Jan 1, 2025

15 बेहतरीन शेर - 13 !!!

1. तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर, सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर - अमीर मीनाई

2.  जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर, ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की - जमील मज़हरी

3. 'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली, न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी - हफ़ीज़ जालंधरी

4. आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिए, गुलशन न बन सके तो बयाबाँ बनाइए - जिगर मुरादाबादी

5. फूल कर ले निबाह काँटों से, आदमी ही न आदमी से मिले - ख़ुमार बाराबंकवी

6. एक ही मसला ताउम्र मेरा हल न हुआ, नींद पूरी न हुई, ख़्वाब मुकम्मल न हुआ ...!!! -  मुनव्वर हाशमी

7. बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक, ख़ुशी का जी नहीं लगता ग़रीबख़ाने में...!!! - (नोमान शौक़)

8. इस सफ़र में नींद ऐसी खो गयी, हम न सोये रात थक कर सो गयी...!!! - राही मासूम रज़ा

9. जब तलक दूर है तू तेरी परस्तिश कर लें, हम जिसे छू न सकें उसको खुदा कहते हैं - अहमद फ़राज़

10. 'दुनिया से निराली है  नज़ीर अपनी कहानी, अंगारों से बच निकला हूँ, फूलों से जला हूँ' ~ नज़ीर बनारसी

11. 'हमने  तमाम  उम्र  अकेले  सफ़र  किया, हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही'  ~ दुष्यन्त कुमार

12.आदमी खुद को कभी यूं ही सजा देता है,  रौशनी के लिए शोलों को हवा देता है। -  गोपालदास 'नीरज'

13. मिरी निगाह में कुछ और ढूँडने वाले,  तिरी निगाह में कुछ और ढूँडता हूँ मैं - -महमूद ख़िज़ाँ

14.  तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें, ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है! - तहज़ीब हाफ़ी

15. और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गई, जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गई  - तहज़ीब हाफी

Dec 25, 2024

देह सिवा बरु मोहि इहै गुरु

 देह शिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरों।

न डरों अरि सो जब जाइ लरों निसचै करि अपुनी जीत करों ॥

अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों।

जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥

अर्थ

हे शिवा (शिव की शक्ति) मुझे यह वर दें कि मैं शुभ कर्मों को करने से कभी भी पीछे न हटूँ।

जब मैं युद्ध करने जाऊँ तो शत्रु से न डरूँ और युद्ध में अपनी जीत पक्की करूँ।

और मैं अपने मन को यह सिखा सकूं कि वह इस बात का लालच करे कि आपके गुणों का बखान करता रहूँ।

जब अन्तिम समय आये तब मैं रणक्षेत्र में युद्ध करते हुए मरूँ।

---  देह सिवा बरु मोहि इहै गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ के चण्डी चरितर में स्थित एक शबद है।

Dec 20, 2024

किराए का घर

किराए का घर बदलने पर
सिर्फ़ एक किराए का घर नहीं छूटता
उसके साथ एक किराने की दुकान भी छूट जाती है

कुछ भले पड़ोसी छूट जाते हैं
कुछ पेड़
कुछ पखेरू
एक सब्ज़ी की दुकान भी छूट जाती है
उन्हीं के पास

छूट जाते हैं
चाय के अड्डे
वहाँ की धूप-हवा-पानी
कुछ ठेले और खोमचे
वहीं छूट जाते हैं
जिन सड़कों पर सुबह-शाम चलते थे
अचानक उनका साथ छूट जाता है

हमारे लिए एक साथ कितना कुछ छूट जाता है
और उन सबके लिए
बस एक अकेला मैं छूटता होऊँगा

--- संदीप तिवारी