1 अप्रैल 2021

उल्लू हौ

तुम चाहत हौ भाईचारा?
उल्लू हौ।
देखै लाग्यौ दिनै मा तारा?
उल्लू हौ।
समय कै समझौ यार इशारा
उल्लू हौ,
तुमहू मारौ हाथ करारा
उल्लू हौ।
जवान बीवी छोड़ के दुबई भागत हौ?
जैसे तैसे करौ गुजारा
उल्लू हौ।
कहत रहेन ना फँसौ प्यार के चक्कर मा
झुराय के होइ गयेव छोहारा
उल्लू हौ।
डिगिरी लैके बेटा दर दर भटकौ ना,
हवा भरौ बेँचौ गुब्बारा
उल्लू हौ।
इनका उनका रफीक का गोहरावत हौ?
जब उ चहिहैं मिले किनारा
उल्लू हौ

--- रफ़ीक शादानी

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-०४-२०२१) को ' खून में है गिरोह हो जाना ' (चर्चा अंक-४०२५) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।

    --
    अनीता सैनी

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  2. अच्छा व्यंग्य रचा है आपने रफीक जी ।

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  3. सच हम तो उल्लू ही हैं।
    शानदार व्यंग्य रचना।

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