अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
2.
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
2.
जब सहर चुप हो, हँसा लो हमको
जब अन्धेरा हो, जला लो हमको
हम हक़ीक़त हैं, नज़र आते हैं
दास्तानों में छुपा लो हमको
ख़ून का काम रवाँ रहना है
जिस जगह चाहे बहा लो हमको
दिन न पा जाए कहीं शब का राज़
सुबह से पहले उठा लो हमको
दूर हो जाएंगे सूरज की तरह
हम न कहते थे, उछालो हमको
हम ज़माने के सताये हैं बहोत
अपने सीने से लगा लो हमको
वक़्त के होंट हमें छू लेंगे
अनकहे बोल हैं गा लो हमको
3.
हम हक़ीक़त हैं, नज़र आते हैं
दास्तानों में छुपा लो हमको
ख़ून का काम रवाँ रहना है
जिस जगह चाहे बहा लो हमको
दिन न पा जाए कहीं शब का राज़
सुबह से पहले उठा लो हमको
दूर हो जाएंगे सूरज की तरह
हम न कहते थे, उछालो हमको
हम ज़माने के सताये हैं बहोत
अपने सीने से लगा लो हमको
वक़्त के होंट हमें छू लेंगे
अनकहे बोल हैं गा लो हमको
3.
गज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे
रोयेंगे बहुत, लेकिन आँसू नहीं आयेंगे
कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे
जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठायेंगे.
---बशीर बद्र
कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे
जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठायेंगे.
---बशीर बद्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें