26 मार्च 2024

फरसा

हमारा जातक भी
जातक कथाओं में
अपनी माता को
जाँता से आटा
बनाते हुए देखता है
उनका मिथकीय पात्र
फरसा लिए
कभी खेत में नहीं जाता
माँ की हत्या के लिए जाता है
इस तरह
गेंहू पैदा हुआ ही नहीं
श्रम कभी देखा ही नहीं
बेशर्म सदा मांग कर खाया
फरसा भी सदा क़त्ल के लिए उठाया
एक किसान यही सोचकर
पसीने से फरसा पोछकर
अपनी टूटी हड्डियाँ जोड़कर
सो गया खेत की मेड़ पर।
 
- बच्चा लाल 'उन्मेष'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें