September 22, 2018

पप्पू के दुल्हिन

पप्पू के दुल्हिन की चर्चा कालोनी के घर घर में,
पप्पू के दुल्हिन पप्पू के रखै अपने अंडर में
पप्पुवा इंटर फेल और दुलहिया बीए पास हौ भाई जी
औ पप्पू असू लद्धड़ नाही, एडवांस हौ भाई जी
कहे ससुर के पापा जी औ कहे सास के मम्मी जी
माई डियर कहे पप्पू के, पप्पू कहैं मुसम्मी जी

बहु सुरक्षा समीति बनउले हौ अपने कॉलोनी में
बहुतन के इ सबक सिखौले हौ अपने कॉलोनी में
औ कॉलोनी के कुल दुल्हनिया एके प्रेसिडेंट कहैली
और एकर कहना कुल मानेली एकर कहना तुरंत करैली
पप्पू के दुल्हिन के नक्शा कालोनी में हाई हौ
ढंग एकर बेढब हौ सबसे रंग एके रेक्जाई हो

औ कॉलोनी के बुढ़िया बुढ़वा दूरे से परनाम करैले
भीतरे भीतर सास डरैले भीतरे भीतर ससुर डरैले
दिन में सूट रात में मैक्सी, न घुंघटा न अँचरा जी
देख देख के हसै पड़ोसी मिसराइन औ मिसरा जी
अपने एक्को काम न छुए कुल पप्पुए से करवावैले
पप्पुओ जान गयेल हौ काहे माई डियर बोलावैले

के छूट गइल पप्पू के बीड़ी औ चौराहा छूट गइल
छूट गइल मंडली रात के ही ही हा हा छूट गइल
हरदम अप टू डेट रहैले मेकअप दोनों जून करैले
रोज बिहाने मलै चिरौंजी गाले पे निम्बुवा रगरै
पप्पू ओके का छेड़ीहै ऊ खुद छेड़ेले पप्पू के
जैइसे फेरे पान पनेरिन ऊ फेरेले पप्पू के

पप्पू के जेबा एक दिन लव लेटर ऊ पाई गइल
लव लेटर ऊ पाई गइल, पप्पू के शामत आई गइल
मुंह पर छीटा मारै उनके आधी रात जगावैले
इ लव लेटर केकर हउवे उनही से पढ़वावैले
लव लेटर के देखते पप्पुवा पहिले तो सोकताइ गइल
झपकी जैसे फिर से आइल पप्पुवा उहै गोहताई गइल


मेहर छीटा मारे फिर फिर पप्पुवा आँख न खोलत हौ
संकट में कुकरे के पिल्ला जैसे कूँ कूँ बोलत हौ
जैसे कत्तो घाव लगल हौ हाँफ़त औ कराहत हौ
इम्तहान के चिटइस चिटिया मुंह में घोंटल चाहत हौ
सहसा हँसे ठठाकर पप्पुवा फिर गुरेर के देखलस
अँधियारन में एक तीर ऊ खूब साधकर मरलस

अच्छा देखा एहर आवा बात सुना तू अइसन हउवे
लव लेटर लिखै के हमरे कॉलेज में कम्पटीसन हउवे
हमरो कहना मान मुसमिया रात आज के बीतै दे
सबसे बढ़िया लव लेटर पे पुरस्कार हौ, जीतै दे

--- कैलाश गौतम

September 17, 2018

छींक

ज़िल्लेइलाही
शहंशाह-ए-हिन्दुस्तान
आफ़ताब-ए-वक़्त
हुज़ूर-ए-आला !

परवरदिगार
जहाँपनाह !

क्षमा करें मेरे पाप |

मगर ये सच है
मेरी क़िस्मत के आक़ा,
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे
के हक़दार,
ये बिल्कुल सच है

कि अभी-अभी
आपको
बिल्कुल इनसानों जैसी
छींक आयी |

--- उदय प्रकाश

September 7, 2018

अव्यवस्था

देखो -
मेरे मन के ड्राअर में
तुम्हारी स्मृति के पृष्ठ,
कुछ बिखर से गये हैं !
समय के हाथों से
कुछ छितर से गये हैं !
आओ -
तनिक इन्हें सँवार दो,
तनिक सा दुलार दो,
और फिर जतन से सहेज कर -
अपने विश्वास के आलपिन में बद्ध कर,
प्यार के पेपरवेट से
तनिक सा दबा दो !

---ममता कालिया

September 5, 2018

कवि

निकलता है
पानी की चिन्ता में
लौटता है लेकर समुन्दर अछोर

ठौर की तलाश में
निकलता है
लौटता है हाथों पर धारे वसुन्धरा

सब्जियाँ खरीदने
निकलता है
लौटता है लेकर भरा-पूरा चांद

अंडे लाने को
निकलता है
लौटता है कंधों पर लादे ब्रह्मांड

हत्यारी नगरी में
निकलेगा इसी तरह किसी रोज़
तो लौट नहीं पाएगा!

--राकेश रंजन

August 16, 2018

व्याख्या

एक दिन कहा गया था
दुनिया की व्याख्या बहुत हो चुकी
ज़रूरत उसे बदलने की है
तब से लगातार
बदला जा रहा है
दुनिया को
बदली है अपने-आप भी
पर क्या अब यह नहीं लगता
कि और बदलने से पहले
कुछ
व्याख्या की ज़रूरत है ?

--- नेमिचंद्र जैन

August 15, 2018

अधिनायक

राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरिचरना गाता है l
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है l
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमग़े कौन लगाता है l
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज़ बजाता है l

---रघुवीर सहाय

August 6, 2018

हिरोशिमा

एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक :
धूप बरसी
पर अंतरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से.

छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं - वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचो-बीच नगर के :
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में.

कुछ क्षण का वह उदय-अस्त !
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी.
फिर ?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकर
मानव ही सब भाप हो गये.
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर.

मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सोख गया.
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है.

---अज्ञेय