सिर्फ़ एक किराए का घर नहीं छूटता
उसके साथ एक किराने की दुकान भी छूट जाती है
कुछ भले पड़ोसी छूट जाते हैं
कुछ पेड़
कुछ पखेरू
एक सब्ज़ी की दुकान भी छूट जाती है
उन्हीं के पास
छूट जाते हैं
चाय के अड्डे
वहाँ की धूप-हवा-पानी
कुछ ठेले और खोमचे
वहीं छूट जाते हैं
जिन सड़कों पर सुबह-शाम चलते थे
अचानक उनका साथ छूट जाता है
हमारे लिए एक साथ कितना कुछ छूट जाता है
और उन सबके लिए
बस एक अकेला मैं छूटता होऊँगा
चाय के अड्डे
वहाँ की धूप-हवा-पानी
कुछ ठेले और खोमचे
वहीं छूट जाते हैं
जिन सड़कों पर सुबह-शाम चलते थे
अचानक उनका साथ छूट जाता है
हमारे लिए एक साथ कितना कुछ छूट जाता है
और उन सबके लिए
बस एक अकेला मैं छूटता होऊँगा
--- संदीप तिवारी
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