February 29, 2024

जब माँएँ नहीं होतीं

जिन बच्चों की माँएँ नहीं होतीं
उनकी रेलगाड़ियाँ कहाँ जाती हैं
धड़धड़ाती हुईं
सीटी बजाती हुईं
धुआँ उड़ाती हुईं
उनके इंतज़ार में शिद्दत से बिछी आँखों को
फिर वे कहाँ खोजने जाते हैं
आँचल का वह सिरा
उन हाथों का स्पर्श
उस अनंत नि:स्वार्थ प्रेम के बिना
वे कैसे जीते हैं
यह जानते हुए भी कि इस दुनिया में
उनसे सबसे ज़्यादा प्यार करने वाली आँखें नहीं रहीं
और दुनिया का सबसे कोमल हृदय
उनके लिए अब और नहीं धड़केगा।

---दीपक जायसवाल

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 02 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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