"Hope" is the thing with feathers—
That perches in the soul—
And sings the tune without the words—
And never stops—at all—
And sweetest—in the Gale—is heard—
And sore must be the storm—
That could abash the little Bird
That kept so many warm—
I've heard it in the chillest land—
And on the strangest Sea—
Yet, never, in Extremity,
It asked a crumb—of Me.
---Emily Dickinson
4 अक्टूबर 2012
2 अक्टूबर 2012
समझदारों का गीत
हवा का रुख कैसा है, हम समझते हैं
हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं, हम समझते हैं
हम समझते हैं ख़ून का मतलब
पैसे की कीमत हम समझते हैं
क्या है पक्ष में विपक्ष में क्या है, हम समझते हैं
हम इतना समझते हैं
कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं.
चुप्पी का मतलब भी हम समझते हैं
बोलते हैं तो सोच-समझकर बोलते हैं
बोलने की आजादी का
मतलब समझते हैं
टुटपुंजिया नौकरी के लिए
आज़ादी बेचने का मतलब हम समझते हैं
मगर हम क्या कर सकते हैं
अगर बेरोज़गारी अन्याय से
तेज़ दर से बढ़ रही है
हम आज़ादी और बेरोज़गारी दोनों के
ख़तरे समझते हैं
हम ख़तरों से बाल-बाल बच जाते हैं
हम समझते हैं
हम क्यों बच जाते हैं, यह भी हम समझते हैं.
हम ईश्वर से दुखी रहते हैं अगर वह सिर्फ़ कल्पना नहीं है
हम सरकार से दुखी रहते हैं कि वह समझती क्यों नहीं
हम जनता से दुखी रहते हैं क्योंकि वह भेड़ियाधसान होती है.
हम सारी दुनिया के दुख से दुखी रहते हैं
हम समझते हैं
मगर हम कितना दुखी रहते हैं यह भी
हम समझते हैं
यहां विरोध ही बाजिब क़दम है
हम समझते हैं
हम क़दम-क़दम पर समझौते करते हैं
हम समझते हैं
हम समझौते के लिए तर्क गढ़ते हैं
हर तर्क गोल-मटोल भाषा में
पेश करते हैं, हम समझते हैं
हम इस गोल-मटोल भाषा का तर्क भी
समझते हैं.
वैसे हम अपने को
किसी से कम नहीं समझते हैं
हर स्याह को सफेद
और सफ़ेद को स्याह कर सकते हैं
हम चाय की प्यालियों में तूफ़ान खड़ा कर सकते हैं
करने को तो हम क्रांति भी कर सकते हैं
अगर सरकार कमज़ोर हो और जनता समझदार
लेकिन हम समझते हैं
कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं
हम क्यों कुछ नहीं कर सकते
यह भी हम समझते हैं.
**** गोरख पाण्डेय
हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं, हम समझते हैं
हम समझते हैं ख़ून का मतलब
पैसे की कीमत हम समझते हैं
क्या है पक्ष में विपक्ष में क्या है, हम समझते हैं
हम इतना समझते हैं
कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं.
चुप्पी का मतलब भी हम समझते हैं
बोलते हैं तो सोच-समझकर बोलते हैं
बोलने की आजादी का
मतलब समझते हैं
टुटपुंजिया नौकरी के लिए
आज़ादी बेचने का मतलब हम समझते हैं
मगर हम क्या कर सकते हैं
अगर बेरोज़गारी अन्याय से
तेज़ दर से बढ़ रही है
हम आज़ादी और बेरोज़गारी दोनों के
ख़तरे समझते हैं
हम ख़तरों से बाल-बाल बच जाते हैं
हम समझते हैं
हम क्यों बच जाते हैं, यह भी हम समझते हैं.
हम ईश्वर से दुखी रहते हैं अगर वह सिर्फ़ कल्पना नहीं है
हम सरकार से दुखी रहते हैं कि वह समझती क्यों नहीं
हम जनता से दुखी रहते हैं क्योंकि वह भेड़ियाधसान होती है.
हम सारी दुनिया के दुख से दुखी रहते हैं
हम समझते हैं
मगर हम कितना दुखी रहते हैं यह भी
हम समझते हैं
यहां विरोध ही बाजिब क़दम है
हम समझते हैं
हम क़दम-क़दम पर समझौते करते हैं
हम समझते हैं
हम समझौते के लिए तर्क गढ़ते हैं
हर तर्क गोल-मटोल भाषा में
पेश करते हैं, हम समझते हैं
हम इस गोल-मटोल भाषा का तर्क भी
समझते हैं.
वैसे हम अपने को
किसी से कम नहीं समझते हैं
हर स्याह को सफेद
और सफ़ेद को स्याह कर सकते हैं
हम चाय की प्यालियों में तूफ़ान खड़ा कर सकते हैं
करने को तो हम क्रांति भी कर सकते हैं
अगर सरकार कमज़ोर हो और जनता समझदार
लेकिन हम समझते हैं
कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं
हम क्यों कुछ नहीं कर सकते
यह भी हम समझते हैं.
**** गोरख पाण्डेय
1 अक्टूबर 2012
ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ (Bistirno parore)
विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ ? इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
रुतस्विनी क्यूँ न रही ?
तुम निश्चय चितन नहीं प्राणों में प्रेरणा प्रेरती न क्यूँ ?
उन्मद अवनी कुरुक्षेत्र बनी गंगे जननी
नव भारत में भीष्म रूपी सूत समरजयी जनती नहीं हो क्यूँ ?
---भूपेन हजारिका
Original Song:
Inspired by this song, Bhupenda created-
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ ? इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
रुतस्विनी क्यूँ न रही ?
तुम निश्चय चितन नहीं प्राणों में प्रेरणा प्रेरती न क्यूँ ?
उन्मद अवनी कुरुक्षेत्र बनी गंगे जननी
नव भारत में भीष्म रूपी सूत समरजयी जनती नहीं हो क्यूँ ?
---भूपेन हजारिका
Original Song:
Inspired by this song, Bhupenda created-
The Internationale
Stand up, damned of the Earth
Stand up, prisoners of starvation
Reason thunders in its volcano
This is the eruption of the end.
Of the past let us make a clean slate
Enslaved masses, stand up, stand up.
The world is about to change its foundation
We are nothing, let us be all.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
There are no supreme saviours
Neither God, nor Caesar, nor tribune.
Producers, let us save ourselves,
Decree the common salvation.
So that the thief expires,
So that the spirit be pulled from its prison,
Let us fan the forge ourselves
Strike the iron while it is hot.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
The State oppresses and the law cheats.
Tax bleeds the unfortunate.
No duty is imposed on the rich;
The rights of the poor is an empty phrase.
Enough languishing in custody!
Equality wants other laws:
No rights without duties, she says,
Equally, no duties without rights.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
Hideous in their apotheosis
The kings of the mine and of the rail.
Have they ever done anything other
Than steal work?
Inside the safeboxes of the gang,
What work had created melted.
By ordering that they give it back,
The people want only their due.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
The kings made us drunk with fumes,
Peace among us, war to the tyrants!
Let the armies go on strike,
Stocks in the air, and break ranks.
If they insist, these cannibals
On making heroes of us,
They will know soon that our bullets
Are for our own generals.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
Workers, peasants, we are
The great party of labourers.
The earth belongs only to men;
The idle will go to reside elsewhere.
How much of our flesh have they consumed?
But if these ravens, these vultures
Disappeared one of these days,
The sun will shine forever.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The International
Will be the human race. :|
--- Eugène Pottier
("L'Internationale" a widely sung left-wing anthem)
Stand up, prisoners of starvation
Reason thunders in its volcano
This is the eruption of the end.
Of the past let us make a clean slate
Enslaved masses, stand up, stand up.
The world is about to change its foundation
We are nothing, let us be all.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
There are no supreme saviours
Neither God, nor Caesar, nor tribune.
Producers, let us save ourselves,
Decree the common salvation.
So that the thief expires,
So that the spirit be pulled from its prison,
Let us fan the forge ourselves
Strike the iron while it is hot.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
The State oppresses and the law cheats.
Tax bleeds the unfortunate.
No duty is imposed on the rich;
The rights of the poor is an empty phrase.
Enough languishing in custody!
Equality wants other laws:
No rights without duties, she says,
Equally, no duties without rights.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
Hideous in their apotheosis
The kings of the mine and of the rail.
Have they ever done anything other
Than steal work?
Inside the safeboxes of the gang,
What work had created melted.
By ordering that they give it back,
The people want only their due.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
The kings made us drunk with fumes,
Peace among us, war to the tyrants!
Let the armies go on strike,
Stocks in the air, and break ranks.
If they insist, these cannibals
On making heroes of us,
They will know soon that our bullets
Are for our own generals.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The Internationale
Will be the human race. :|
Workers, peasants, we are
The great party of labourers.
The earth belongs only to men;
The idle will go to reside elsewhere.
How much of our flesh have they consumed?
But if these ravens, these vultures
Disappeared one of these days,
The sun will shine forever.
|: This is the final struggle
Let us group together, and tomorrow
The International
Will be the human race. :|
--- Eugène Pottier
("L'Internationale" a widely sung left-wing anthem)
27 सितंबर 2012
साँसों की परिधि
जैसे अन्धकार में
एक दीपक की लौ
और उसके वृत्त में करवट बदलता-सा
पीला अँधेरा।
वैसे ही
तुम्हारी गोल बाँहों के दायरे में
मुस्करा उठता है
दुनिया में सबसे उदास जीवन मेरा।
अक्सर सोचा करता हूँ
इतनी ही क्यों न हुई
आयु की परिधि और साँसों का घेरा।
--- दुष्यंत कुमार
एक दीपक की लौ
और उसके वृत्त में करवट बदलता-सा
पीला अँधेरा।
वैसे ही
तुम्हारी गोल बाँहों के दायरे में
मुस्करा उठता है
दुनिया में सबसे उदास जीवन मेरा।
अक्सर सोचा करता हूँ
इतनी ही क्यों न हुई
आयु की परिधि और साँसों का घेरा।
--- दुष्यंत कुमार
24 सितंबर 2012
Tonight I can write the saddest lines
Tonight I can write the saddest lines.
Write, for example,'The night is shattered
and the blue stars shiver in the distance.'
The night wind revolves in the sky and sings.
Tonight I can write the saddest lines.
I loved her, and sometimes she loved me too.
Through nights like this one I held her in my arms
I kissed her again and again under the endless sky.
She loved me sometimes, and I loved her too.
How could one not have loved her great still eyes.
Tonight I can write the saddest lines.
To think that I do not have her. To feel that I have lost her.
To hear the immense night, still more immense without her.
And the verse falls to the soul like dew to the pasture.
What does it matter that my love could not keep her.
The night is shattered and she is not with me.
This is all. In the distance someone is singing. In the distance.
My soul is not satisfied that it has lost her.
My sight searches for her as though to go to her.
My heart looks for her, and she is not with me.
The same night whitening the same trees.
We, of that time, are no longer the same.
I no longer love her, that's certain, but how I loved her.
My voice tried to find the wind to touch her hearing.
Another's. She will be another's. Like my kisses before.
Her voide. Her bright body. Her inifinite eyes.
I no longer love her, that's certain, but maybe I love her.
Love is so short, forgetting is so long.
Because through nights like this one I held her in my arms
my sould is not satisfied that it has lost her.
Though this be the last pain that she makes me suffer
and these the last verses that I write for her.
---Pablo Neruda
Write, for example,'The night is shattered
and the blue stars shiver in the distance.'
The night wind revolves in the sky and sings.
Tonight I can write the saddest lines.
I loved her, and sometimes she loved me too.
Through nights like this one I held her in my arms
I kissed her again and again under the endless sky.
She loved me sometimes, and I loved her too.
How could one not have loved her great still eyes.
Tonight I can write the saddest lines.
To think that I do not have her. To feel that I have lost her.
To hear the immense night, still more immense without her.
And the verse falls to the soul like dew to the pasture.
What does it matter that my love could not keep her.
The night is shattered and she is not with me.
This is all. In the distance someone is singing. In the distance.
My soul is not satisfied that it has lost her.
My sight searches for her as though to go to her.
My heart looks for her, and she is not with me.
The same night whitening the same trees.
We, of that time, are no longer the same.
I no longer love her, that's certain, but how I loved her.
My voice tried to find the wind to touch her hearing.
Another's. She will be another's. Like my kisses before.
Her voide. Her bright body. Her inifinite eyes.
I no longer love her, that's certain, but maybe I love her.
Love is so short, forgetting is so long.
Because through nights like this one I held her in my arms
my sould is not satisfied that it has lost her.
Though this be the last pain that she makes me suffer
and these the last verses that I write for her.
---Pablo Neruda
21 सितंबर 2012
The Wolf's Postcript to 'Little Red Riding Hood'
First, grant me my sense of history:
I did it for posterity,
for kindergarten teachers
and a clear moral:
Little girls shouldn't wander off
in search of strange flowers,
and they mustn't speak to strangers.
And then grant me my generous sense of plot:
Couldn't I have gobbled her up
right there in the jungle?
Why did I ask her where her grandma lived?
As if I, a forest-dweller,
didn't know of the cottage
under the three oak trees
and the old woman lived there
all alone?
As if I couldn't have swallowed her years before?
And you may call me the Big Bad Wolf,
now my only reputation.
But I was no child-molester
though you'll agree she was pretty.
And the huntsman:
Was I sleeping while he snipped
my thick black fur
and filled me with garbage and stones?
I ran with that weight and fell down,
simply so children could laugh
at the noise of the stones
cutting through my belly,
at the garbage spilling out
with a perfect sense of timing,
just when the tale
should have come to an end.
--- Agha Shahid Ali
I did it for posterity,
for kindergarten teachers
and a clear moral:
Little girls shouldn't wander off
in search of strange flowers,
and they mustn't speak to strangers.
And then grant me my generous sense of plot:
Couldn't I have gobbled her up
right there in the jungle?
Why did I ask her where her grandma lived?
As if I, a forest-dweller,
didn't know of the cottage
under the three oak trees
and the old woman lived there
all alone?
As if I couldn't have swallowed her years before?
And you may call me the Big Bad Wolf,
now my only reputation.
But I was no child-molester
though you'll agree she was pretty.
And the huntsman:
Was I sleeping while he snipped
my thick black fur
and filled me with garbage and stones?
I ran with that weight and fell down,
simply so children could laugh
at the noise of the stones
cutting through my belly,
at the garbage spilling out
with a perfect sense of timing,
just when the tale
should have come to an end.
--- Agha Shahid Ali
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