ज़िंदगी की कहानी रही अनकही !
दिन गुज़रते रहे, साँस चलती रही !
अर्थ क्या ? शब्द ही अनमने रह गए,
कोष से जो खिंचे तो तने रह गए,
वेदना अश्रु-पानी बनी, बह गई,
धूप ढलती रही, छाँह छलती रही !
बाँसुरी जब बजी कल्पना-कुंज में
चाँदनी थरथराई तिमिर पुंज में
पूछिए मत कि तब प्राण का क्या हुआ,
आग बुझती रही, आग जलती रही !
जो जला सो जला, ख़ाक खोदे बला,
मन न कुंदन बना, तन तपा, तन गला,
कब झुका आसमाँ, कब रुका कारवाँ,
द्वंद्व चलता रहा पीर पलती रही !
बात ईमान की या कहो मान की
चाहता गान में मैं झलक प्राण की,
साज़ सजता नहीं, बीन बजती नहीं,
उँगलियाँ तार पर यों मचलती रहीं !
और तो और वह भी न अपना बना,
आँख मूंदे रहा, वह न सपना बना !
चाँद मदहोश प्याला लिए व्योम का,
रात ढलती रही, रात ढलती रही !
यह नहीं जानता मैं किनारा नहीं,
यह नहीं, थम गई वारिधारा कहीं !
जुस्तजू में किसी मौज की, सिंधु के-
थाहने की घड़ी किन्तु टलती रही !
---Acharya Janki Ballabh Shashtri
8 जून 2011
कविता पर रोक
कविता लिखना चाहता हूँ
शर्त रख दी जाती हैः
मुसलमान हो तो;
कुरआन-हदीस पर मत लिखना.
ईसाई हो तो; ईसा के पिता का सवाल
नहीं उठाओगे.
हिंदू हो तो; अयोध्या छोड़कर सारी
‘रामायण’ लिख सकते हो.
मैं बोलना चाहता हूँ
तो प्रतिबंधित कर दिया जाता हूँ.
****शहरोज़
Thanks to BBC article for this poem.
शर्त रख दी जाती हैः
मुसलमान हो तो;
कुरआन-हदीस पर मत लिखना.
ईसाई हो तो; ईसा के पिता का सवाल
नहीं उठाओगे.
हिंदू हो तो; अयोध्या छोड़कर सारी
‘रामायण’ लिख सकते हो.
मैं बोलना चाहता हूँ
तो प्रतिबंधित कर दिया जाता हूँ.
****शहरोज़
Thanks to BBC article for this poem.
Shamm-E-Mazaar Thi Na Koi Sogwaar Tha
शम्म-ए-मज़ार थी ना कोई सोगवार था,
तुम जिस पे रो रहे थे वो किसका मज़ार था ।
तड़पूँगा उम्र भर दिल-ए-मर्हुम के लिये,
कम्बख़्त नामुराद लड़कपन का यार था ।
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़ुबान में,
तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था ।
क्या क्या हमारे सज़दे की रूसवाईयाँ हुई,
नक़्श-ए-क़दम किसी का सरे रह-गुज़ार था ।
---Bekhud Dehlvi
तुम जिस पे रो रहे थे वो किसका मज़ार था ।
तड़पूँगा उम्र भर दिल-ए-मर्हुम के लिये,
कम्बख़्त नामुराद लड़कपन का यार था ।
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़ुबान में,
तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था ।
क्या क्या हमारे सज़दे की रूसवाईयाँ हुई,
नक़्श-ए-क़दम किसी का सरे रह-गुज़ार था ।
---Bekhud Dehlvi
6 जून 2011
Like you (Como tu)
I, like you,
love love, life, the sweet delight
of things, the blue
landscape of January days.
Also my blood bubbles over
laughing through my eyes
which have known the rush of tears.
I believe the world is beautiful,
that poetry is, like bread, for everyone.
And that my veins don’t end in me
but in the unanimous blood
of those who struggle for life,
love,
things,
countryside and bread,
poetry for everyone.
---Roque Dalton
love love, life, the sweet delight
of things, the blue
landscape of January days.
Also my blood bubbles over
laughing through my eyes
which have known the rush of tears.
I believe the world is beautiful,
that poetry is, like bread, for everyone.
And that my veins don’t end in me
but in the unanimous blood
of those who struggle for life,
love,
things,
countryside and bread,
poetry for everyone.
---Roque Dalton
3 जून 2011
I wandered lonely as a cloud
I wandered lonely as a cloud
That floats on high o'er vales and hills,
When all at once I saw a crowd,
A host, of golden daffodils;
Beside the lake, beneath the trees,
Fluttering and dancing in the breeze.
Continuous as the stars that shine
And twinkle on the milky way,
They stretched in never-ending line
Along the margin of a bay:
Ten thousand saw I at a glance,
Tossing their heads in sprightly dance.
The waves beside them danced, but they
Out-did the sparkling leaves in glee;
A poet could not be but gay,
In such a jocund company!
I gazed—and gazed—but little thought
What wealth the show to me had brought:
For oft, when on my couch I lie
In vacant or in pensive mood,
They flash upon that inward eye
Which is the bliss of solitude;
And then my heart with pleasure fills,
And dances with the daffodils.
---William Wordsworth
That floats on high o'er vales and hills,
When all at once I saw a crowd,
A host, of golden daffodils;
Beside the lake, beneath the trees,
Fluttering and dancing in the breeze.
Continuous as the stars that shine
And twinkle on the milky way,
They stretched in never-ending line
Along the margin of a bay:
Ten thousand saw I at a glance,
Tossing their heads in sprightly dance.
The waves beside them danced, but they
Out-did the sparkling leaves in glee;
A poet could not be but gay,
In such a jocund company!
I gazed—and gazed—but little thought
What wealth the show to me had brought:
For oft, when on my couch I lie
In vacant or in pensive mood,
They flash upon that inward eye
Which is the bliss of solitude;
And then my heart with pleasure fills,
And dances with the daffodils.
---William Wordsworth
29 मई 2011
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तेरे सिवा कोई न था, तेरे सिवा कोई नहीं
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
तेरे बगैर दिन न जला, तेरे बगैर शब् न बुझे
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
मीलों से दिन छोड़ आये, सालों सी रात ले के चले
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया.
--- गुलज़ार
# You can hear this song in the voice of Lata Mangeshkar at Youtube
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तेरे सिवा कोई न था, तेरे सिवा कोई नहीं
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
तेरे बगैर दिन न जला, तेरे बगैर शब् न बुझे
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
मीलों से दिन छोड़ आये, सालों सी रात ले के चले
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया.
--- गुलज़ार
# You can hear this song in the voice of Lata Mangeshkar at Youtube
28 मई 2011
3 Poems from संग्रह: उजाले अपनी यादों के
1.
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
2.
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
2.
जब सहर चुप हो, हँसा लो हमको
जब अन्धेरा हो, जला लो हमको
हम हक़ीक़त हैं, नज़र आते हैं
दास्तानों में छुपा लो हमको
ख़ून का काम रवाँ रहना है
जिस जगह चाहे बहा लो हमको
दिन न पा जाए कहीं शब का राज़
सुबह से पहले उठा लो हमको
दूर हो जाएंगे सूरज की तरह
हम न कहते थे, उछालो हमको
हम ज़माने के सताये हैं बहोत
अपने सीने से लगा लो हमको
वक़्त के होंट हमें छू लेंगे
अनकहे बोल हैं गा लो हमको
3.
हम हक़ीक़त हैं, नज़र आते हैं
दास्तानों में छुपा लो हमको
ख़ून का काम रवाँ रहना है
जिस जगह चाहे बहा लो हमको
दिन न पा जाए कहीं शब का राज़
सुबह से पहले उठा लो हमको
दूर हो जाएंगे सूरज की तरह
हम न कहते थे, उछालो हमको
हम ज़माने के सताये हैं बहोत
अपने सीने से लगा लो हमको
वक़्त के होंट हमें छू लेंगे
अनकहे बोल हैं गा लो हमको
3.
गज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे
रोयेंगे बहुत, लेकिन आँसू नहीं आयेंगे
कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे
जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठायेंगे.
---बशीर बद्र
कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे
जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठायेंगे.
---बशीर बद्र
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