May 20, 2021

शव वाहिनी गंगा

एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी
थके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

नित लगातार जलती चिताएँ
राहत माँगे पलभर
नित लगातार टूटे चूड़ियाँ
कुटती छाति घर घर
देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति
काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती
हो हिम्मत तो आके बोलो
‘मेरा साहेब नंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

---पारुल कक्कड
Hindi translation by Ilyas Sheikh

May 19, 2021

राजे ने अपनी रखवाली की

राजे ने अपनी रखवाली की; 
किला बनाकर रहा; 
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं । 
चापलूस कितने सामन्त आए । 
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए । 
कितने ब्राह्मण आए पोथियों में जनता को बाँधे हुए । 
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए, 
लेखकों ने लेख लिखे, 
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे, 
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे रंगमंच पर खेले । 
जनता पर जादू चला राजे के समाज का । 
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं । 
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ । 
लोहा बजा धर्म पर, 
सभ्यता के नाम पर । 
ख़ून की नदी बही । 
आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं । 
आँख खुली-- राजे ने अपनी रखवाली की । 

May 14, 2021

फिर भी

उसका कुछ भी तो नहीं था
पास मेरे
न कोई ख़त, न सपना
न कोई याद, न दुआ
न कोई अँगूठी, न छल्ला
न कोई रूमाल
उसका कुछ भी तो नहीं था
मेरे पास

न उसके साथ बिताया दिन कोई
न अकेले जाग कर काटी कोई रात
न ख़ामोशी, न आवाज़ कोई
न यादों में सुलगती कोई बात
कुछ भी नहीं था उसका
मेरे पास

न कोई पहाड़ों की स्मृति
न किसी समुन्दरी किनारे की रेत
न कोई गुनगुना दिन, न तीखी दोपहर
न किसी जाड़े की निघ्घी धूप
न उसकी हँसी, न गहरी चुप
उसका कुछ भी तो नहीं था
मेरे पास

उसका
कुछ भी तो नहीं था
पास मेरे

लेकिन फिर भी न जाने क्यों
वह छटपटा रही थी
मुझसे मुक्त होने के लिए ।

 ---अमरजीत कौंके