जातक कथाओं में
अपनी माता को
जाँता से आटा
बनाते हुए देखता है
उनका मिथकीय पात्र
फरसा लिए
कभी खेत में नहीं जाता
माँ की हत्या के लिए जाता है
इस तरह
गेंहू पैदा हुआ ही नहीं
श्रम कभी देखा ही नहीं
बेशर्म सदा मांग कर खाया
फरसा भी सदा क़त्ल के लिए उठाया
एक किसान यही सोचकर
पसीने से फरसा पोछकर
अपनी टूटी हड्डियाँ जोड़कर
सो गया खेत की मेड़ पर।
- बच्चा लाल 'उन्मेष'
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