28 अप्रैल 2020

जावेद अख्तर के नाम

1)
जादू, बयान तुम्हारा, और पुकार सुनी है
तुम ‘एकला’ नहीं, हमने वो ललकार सुनी है

बोली लगी थी कल, कि सिंहासन बिकाऊ थे
नीलाम होती कल, सर-ए-बाज़ार सुनी थी

तुम ने भी खून-ए-दिल में डुबोई हैं उंगलियां
हमने क़लम की पहले भी झंकार सुनी है

2)
जो बात कहते डरते हैं सब, तू वो बात लिख
इतनी अंधेरी थी ना कभी पहले रात, लिख

जिनसे क़सीदे लिखे थे, वो फेंक दे क़लम
फिर खून-ए-दिल से सच्चे कलाम की सिफ़त लिख

जो रोज़नामचे में कहीं पाती नहीं जगह
जो रोज़ हर जगह की है, वो वारदात लिख

जितने भी तंग दायरे हैं सारे तोड़ दे
अब आ खुली फिज़ाओं में, अब कायनात लिख

जो वाक़यात हो गए उनका तो जिक्र है
लेकिन जो होने चाहिए, वो वाक़यात लिख

इस जगह में जो देखनी है तुझ को फिर बहार
तू डाल-डाल दे सदा, तू पात-पात लिख

--- गुलज़ार

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