थरथरी सी है आसमानों में
जोर कुछ तो है नातवानों में
कितना खामोश है जहां लेकिन
इक सदा आ रही है कानों में
कोई सोचे तो फ़र्क कितना है
हुस्न और इश्क के फ़सानों में
मौत के भी उडे हैं अक्सर होश
ज़िन्दगी के शराबखानों में
जिन की तामीर इश्क करता है
कौन रहता है उन मकानों में
इन्ही तिनकों में देख ऐ बुलबुल
बिजलियां भी हैं आशियानों में
--- फ़िराक़ गोरखपुरी
27 जनवरी 2012
12 जनवरी 2012
हम लड़ेंगे
हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे
---पाश
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे
---पाश
7 जनवरी 2012
Wait for me
Wait for me and I’ll return, only wait very hard.
Wait when you are filled with sorrow as you watch the yellow rain.
Wait when the wind sweeps the snowdrifts.
Wait in the sweltering heat.
Wait when others have stopped waiting, forgetting their yesterdays.
Wait even when from afar no letters come for you.
Wait even when others are tired of waiting.
Wait for me and I’ll return, but wait patiently.
Wait even when you are told that you should forget.
Wait even when my mother and son think I am no more.
And when friends sit around the fire drinking to my memory
Wait and do not hurry to drink to my memory too.
Wait for me and I’ll return, defying every death.
And let those who do not wait say that I was lucky.
They will never understand that in the midst of death
You with your waiting saved me.
Only you and I will know how I survived:
It was because you waited as no one else did.
- Konstantin Simonov
Wait when you are filled with sorrow as you watch the yellow rain.
Wait when the wind sweeps the snowdrifts.
Wait in the sweltering heat.
Wait when others have stopped waiting, forgetting their yesterdays.
Wait even when from afar no letters come for you.
Wait even when others are tired of waiting.
Wait for me and I’ll return, but wait patiently.
Wait even when you are told that you should forget.
Wait even when my mother and son think I am no more.
And when friends sit around the fire drinking to my memory
Wait and do not hurry to drink to my memory too.
Wait for me and I’ll return, defying every death.
And let those who do not wait say that I was lucky.
They will never understand that in the midst of death
You with your waiting saved me.
Only you and I will know how I survived:
It was because you waited as no one else did.
- Konstantin Simonov
31 दिसंबर 2011
What the heart is Like
Officially the heart
is oblong, muscular,
and filled with longing.
But anyone who has painted the heart knows
that it is also
spiked like a star
and sometimes bedraggled
like a stray dog at night
and sometimes powerful
like an archangel’s drum.
And sometimes cube-shaped
like a draughtsman’s dream
and sometimes gaily round
like a ball in a net.
And sometimes like a thin line
and sometimes like an explosion.
And in it is
only a river,
a weir
and at most one little fish
by no means golden.
More like a grey
jealous
loach.
It certainly isn’t noticeable
at first sight.
Anyone who has painted the heart knows
that first he had to
discard his spectacles,
his mirror,
throw away his fine-point pencil
and carbon paper
and for a long while
walk
outside.
– Miroslav Holub, trans. from Czech by Ewald Osers
is oblong, muscular,
and filled with longing.
But anyone who has painted the heart knows
that it is also
spiked like a star
and sometimes bedraggled
like a stray dog at night
and sometimes powerful
like an archangel’s drum.
And sometimes cube-shaped
like a draughtsman’s dream
and sometimes gaily round
like a ball in a net.
And sometimes like a thin line
and sometimes like an explosion.
And in it is
only a river,
a weir
and at most one little fish
by no means golden.
More like a grey
jealous
loach.
It certainly isn’t noticeable
at first sight.
Anyone who has painted the heart knows
that first he had to
discard his spectacles,
his mirror,
throw away his fine-point pencil
and carbon paper
and for a long while
walk
outside.
– Miroslav Holub, trans. from Czech by Ewald Osers
29 दिसंबर 2011
क्यों करें हम
नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम
ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम
ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम
वफ़ा इखलास* कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम
सुना दें इस्मते-मरियम का किस्सा
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम
ज़ुलेखा-ए-अजीजाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम
किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम
बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम
हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम
ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम
-: जौन एलिया
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम
ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम
ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम
वफ़ा इखलास* कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम
सुना दें इस्मते-मरियम का किस्सा
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम
ज़ुलेखा-ए-अजीजाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम
किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम
बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम
हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम
ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम
-: जौन एलिया
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे
इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे
डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे
जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे
कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे
इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे
बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे
--'आलम खुर्शीद'
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे
इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे
डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे
जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे
कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे
इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे
बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे
--'आलम खुर्शीद'
6 दिसंबर 2011
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे
राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
रक्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, ये जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर.
तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पावँ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे,
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पावँ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.
by Kaifi Azmi
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
रक्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, ये जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर.
तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पावँ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे,
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पावँ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.
by Kaifi Azmi
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