20 अक्टूबर 2023

कोई नहीं मरता अपने-पाप से

मेरे जीवन में एक ऐसा वक़्त आ गया है
जब खोने को
कुछ भी नहीं है मेरे पास—
दिन, दोस्ती, रवैया,
राजनीति,
गपशप, घास
और स्त्री हालाँकि वह बैठी हुई है
मेरे पास
कई साल से
क्षमाप्रार्थी हूँ मैं काल से
मैं जिसके सामने निहत्था हूँ
निसंग हूँ—
मुझे न किसी ने प्रस्तावित किया है
न पेश।
मंच पर खड़े होकर
कुछ बेवक़ूफ़ चीख़ रहे हैं
कवि से
आशा करता है
सारा देश।
मूर्खों! देश को खोकर ही
मैंने प्राप्त की थी
यह कविता
जो किसी की भी हो सकती है
जिसके जीवन में
वह वक़्त आ गया हो
जब कुछ भी नहीं हो उसके पास
खोने को।
जो न उम्मीद करता हो
न अपने से छल
जो न करता हो प्रश्न
न ढूँढ़ता हो हल।
हल ढूँढ़ने का काम
कवियों ने ऊबकर
सौंप दिया है
गणितज्ञ पर
और उसने
राजनीति पर।
कहाँ है तुम्हारा घर? अपना देश खोकर कई देश लाँघ
पहाड़ से उतरती हुई
चिड़ियों का झुंड
यह पूछता हुआ ऊपर-ऊपर
गुज़र जाता है : कहाँ है तुम्हारा घर?
दफ़्तर में, होटल में, समाचार-पत्र में,
सिनेमा में,
स्त्री के साथ खाट में?
नावें कई यात्रियों को
उतारकर
वेश्याओं की तरह
थकी पड़ी हैं घाट में।

मुझे दुख नहीं मैं किसी का नहीं हुआ। दुख है
कि मैंने सारा समय
हरेक का होने की
कोशिश की।
प्रेम किया। प्रेम करते हुए
एक स्त्री के कहने पर
भविष्य की खोज की और एक दिन
सब कुछ पा लेने की
सरहद पर
दिखा एक द्वार: एक ड्राइंगरूम।
भविष्य
वर्तमान के लाउंज की तरह
कहीं जाकर खुल
जाता है।

रुको,
कोई आता है
सुनाई पड़ती है
किसी के पैरों की
चाप।
कोई मेरे जूतों का माप
लेने आ रहा है।

मेरे तलुए घिस गए हैं
और फीतों की चाबुक
हिला-हिला
मैंने आस-पास की भीड़ को
खदेड़ दिया है,
भगा दिया है।
औरों के साथ
दग़ा करती है स्त्री
मेरे साथ मैंने
दग़ा किया है।
पछतावा नहीं; यह एक क़ानून था जिसमें से होकर
मुझे आना था।
असल में यह एक
बहाना था
एक दिन अयोध्या से जाने का
मैं अपने कारख़ाने का
एक मज़दूर भी
हो सकता था
मैं अपना अफ़सोस
ढो सकता था
बाज़ार में लाने को
बेचैन हो सकता था कविता
सुनाने को
फिर से एक बार इसे और उसे और उसे
पाने को

लेकिन एक बार उड़ जाने के बाद
इच्छाएँ
लौटकर नहीं आतीं
किसी और जगह पर
घोंसले बनाती हैं
विधवाएँ बुड़बुड़ाती हैं
रँडापे पर
तरस खाती हैं
बुढ़ापे पर
नौजवान स्त्रियाँ
गली में ताक़-झाँक करती हैं
चेचक और हैजे से
मरती हैं
बस्तियाँ
कैंसर से
हस्तियाँ
वकील
रक्तचाप से
कोई नहीं
मरता
अपने-पाप से
धुँआ उठ रहा है कई
माह से। दिन
चला जाता है
मारकर छलाँग एक ख़रगोश-सा।
बंद होने वाली दुकानों के दिल में
रह जाता है
कुछ-कुछ अफ़सोस-सा।

---श्रीकांत वर्मा

15 अक्टूबर 2023

रात भर

'रात भर चलती हैं रेलें
ट्रक ढोते हैं माल रात भर
कारख़ाने चलते हैं
कामगार रहते हैं बेहोश
होशमंद करवटें बदलते हैं
रात भर
अपराधी सोते हैं
अपराधों का कोई सम्बन्ध अब
अँधेरे से नहीं रहा
सुबह सभी दफ़्तर
खुलते हैं अपराध के'

~ नरेश सक्सेना

9 अक्टूबर 2023

ख़तरे में इस्लाम नहीं

ख़तरा है ज़रदारों को, गिरती हुई दीवारों को

सदियों के बीमारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

सारी ज़मीं को घेरे हुए हैं आख़िर चंद घराने क्यों

नाम नबी का लेने वाले उल्फ़त से बेगाने क्यों

ख़तरा है खूंखारों को, रंग बिरंगी कारों को

अमरीका के प्यारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

आज हमारे नारों से लज़ी है बया ऐवानों में

बिक न सकेंगे हसरतों अमां ऊंची सजी दुकानों में

ख़तरा है बटमारों को, मग़रिब के बाज़ारों को

चोरों को मक्कारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

अम्न का परचम लेकर उठो, हर इंसां से प्यार करो

अपना तो मंशूर है ‘जालिब’, सारे जहां से प्यार करो

ख़तरा है दरबारों को, शाहों के ग़मख़ारों को

नव्वाबों ग़द्दारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

2 अक्टूबर 2023

You and I


You’re beautiful like a liberated homeland

I’m exhausted like a colonized one.

You’re sad as a forsaken person, fighting on

I’m agitated as a war near at hand.

You’re desired like the end of a raid

I’m terrified as if I’m searching the debris.

You’re brave like a trainee pilot

I’m as proud as his grandmother may be.

You’re anxious like a patient’s dad,

I’m as calm as his nurse.

You’re as sweet as dew

And to grow, I need you.

We’re both as wild as vengeance

We’re both as gentle as forgiveness.

You’re strong like the court’s pillars

I’m bewildered like I’ve endured prejudice.

And whenever we meet

We talk, without pause, like two lawyers

Defending

The world…


--- Mourid Barghouti (Translator: Dina Al-Mahdy)

27 सितंबर 2023

15 बेहतरीन शेर - 8 !!!

1. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता --- क़ाबिल अजमेरी

2. दिल था एक शोला मगर बीत गए वो दिन "क़तील", अब कुरेदो न इसे, राख में रखा क्या है ! क़तील शिफ़ाई

3. हद से बढ़े जो इल्म, तो है ज़हर दोस्तों, सब कुछ जो जानते हैं, वो कुछ जानते नहीं...! खुमार बाराबंकवी

4. इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं, आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है, या फ़रार...!!! - दुष्यंत कुमार

5. लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास, सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए...! - परवीन शाकिर

7. बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने, क्या शहर-ए-मुहब्बत में हज्जाम नहीं होता... - ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'

8. गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वां तुझे , पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ ...! - नज़्म तबातबाई

9. ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं, नाव काग़ज़ की सदा चलती नहीं - इस्माईल मेरठी

10. ख़याल ए ज़ुल्फ़ में हर दम नसीर पीटा कर, गया है साँप निकल अब लकीर पीटा कर - शाह नसीर

11. 'जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने' ~ शहरयार

12. वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता, मगर इन एहतियातों से ताल्लुक़ मर नहीं जाता...!!! - वसीम बरेलवी

13. रात ही रात में तमाम तय हुए उम्र के मक़ाम, हो गई ज़िंदगी की शाम अब मैं सहर को क्या करूं... - हफ़ीज़ जालंधरी

14. 'ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले' ~ कैफ़ भोपाली

15. हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं हम से ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं - जिगर मुरादाबादी

22 सितंबर 2023

डरो

कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो

सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाज़िमी तो नहीं था

देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे

सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें

पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो

लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी

डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुकुम होगा कि डर

--- विष्णु खरे

18 सितंबर 2023

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम MA फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम फौजी अफसर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूं
तुम रबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सपरेटा हूं
तुम AC घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूं
तुम नई मारुती लगती हो, मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूं

इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढ़ाएंगे
तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएंगे
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे वो भिजवा देंगे जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूं गदहे की नाल प्रिये
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखों की हड़ताल प्रिये
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं एल्युमिनियम का थाल प्रिये
तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये

तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मैं हूं कछुए की चाल प्रिये
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूं बबूल की छाल प्रिये
मैं पके आम सा लटका हूं मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

मैं शनि देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कंचन काया हो
मैं तन से मन से कांशीराम, तुम महा चंचला माया हो
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूं
तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिन्दू-मुस्लिम दंगा हूं

मैं ढाबे के ढांचे जैसा, तुम पांच-सितारा होटल हो
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम ‘रेड लेबल’ की बोतल हो
तुम चित्रहार का मधुर गीत, मैं कृषि दर्शन की झाड़ी हूं
तुम विश्व सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया-छाप कबाड़ी हूं

तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला चोगा
तुम मछली मनसरोवर की, मैं हूं सागर तट का घोंघा
दस मंजिल से गिर जाऊंगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

मुझको रेफ्री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये