किताब का पहला पन्ना
खोला
देर तक किताबों में ढूँढ़ा
अपने पिता को
मिस्त्री का बच्चा
ढूँढ़ता रहा
मिस्त्री किताबों में
दुनिया के सबसे बड़े महलों
मीनारों का इतिहास
पढ़ता हुआ
घस्यारिन के बच्चे
घस्यारिने ढूँढ़ते रहे
पहाड़ों के बारे में पढ़ते हुए
किताबों में
नाई की बच्ची
ढूँढ़ती रही
क़ैंची से निकलती
गौरैया-सी आवाज़ के साथ
अपने पिता को
किताबों में
सफ़ाईकर्मी
का बच्चा ढूँढ़ता रहा
एक साफ़-सुथरी बात
कि उसका पिता क्यों नहीं है किताबों में
कौन इन्हें बताए
यह दुनिया केवल
डॉक्टर, इंजीनियर, मास्टर, प्रोफ़ेसरों की है
तहसीलदार, ज़िलाधीशों की है
इसमें मजूरों, किसानों,
नाई और घस्यारिनों की कोई जगह नहीं
मेरे प्यारे बच्चो,
ये किताबें बदलनी हैं तुम्हें!
- अनिल कार्की
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