तुम चाहत हौ भाईचारा?
उल्लू हौ।
देखै लाग्यौ दिनै मा तारा?
उल्लू हौ।
समय कै समझौ यार इशारा
उल्लू हौ,
तुमहू मारौ हाथ करारा
उल्लू हौ।
जवान बीवी छोड़ के दुबई भागत हौ?
जैसे तैसे करौ गुजारा
उल्लू हौ।
कहत रहेन ना फँसौ प्यार के चक्कर मा
झुराय के होइ गयेव छोहारा
उल्लू हौ।
डिगिरी लैके बेटा दर दर भटकौ ना,
हवा भरौ बेँचौ गुब्बारा
उल्लू हौ।
इनका उनका रफीक का गोहरावत हौ?
जब उ चहिहैं मिले किनारा
उल्लू हौ
--- रफ़ीक शादानी
उल्लू हौ।
देखै लाग्यौ दिनै मा तारा?
उल्लू हौ।
समय कै समझौ यार इशारा
उल्लू हौ,
तुमहू मारौ हाथ करारा
उल्लू हौ।
जवान बीवी छोड़ के दुबई भागत हौ?
जैसे तैसे करौ गुजारा
उल्लू हौ।
कहत रहेन ना फँसौ प्यार के चक्कर मा
झुराय के होइ गयेव छोहारा
उल्लू हौ।
डिगिरी लैके बेटा दर दर भटकौ ना,
हवा भरौ बेँचौ गुब्बारा
उल्लू हौ।
इनका उनका रफीक का गोहरावत हौ?
जब उ चहिहैं मिले किनारा
उल्लू हौ
--- रफ़ीक शादानी
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-०४-२०२१) को ' खून में है गिरोह हो जाना ' (चर्चा अंक-४०२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
Bahut bahut dhnaywawaad
Deleteअच्छा व्यंग्य रचा है आपने रफीक जी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसच हम तो उल्लू ही हैं।
ReplyDeleteशानदार व्यंग्य रचना।
लाजवाब शादाब जी ।
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