बड़ी उलझन में पड़ जाता हूँ मेरे देश,
देखता हूँ जब भी तुम्हें मुख़्तलिफ़ शक्लों,रंगों और नारों में!
तुम्हें ढोता हूँ अब अपने माथे पर
मेरे लहू और मेरी मौत के बीच:
तुम गुलाब हो या क़ब्रगाह?
तुम्हें देखता हूँ बच्चों की तरह
अपने पेट को घसीटते गुड़कते हुए
आज्ञाकारी,दण्डवत अपनी खुद की पहनाई हुई बेड़ियों में
हर चाबुक के लिए अलग चमड़ी पहनते हुए...
तुम गुलाब हो या क़ब्रगाह?
तुमने मेरी हत्या की
तुमने मेरे गीतों की हत्या की
तुम सिर्फ जनसंहार हो
या कोई क्रांति?
बड़ी उलझन में पड़ जाता हूँ मेरे देश जब भी
देखता हूँ तुम्हें मुख़्तलिफ़ शक्लों,रंगों और नारों में...
#अडोनिस
रूपांतर:#सुधांशु फ़िरदौस
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