनी तमनाओं का हाल पुछा , तो जलती हुई चंद शामें बुझा दीं
मैं कहता रह गया खता-ऐ-मोहब्बत की अच्छी सज़ा दी
मेरे दिल की दुनिया बना कर मिटा दी, अच!
मेरे बाद किसको सताओगे ,
मुझे किस तरह से मिटाओगे
कहाँ जा के तीर चलाओगे
मेरी दोस्ती की बलाएँ लो
मुझे हाथ उठा कर दुआएं दो, तुम्हें एक कातिल बना दिया
मुझे देखो खुवाहिश-ऐ-जान-ऐ-जां
मैं वोही हूँ अनवर-ऐ-निम् जान
तुम्हें इतना होश था जब कहाँ
न चलाओ इस तरह तुम ज़बान
करो मेरा शुक्रिया मेहेरबान
तुम्हें बात करना सिखा दिया...
यह जो हल्का हल्का सरूर है, यह तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया ।
---Abdul Hameed Adam
1 जनवरी 2015
17 दिसंबर 2014
'अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल'
क़ौम की बेहतरी का छोड़ ख़याल,
फिक्र-ए-तामीर-ए-मुल्क दिल से निकाल,
तेरा परचम है तेरा दस्त-ए-सवाल,
बेज़मीरी का और क्या हो मआल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
तंग कर दे ग़रीब पे ये ज़मीन,
ख़म ही रख आस्तान-ए-ज़र पे जबीं,
ऐब का दौर है हुनर का नहीं,
आज हुस्न-ए-कमाल को है जवाल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
क्यों यहाँ सुब्ह-ए-नौ की बात चले,
क्यों सितम की सियाह रात ढले,
सब बराबर हैं आसमान के तले,
सबको रज़ाअत पसंद कह के टाल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
नाम से पेशतर लगाके अमीर,
हर मुसलमान को बना के फ़क़ीर,
क़स्र-ओ-दीवान हो क़याम पज़ीर,
और ख़ुत्बों में दे उमर की मिसाल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
आदमीयत की हमनवाई में,
तेरा हमसर नहीं ख़ुदाई में,
बादशाहों की रहनुमाई में,
रोज़ इस्लाम का जुलूस निकाल
अब कलम से इज़ारबंद ही डाल
लाख होंठों पे दम हमारा हो,
और दिल सुबह का सितारा हो,
सामने मौत का नज़ारा हो,
लिख यही ठीक है मरीज़ का हाल
अब कलम से इज़ारबंद ही डाल|
---हबीब जालिब
फिक्र-ए-तामीर-ए-मुल्क दिल से निकाल,
तेरा परचम है तेरा दस्त-ए-सवाल,
बेज़मीरी का और क्या हो मआल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
तंग कर दे ग़रीब पे ये ज़मीन,
ख़म ही रख आस्तान-ए-ज़र पे जबीं,
ऐब का दौर है हुनर का नहीं,
आज हुस्न-ए-कमाल को है जवाल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
क्यों यहाँ सुब्ह-ए-नौ की बात चले,
क्यों सितम की सियाह रात ढले,
सब बराबर हैं आसमान के तले,
सबको रज़ाअत पसंद कह के टाल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
नाम से पेशतर लगाके अमीर,
हर मुसलमान को बना के फ़क़ीर,
क़स्र-ओ-दीवान हो क़याम पज़ीर,
और ख़ुत्बों में दे उमर की मिसाल
अब क़लम से इज़ारबंद ही डाल
आदमीयत की हमनवाई में,
तेरा हमसर नहीं ख़ुदाई में,
बादशाहों की रहनुमाई में,
रोज़ इस्लाम का जुलूस निकाल
अब कलम से इज़ारबंद ही डाल
लाख होंठों पे दम हमारा हो,
और दिल सुबह का सितारा हो,
सामने मौत का नज़ारा हो,
लिख यही ठीक है मरीज़ का हाल
अब कलम से इज़ारबंद ही डाल|
---हबीब जालिब
15 दिसंबर 2014
Do not go gentle into that good night
Do not go gentle into that good night,
Old age should burn and rave at close of day;
Rage, rage against the dying of the light.
Though wise men at their end know dark is right,
Because their words had forked no lightning they
Do not go gentle into that good night.
Good men, the last wave by, crying how bright
Their frail deeds might have danced in a green bay,
Rage, rage against the dying of the light.
Wild men who caught and sang the sun in flight,
And learn, too late, they grieved it on its way,
Do not go gentle into that good night.
Grave men, near death, who see with blinding sight
Blind eyes could blaze like meteors and be gay,
Rage, rage against the dying of the light.
And you, my father, there on the sad height,
Curse, bless, me now with your fierce tears, I pray.
Do not go gentle into that good night.
Rage, rage against the dying of the light.
---Dylan Thomas
Old age should burn and rave at close of day;
Rage, rage against the dying of the light.
Though wise men at their end know dark is right,
Because their words had forked no lightning they
Do not go gentle into that good night.
Good men, the last wave by, crying how bright
Their frail deeds might have danced in a green bay,
Rage, rage against the dying of the light.
Wild men who caught and sang the sun in flight,
And learn, too late, they grieved it on its way,
Do not go gentle into that good night.
Grave men, near death, who see with blinding sight
Blind eyes could blaze like meteors and be gay,
Rage, rage against the dying of the light.
And you, my father, there on the sad height,
Curse, bless, me now with your fierce tears, I pray.
Do not go gentle into that good night.
Rage, rage against the dying of the light.
---Dylan Thomas
28 नवंबर 2014
I DON'T KNOW WHAT PRAYER IS
I don't know exactly what a prayer is.
I do know how to pay attention, how to fall down
into the grass, how to kneel down in the grass,
how to be idle and blessed, how to stroll through the fields,
which is what I have been doing all day.
Tell me, what else should I have done?
Doesn't everything die at last, and too soon?
Tell me, what is it you plan to do
With your one wild and precious life?
---Mary Oliver (From "The summer day"; New and Selected Poems 1992)
I do know how to pay attention, how to fall down
into the grass, how to kneel down in the grass,
how to be idle and blessed, how to stroll through the fields,
which is what I have been doing all day.
Tell me, what else should I have done?
Doesn't everything die at last, and too soon?
Tell me, what is it you plan to do
With your one wild and precious life?
---Mary Oliver (From "The summer day"; New and Selected Poems 1992)
15 नवंबर 2014
To ostatnia niedziela ( This is the Last Sunday )
The weary sun
Gently parted with the sea,
At this hour you declared,
There is no love.
I was saddened slightly -
Without anguish, without sorrow
At this hour resounded
Your words.
As we part, I will not be angry,
The fault lies with me and you.
The weary sun
Gently parted with the sea,
At this hour you declared,
There is no love.
--- Zenon Friedwald
Gently parted with the sea,
At this hour you declared,
There is no love.
I was saddened slightly -
Without anguish, without sorrow
At this hour resounded
Your words.
As we part, I will not be angry,
The fault lies with me and you.
The weary sun
Gently parted with the sea,
At this hour you declared,
There is no love.
--- Zenon Friedwald
31 अक्टूबर 2014
Migrating Birds
That summer with its total lie;
O pang we learned at autumn's hands.
Under the cloudscape, slow and high,
A blackwing bird before my eye
Wheeling for southern lands.
The wildgeese magicked into flight,
The clamoring cries of cranes that soar
Over the land in gilded light.
And then the shadow pulled down tight
In winter blackout till they trek once more.
Sensitive heart, senses laid bare!
You have no nest in east or west,
Landsick and restless here as there.
Just learn to love life everywhere
Or what is left of life and rest.
--- Hubert van Herreweghen
Translated by A.Z. Foreman
O pang we learned at autumn's hands.
Under the cloudscape, slow and high,
A blackwing bird before my eye
Wheeling for southern lands.
The wildgeese magicked into flight,
The clamoring cries of cranes that soar
Over the land in gilded light.
And then the shadow pulled down tight
In winter blackout till they trek once more.
Sensitive heart, senses laid bare!
You have no nest in east or west,
Landsick and restless here as there.
Just learn to love life everywhere
Or what is left of life and rest.
--- Hubert van Herreweghen
Translated by A.Z. Foreman
17 अक्टूबर 2014
WILD GEESE
You do not have to be good.
You do not have to walk on your knees
For a hundred miles through the desert, repenting.
You only have to let the soft animal of your body
love what it loves.
Tell me about despair, yours, and I will tell you mine.
Meanwhile the world goes on.
Meanwhile the sun and the clear pebbles of the rain
are moving across the landscapes,
over the prairies and the deep trees,
the mountains and the rivers.
Meanwhile the wild geese, high in the clean blue air,
are heading home again.
Whoever you are, no matter how lonely,
the world offers itself to your imagination,
calls to you like the wild geese, harsh and exciting —
over and over announcing your place
in the family of things.
---Mary Oliver
You do not have to walk on your knees
For a hundred miles through the desert, repenting.
You only have to let the soft animal of your body
love what it loves.
Tell me about despair, yours, and I will tell you mine.
Meanwhile the world goes on.
Meanwhile the sun and the clear pebbles of the rain
are moving across the landscapes,
over the prairies and the deep trees,
the mountains and the rivers.
Meanwhile the wild geese, high in the clean blue air,
are heading home again.
Whoever you are, no matter how lonely,
the world offers itself to your imagination,
calls to you like the wild geese, harsh and exciting —
over and over announcing your place
in the family of things.
---Mary Oliver
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