Nov 17, 2024

पत्रकारिता का सेल्फ़ीकरण

कई बार सोचता हूँ
बिलकुल सही समय पर
मर गए पत्रकारिता के पुरोधा,
नहीं रहे तिलक और गांधी,
नहीं रहे बाबूराव विष्णु पराड़कर
गणेश शंकर विद्यार्थी भी
हो गए शहीद
राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी
का भी हो गया अवसान।
आज ये ज़िंदा होते तो
खुद पर ही शर्मिन्दा होते
पत्रकारिता की झुकी कमर
और लिजलिजी काया देख कर
शोक मनाते
शायद जीते जी मर जाते
सुना है कि दिल्ली में
'सेल्फिश' पत्रकारिता अब
'सेल्फ़ी ' तक आ गयी है
हमारी खुदगर्ज़ी
हमको ही खा गयी है''

Nov 14, 2024

ये किताबें बदलनी हैं तुम्हें!

किसान के बच्चों ने
किताब का पहला पन्ना
खोला
देर तक किताबों में ढूँढ़ा
अपने पिता को

मिस्त्री का बच्चा
ढूँढ़ता रहा
मिस्त्री किताबों में
दुनिया के सबसे बड़े महलों
मीनारों का इतिहास
पढ़ता हुआ

घस्यारिन के बच्चे
घस्यारिने ढूँढ़ते रहे
पहाड़ों के बारे में पढ़ते हुए
किताबों में

नाई की बच्ची
ढूँढ़ती रही
क़ैंची से निकलती
गौरैया-सी आवाज़ के साथ

अपने पिता को
किताबों में
सफ़ाईकर्मी
का बच्चा ढूँढ़ता रहा

एक साफ़-सुथरी बात
कि उसका पिता क्यों नहीं है किताबों में
कौन इन्हें बताए
यह दुनिया केवल
डॉक्टर, इंजीनियर, मास्टर, प्रोफ़ेसरों की है
तहसीलदार, ज़िलाधीशों की है
इसमें मजूरों, किसानों,
नाई और घस्यारिनों की कोई जगह नहीं

मेरे प्यारे बच्चो,
ये किताबें बदलनी हैं तुम्हें!

- अनिल कार्की

Nov 2, 2024

चाँदनी की पाँच परतें

चाँदनी की पाँच परतें,
हर परत अज्ञात है ।

एक जल में,
एक थल में,
एक नीलाकाश में ।
एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती,
एक मेरे बन रहे विश्वास में ।

क्या कहूँ , कैसे कहूँ.....
कितनी ज़रा सी बात है ।
चाँदनी की पाँच परतें,
हर परत अज्ञात है ।

एक जो मैं आज हूँ,
एक जो मैं हो न पाया,
एक जो मैं हो न पाऊँगा कभी भी,
एक जो होने नहीं दोगी मुझे तुम,
एक जिसकी है हमारे बीच यह अभिशप्त छाया ।

क्यों सहूँ, कब तक सहूँ....
कितना कठिन आघात है ।
चाँदनी की पाँच परतें,
हर परत अज्ञात है ।