10 दिसंबर 2020

Let them not say

Let them not say: we did not see it.
We saw.

Let them not say: we did not hear it.
We heard.

Let them not say: they did not taste it.
We ate, we trembled.

Let them not say: it was not spoken, not written.

We spoke,
we witnessed with voices and hands.
Let them not say: they did nothing.
We did not-enough.

Let them say, as they must say something:

A kerosene beauty.
It burned.

Let them say we warmed ourselves by it,
read by its light, praised,
and it burned.

---Jane Hirshfield


6 दिसंबर 2020

अगर रोज कर्फ्यू के दिन हों

अगर रोज कर्फ्यू के दिन हों
तो कोई अपनी मौत नहीं मरेगा
कोई किसी को मार देगा
पर मैं स्वाभाविक मौत मरने तक
जिन्दा रहना चाहता हूँ
दूसरों के मारने तक नहीं
और रोज की तरह
अपना शहर रोज घूमना चाहता हूँ।

शहर घूमना मेरी आदत है ऐसी
आदत कि कर्फ्यू के दिन भी
किसी तरह दरवाजे खटखटा कर
सबके हालचाल पूछूँ

हो सकता है हत्यारे का दरवाजा भी खटखटाऊँ
अगर वह हिन्दू हुआ तो
अपनी जान हिन्दू कह कर न बचाऊँ
मुसलमान कहूँ
अगर मुसलमान हुआ तो
अपनी जान मुसलमान कह कर न बचाऊँ
हिन्दू कहूँ

हो सकता है इसके बाद
भी मेरी जान बच जाये
तो मैं दूसरों के मारने तक नहीं
अपने मरने तक जिन्दा रहूँ।

-- विनोद कुमार शुक्ल

3 दिसंबर 2020

Where Are the War Poets?

They who in folly or mere greed
Enslaved religion, markets, laws,
Borrow our language now and bid
Us to speak up in freedom’s cause.

It is the logic of our times,
No subject for immortal verse—
That we who lived by honest dreams
Defend the bad against the worse.

--- Cecil Day-Lewis

29 नवंबर 2020

“In Jerusalem”

In Jerusalem, and I mean within the ancient walls,
I walk from one epoch to another without a memory
to guide me. The prophets over there are sharing
the history of the holy ... ascending to heaven
and returning less discouraged and melancholy, because love
and peace are holy and are coming to town.

I was walking down a slope and thinking to myself: How
do the narrators disagree over what light said about a stone?
Is it from a dimly lit stone that wars flare up?
I walk in my sleep. I stare in my sleep. I see
no one behind me. I see no one ahead of me.
All this light is for me. I walk. I become lighter. I fly

then I become another. Transfigured. Words
sprout like grass from Isaiah’s messenger
mouth: “If you don’t believe you won’t be safe.”
I walk as if I were another. And my wound a white
biblical rose. And my hands like two doves
on the cross hovering and carrying the earth.

I don’t walk, I fly, I become another,
transfigured. No place and no time. So who am I?
I am no I in ascension’s presence. But I
think to myself: Alone, the prophet Muhammad
spoke classical Arabic. “And then what?”
Then what? A woman soldier shouted:

Is that you again? Didn’t I kill you?
I said: You killed me ... and I forgot, like you, to die.

--- Mahmoud Darwish

27 नवंबर 2020

जितना चिल्लात है उतना चोटान थोड़े है

तू जेतना समझत हौ ओतना महान थोड़े है
ख़ान तो लिखत हैं लेकिन पठान थोड़े है

मार-मार के हमसे बयान करवाईस
ईमानदारी से हमरा बयान थोड़े है

देखो आबादी मा तो चीन का पिछाड़ दिहिस
हमरे देस का किसान मरियल थोड़े है

हम ई मानित है मोहब्बत में चोट खाईस है
जितना चिल्लात है ओतना चोटान थोड़े है

ऊ छत पे खेल रही फुलझड़ी पटाखा से
हमरे छप्पर के ओर उनका ध्यान थोड़े है

चुनाव आवा तब देख परे नेताजी
तोहरे वादे का जनता भुलान थोड़े है

"रफ़ीक" मेकप औ' मेंहदी के ई कमाल है सब
तू जेतना समझत हौ ओतनी जवान थोड़े है.

--- रफ़ीक शादानी

19 नवंबर 2020

संविधान

यह पुस्‍तक मर चुकी है
इसे मत पढ़ो
इसके लफ्जों में मौत की ठण्‍डक है
और एक-एक पन्‍ना
जिंदगी के अंतिम पल जैसा भयानक
यह पुस्‍तक जब बनी थी
तो मैं एक पशु था
सोया हुआ पशु
और जब मैं जागा
तो मेरे इंसान बनने तक
ये पुस्‍तक मर चुकी थी
अब अगर इस पुस्‍तक को पढ़ोगे
तो पशु बन जाओगे
सोये हुए पशु।

---पाश

18 नवंबर 2020

Title Song from Bharat Ek Khoj

सृष्टी से पहले सत् नहीं था
असत् भी नहीं 
अन्तरिक्ष भी नहीं 
आकाश भी नहीं था 
छिपा था क्या? 
कहाँ? 
किसने ढका था? 
उस पल तो अगम अतल जल भी कहाँ था? ।।१।। 

नहीं थी मृत्यू
थी अमरता भी नहीं
नहीं था दिन 
रात भी नहीं
हवा भी नहीं 
साँस थी स्वयमेव फिर भी 
नही था कोई कुछ भी
परमतत्त्व से अलग या परे भी ।।२।। 

अंधेरे में अंधेरा-मुँदा अँधेरा था
जल भी केवल निराकार जल था
परमतत्त्व था सृजन-कामना से भरा 
ओछे जल से घिरा 
वही अपनी तपस्या की महिमा से उभरा ।।३।। 

परम मन में बीज पहला जो उगा 
काम बनकर वह जगा 
कवियों ग्यानियों ने जाना 
असत् और सत् का निकट संबंध पहचाना ।।४।। 

फैले संबंध के किरण धागे तिरछे 
परमतत्त्व उस पल ऊपर या नीचे? 
वह था बँटा हुआ 
पुरुष और स्त्री बना हुआ 
ऊपर दाता वही भोक्ता 
नीचे वसुधा स्वधा हो गया ।।५।। 

सृष्टी यह बनी कैसे? 
किससे? 
आई है कहाँ से? 
कोई क्या जानता है? 
बता सकता है? 
देवताओं को नहीं ग्यात
 वे आए सृजन के बाद 
सृष्टी को रचां है जिसने 
उसको जाना किसने? ।।६।। 

सृष्टी का कौन है कर्ता? 
कर्ता है वा अकर्ता? 
ऊँचे आकाश में रहता 
सदा अध्यक्ष बना रहता 
वही सचमुच में जानता 
या नहीं भी जानता है 
किसी को नहीं पता 
नहीं पता नहीं है पता ।।७।।