1 मई 2010

कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया

कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया ।
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया ॥

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।
क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया ?

किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं ?
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया ॥

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त !
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ॥

--- Sahir ludhianvi

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
उस निगाह-ए-आशना को क्या समझ बैठे थे हम

रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये
वाह री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम

होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकी
इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम

बेनियाज़ी को तेरी पाया सरासर सोज़-ओ-दर्द
तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम

भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती
उस को भी अपनी तबीयत का समझ बैठे थे हम

हुस्न को इक हुस्न की समझे नहीं और ऐ 'फ़िराक़'
मेहरबाँ नामेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम |

--- Firaq Gorakhpuri

I Don't Wield Weapons:

I Don't Wield Weapons:
Mother
When I came out of your
womb no sword was gifted
nor gun
nor bomb;
you endowed me only a life.
Now
should I protest in regret
Condemning you
Pulling you out of the
grave!

--- Thoudam Netrajit Singh

Khwaab Martay Naheen

ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें कि जो
रेज़ा-रेज़ा[1] हुए तो बिखर जाएँगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रोशनी हैं नवा हैं[2] हवा हैं
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नहीं
रोशनी और नवा के अलम
मक़्तलों[3] में पहुँचकर भी झुकते नहीं
ख़्वाब तो हर्फ़[4] हैं
ख़्वाब तो नूर[5] हैं
ख़्वाब सुक़रात [6] हैं
ख़्वाब मंसूर[7]हैं.

--- अहमद फ़राज़

1-↑ कण-कण
2-↑ आवाज़
3-↑ वधस्थल
4-↑ अक्षर
5-↑ प्रकाश
6-↑ जिन्हें सच कहने के लिए ज़ह्र का प्याला पीना पड़ा था
7- ↑ एक वली(महात्मा) जिन्होंने ‘अनलहक़’ (मैं ईश्वर हूँ) कहा था और इस अपराध के लिए उनकी गर्दन काट डाली गई थी

(Dreams Do Not Die)
Dreams are not heart, nor eyes or breath
Which shattered, will scatter (or)
Die with the death of the body.

Dreams do not die.
But dreams are light, voice, wind,
Which cannot be stopped by mountains black,
Which do not perish in the hells of cruelty,
Ensigns of light and voice and wind,
Bow not, even in abattoirs.

But dreams are letters,
But dreams are illumination,
Dreams are Socrates,
Dreams - Divine Victory!'

29 अप्रैल 2010

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

आओ शाही बैण्ड बजायें,
आओ बन्दनवार सजायें,
खुशियों में डूबे उतरायें,
आओ तुमको सैर करायें--
उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

तुम मुस्कान लुटाती आओ,
तुम वरदान लुटाती जाओ,
आओ जी चांदी के पथ पर,
आओ जी कंचन के रथ पर,
नज़र बिछी है, एक-एक दिक्पाल की
छ्टा दिखाओ गति की लय की ताल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

सैनिक तुम्हें सलामी देंगे
लोग-बाग बलि-बलि जायेंगे
दॄग-दॄग में खुशियां छ्लकेंगी
ओसों में दूबें झलकेंगी
प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र के भाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

बेबस-बेसुध, सूखे-रुखडे़,
हम ठहरे तिनकों के टुकडे़,
टहनी हो तुम भारी-भरकम डाल की
खोज खबर तो लो अपने भक्तों के खास महाल की !
लो कपूर की लपट
आरती लो सोने की थाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो
प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो
पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो
पार्लमेण्ट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो
मिनिस्टरों से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लो
दायें-बायें खडे हज़ारी आफ़िसरों से प्यार लो
धनकुबेर उत्सुक दीखेंगे उनके ज़रा दुलार लो
होंठों को कम्पित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो
बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो

यह तो नयी नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो
एक बात कह दूं मलका, थोडी-सी लाज उधार लो
बापू को मत छेडो, अपने पुरखों से उपहार लो
जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की !
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

--- नागार्जुन

27 अप्रैल 2010

दिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए

बात कम कीजिए, ज़हानत को छुपाते रहिये
अजनबी शहर है यह, दोस्त बनाते रहिये

दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजिए रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये

ये तो चेहरे का फ़क़त अक्स है तस्वीर नहीं
इस पे कुछ रंग अभी और चढाते रहिये

गम है आवारा अकेले मैं भटक जाता है
जिस जगह रहिये वहां मिलते मिलाते रहिये

जाने कब चाँद बिखर जाए घने जंगल मैं
अपने घर के दर-ओ-दीवार सजाते रहिये

--- निदा फ़ाज़ली

26 अप्रैल 2010

Be the best of whatever you are!

If you can't be a pine on the top of the
Be a scrub in the valley--but be
The best little scrub by the side of the rill;
Be a bush if you can't be a tree.
If you can't be a bush be a bit of the grass,
And some highway some happier make;
If you can't be a muskie then just be a bass--
But the liveliest bass in the lake!
We can't all be captains, we've got to be crew,
There's something for all of us here.
There's big work to do and there's lesser to do,
And the task we must do is the near.
If you can't be a highway then just be a trail,
If you can't be the sun be a star;
It isn't by size that you win or you fail--
Be the best of whatever you are!
--- Douglas Malloch

25 अप्रैल 2010

The Road Not Taken

Two roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;

Then took the other, as just as fair,
And having perhaps the better claim,
Because it was grassy and wanted wear;
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,

And both that morning equally lay
In leaves no step had trodden black.
Oh, I kept the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way,
I doubted if I should ever come back.

I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I—
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.

- Robert Frost

23 अप्रैल 2010

Noon

The noon a mystic dog with paws of fire
Runs through the sky in ecstasy of drouth
Licking the earth with tongue of golden flame
Set in a burning mouth

It floods the forest with loud barks of light
And chases its own shadow on the plains
Some secret Master-hand hath set it free
Awhile from silver chains

At last towards the cinctured end of day
It drinks cool draughts from sunset-mellowed rills,
Then chained to twilight by the Master's hand
It sleeps among the hills.

--- Harindranath Chattopadhyay

22 अप्रैल 2010

ये दाग-दाग उजाला

ये दाग दाग उजाला, ये शब-गजीदा सहर,
वो इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं

ये वो सहर तो नहीं जिस की आरजू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तारों कि आखरी मंजिल

कहीं तो होगा शब-ऐ-सुस्त मौज का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफीना-ऐ-गम-ऐ-दिल
जवां लहू की पुर-असरार शाहराहों से

चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ऐ-हुस्न की बे-सब्र खाब-गाहों से
पुकारती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे

बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुख-ऐ-सहर की लगन
बहुत करीं था हसीना-ऐ-नूर का का दामन
सुबुक सुबुक थी तमन्ना , दबी दबी थी थकन


सुना है हो भी चुका है फिराक-ऐ-जुल्मत-ऐ-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ऐ-मंजिल-ओ-गाम

बदल चुका है बहुत अहल-ऐ-दर्द का दस्तूर
निशात-ऐ-वस्ल हलाल-ओ-अजाब-ऐ-हिज़र-ऐ-हराम
जिगर की आग, नज़र की उमंग, दिल की जलन

किसी पे चारा-ऐ-हिज्राँ का कुछ असर ही नहीं
कहाँ से आई निगार-ऐ-सबा , किधर को गई
अभी चिराग-ऐ-सर-ऐ-राह को कुछ ख़बर ही नहीं

अभी गरानी-ऐ-शब में कमी नहीं आई
नजात-ऐ-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो की वो मंजिल अभी नहीं आई
- फैज़ अहमद फैज़.