Poetry is untranslatable, like the whole art.
"जिनकी जेबें भरने के लिए
किसानों का पेट तुम काट रहे
सब जानते हैं छुप-छुप कर
किस-किसके तलवे चाट रहे
क्यों तुमसे न वह आज लड़ेगा
मूर्तियाँ गिराते-गिराते
गिर गए हैं जो अपने भीतर
हुजूम किसानों का फिर से उन्हें
सवालों के चौराहे पर खड़ा करेगा।"
—जसिंता केरकेट्टा
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