क्या तुम्हें मालूम है
भीड़ से कुछ पूछने भी
जानलेवा जुर्म है
तफशीष करने आये हो
खुल कर लो शौक से
फर्क पड़ता है कहा है
एक दो की मौत से
चार दिन चर्चा उठेगी
डेमोक्रेसी लाएंगे
पांचवे दिन सब काम पे
लग जाएंगे
काम से ही काम रखना
हा मगर ये याद रखना
कोई पूछे कौन थे
बस तुम्हे इतना ही कहना
भीड़ थी कुछ लोग थे
फिर भी कोई ज़िद पकड़ले
क्या हुआ किसने किया
सोच के उंगली उठाना
कट रही है उंगलियां
बात को कुछ यूं घूमना
नफरतो के रोग थे
धर्म न जात उनके
भीड़ थी
कुछ लोग थे
--- नवीन चौरे
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