अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं
अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं
और एक जाम-ए-मए तल्ख़ चढ़ा लूं तो चलूं
अभी चलता हूं ज़रा ख़ुद को संभालूं तो चलूं
जाने कब पी थी अभी तक है मए-ग़म का ख़ुमार
धुंधला धुंधला सा नज़र आता है जहाने बेदार
आंधियां चल्ती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार
आंख तो मल लूं, ज़रा होश में आ लूं तो चलूं
वो मेरा सहर वो एजाज़ कहां है लाना
मेरी खोई हुई आवाज़ कहां है लाना
मेरा टूटा हुआ साज़ कहां है लाना
एक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूं तो चलूं
मैं थका हारा था इतने में जो आए बादल
किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल
उफ़ वह रंगीं पुर-असरार ख़यालों के महल
ऐसे दो चार महल और बना लूं तो चलूं
मेरी आंखों में अभी तक है मोहब्बत का ग़ुरूर
मेरे होंटों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर
मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर
ऐसे वहमों से ख़ुद को निकालूं तो चलूं
--- मुईन अह्सन जज़्बी
17 जनवरी 2014
16 जनवरी 2014
खेत में दबाये गये दाने की तरह
तुम्हे जानना चाहिए कि हम
मिट कर फिर पैदा हो जायेंगे
हमारे गले जो घोंट दिए गए हैं
फिर से उन्हीं गीतों को गायेंगे
जिनकी भनक से
तुम्हें चक्कर आ जाता है !
तुम सोते से चौंक कर चिल्लाओगे
कौन गाता है?
इन गीतों को तो हमने
दफना दिया था!
तुम्हें जानना चाहिए कि
लाशें दफनाई जा कर सड़ जातीं हैं
मगर गीत मिट्टी में दबाओ
तो फिर फूटते हैं
खेत में दबाये गए दाने की तरह !
--- भवानी प्रसाद मिश्र .
मिट कर फिर पैदा हो जायेंगे
हमारे गले जो घोंट दिए गए हैं
फिर से उन्हीं गीतों को गायेंगे
जिनकी भनक से
तुम्हें चक्कर आ जाता है !
तुम सोते से चौंक कर चिल्लाओगे
कौन गाता है?
इन गीतों को तो हमने
दफना दिया था!
तुम्हें जानना चाहिए कि
लाशें दफनाई जा कर सड़ जातीं हैं
मगर गीत मिट्टी में दबाओ
तो फिर फूटते हैं
खेत में दबाये गए दाने की तरह !
--- भवानी प्रसाद मिश्र .
14 जनवरी 2014
सम्पाती
तुम्हें मैं दोष नहीं देता हूँ
सारा कसूर अपने सिर पर लेता हूँ
यह मेरा ही कसूर था
कि सूर्य के घोड़ों से होड़ लेने को
मैं आकाश में उड़ा
जटायु मुझसे ज्यादा उड़ा
वह आधे रास्ते से ही लौट आया
लेकिन मैं अपने अहंकार में
उड़ता ही गया
सारा कसूर अपने सिर पर लेता हूँ
यह मेरा ही कसूर था
कि सूर्य के घोड़ों से होड़ लेने को
मैं आकाश में उड़ा
जटायु मुझसे ज्यादा उड़ा
वह आधे रास्ते से ही लौट आया
लेकिन मैं अपने अहंकार में
उड़ता ही गया
और जैसे ही सूर्य के पास पहुंचा,
मेरे पंख जल गए।
मैंने पानी माँगा
पर दूर आकाश में
पानी कौन देता है?
सूर्या के मारे हुए को
अपनी शरण में
कौन लेता है?
अब तो सब छोड़ कर
तुम्हारे चरणों पर पड़ा हूँ
मंदिर के बाहर पड़े पौधर के समान
तुम्हारे आँगन में धरा हूँ।
तुम्हें मैं कोई दोष नहीं देता स्वामी!
--- रामधारी सिंह दिनकर
“आमि आपण दोषे दुःख पाई वासना-अनुगामी”
मेरे पंख जल गए।
मैंने पानी माँगा
पर दूर आकाश में
पानी कौन देता है?
सूर्या के मारे हुए को
अपनी शरण में
कौन लेता है?
अब तो सब छोड़ कर
तुम्हारे चरणों पर पड़ा हूँ
मंदिर के बाहर पड़े पौधर के समान
तुम्हारे आँगन में धरा हूँ।
तुम्हें मैं कोई दोष नहीं देता स्वामी!
--- रामधारी सिंह दिनकर
“आमि आपण दोषे दुःख पाई वासना-अनुगामी”
2 जनवरी 2014
A Pebble
The day after the flood
A stagnant morning
There is a tear at the bottom of the world
Frozen like an orphan pebble
The hurricane obliterates everything
Palmtrees, houses, boats, bicycles and minarets
But this pebble stays
right there, shining faintly
Because the hand of eternity
Has polished its bald head just like the Lord’s shoeshine:
There it is under your foot. Step on it if you wish. Step hard
Then cross over. Fear not
Among pebbles, it is no more than
a pebble.
--- Sargon Boulus. Translated from the Arabic by Sinan Antoon. From Sargon Boulus, `Azma Ukhra li-Kalb al-Qabila (Beirut/Baghdad: Dar al-Jamal, 2008)]
A stagnant morning
There is a tear at the bottom of the world
Frozen like an orphan pebble
The hurricane obliterates everything
Palmtrees, houses, boats, bicycles and minarets
But this pebble stays
right there, shining faintly
Because the hand of eternity
Has polished its bald head just like the Lord’s shoeshine:
There it is under your foot. Step on it if you wish. Step hard
Then cross over. Fear not
Among pebbles, it is no more than
a pebble.
--- Sargon Boulus. Translated from the Arabic by Sinan Antoon. From Sargon Boulus, `Azma Ukhra li-Kalb al-Qabila (Beirut/Baghdad: Dar al-Jamal, 2008)]
18 दिसंबर 2013
Farewell
It’s the last time, when I dare
To cradle your image in my mind,
To wake a dream by my heart, bare,
With exultation, shy and air,
To cue your love that's left behind.
The years run promptly; their fire
Changes the world, and me, and you.
For me, you now are attired
In dark of vaults o’er them who died,
For you -- your friend extinguished too.
My dear friend, so sweet and distant,
Take farewell from all my heart,
As takes a wid in a somber instant,
As takes a friend before a prison
Will split those dear friends apart.
--- Aleksandr Pushkin
To cradle your image in my mind,
To wake a dream by my heart, bare,
With exultation, shy and air,
To cue your love that's left behind.
The years run promptly; their fire
Changes the world, and me, and you.
For me, you now are attired
In dark of vaults o’er them who died,
For you -- your friend extinguished too.
My dear friend, so sweet and distant,
Take farewell from all my heart,
As takes a wid in a somber instant,
As takes a friend before a prison
Will split those dear friends apart.
--- Aleksandr Pushkin
11 दिसंबर 2013
बंजारानामा
टुक हिर्सो-हवा को छोड़ मियां, मत देस-बिदेस फिरे मारा
क़ज़्ज़ाक अजल का लूटे है दिन-रात बजाकर नक़्क़ारा
क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतुर क्या गौनें पल्ला सर भारा
क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर, क्या आग, धुआं और अंगारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ग़र तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर, मिसरी, क़ंद, गरी क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख़, मुनक़्क़ा, सोंठ, मिरच क्या केसर, लौंग, सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छिम जावेगा
या सूद बढ़ाकर लावेगा या टोटा घाटा पावेगा
क़ज़्ज़ाक़ अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा
धन-दौलत नाती-पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
जब चलते-चलते रस्ते में ये गौन तेरी रह जावेगी
इक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने पावेगी
ये खेप जो तूने लादी है सब हिस्सों में बंट जावेगी
धी, पूत, जमाई, बेटा क्या, बंजारिन पास न आवेगी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ये खेप भरे जो जाता है, ये खेप मियां मत गिन अपनी
अब कोई घड़ी पल साअ़त में ये खेप बदन की है कफ़नी
क्या थाल कटोरी चांदी की क्या पीतल की डिबिया ढकनी
क्या बरतन सोने चांदी के क्या मिट्टी की हंडिया चपनी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ये धूम-धड़क्का साथ लिये क्यों फिरता है जंगल-जंगल
इक तिनका साथ न जावेगा मौक़ूफ़ हुआ जब अन्न और जल
घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा, नैनसुख और मलमल
क्या चिलमन, परदे, फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
कुछ काम न आवेगा तेरे ये लालो-ज़मर्रुद सीमो-ज़र
जब पूंजी बाट में बिखरेगी हर आन बनेगी जान ऊपर
नौबत, नक़्क़ारे, बान, निशां, दौलत, हशमत, फ़ौजें, लशकर
क्या मसनद, तकिया, मुल्क मकां, क्या चौकी, कुर्सी, तख़्त, छतर
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
क्यों जी पर बोझ उठाता है इन गौनों भारी-भारी के
जब मौत का डेरा आन पड़ा फिर दूने हैं ब्योपारी के
क्या साज़ जड़ाऊ, ज़र ज़ेवर क्या गोटे थान किनारी के
क्या घोड़े ज़ीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अंबारी के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
मग़रूर न हो तलवारों पर मत भूल भरोसे ढालों के
सब पत्ता तोड़ के भागेंगे मुंह देख अजल के भालों के
क्या डिब्बे मोती हीरों के क्या ढेर ख़जाने मालों के
क्या बुक़चे ताश, मुशज्जर के क्या तख़ते शाल दुशालों के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
क्या सख़्त मकां बनवाता है खंभ तेरे तन का है पोला
तू ऊंचे कोट उठाता है, वां गोर गढ़े ने मुंह खोला
क्या रैनी, ख़दक़, रंद बड़े, क्या बुर्ज, कंगूरा अनमोला
गढ़, कोट, रहकला, तोप, क़िला, क्या शीशा दारू और गोला
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
हर आन नफ़े और टोटे में क्यों मरता फिरता है बन-बन
टुक ग़ाफ़िल दिल में सोच जरा है साथ लगा तेरे दुश्मन
क्या लौंडी, बांदी, दाई, दिदा क्या बन्दा, चेला नेक-चलन
क्या मस्जिद, मंदिर, ताल, कुआं क्या खेतीबाड़ी, फूल, चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
जब मर्ग फिराकर चाबुक को ये बैल बदन का हांकेगा
कोई ताज समेटेगा तेरा कोई गौन सिए और टांकेगा
हो ढेर अकेला जंगल में तू ख़ाक लहद की फांकेगा
उस जंगल में फिर आह 'नज़ीर' इक तिनका आन न झांकेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
~ "नज़ीर" अकबराबादी>
क़ज़्ज़ाक अजल का लूटे है दिन-रात बजाकर नक़्क़ारा
क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतुर क्या गौनें पल्ला सर भारा
क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर, क्या आग, धुआं और अंगारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ग़र तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर, मिसरी, क़ंद, गरी क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख़, मुनक़्क़ा, सोंठ, मिरच क्या केसर, लौंग, सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छिम जावेगा
या सूद बढ़ाकर लावेगा या टोटा घाटा पावेगा
क़ज़्ज़ाक़ अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा
धन-दौलत नाती-पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
जब चलते-चलते रस्ते में ये गौन तेरी रह जावेगी
इक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने पावेगी
ये खेप जो तूने लादी है सब हिस्सों में बंट जावेगी
धी, पूत, जमाई, बेटा क्या, बंजारिन पास न आवेगी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ये खेप भरे जो जाता है, ये खेप मियां मत गिन अपनी
अब कोई घड़ी पल साअ़त में ये खेप बदन की है कफ़नी
क्या थाल कटोरी चांदी की क्या पीतल की डिबिया ढकनी
क्या बरतन सोने चांदी के क्या मिट्टी की हंडिया चपनी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ये धूम-धड़क्का साथ लिये क्यों फिरता है जंगल-जंगल
इक तिनका साथ न जावेगा मौक़ूफ़ हुआ जब अन्न और जल
घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा, नैनसुख और मलमल
क्या चिलमन, परदे, फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
कुछ काम न आवेगा तेरे ये लालो-ज़मर्रुद सीमो-ज़र
जब पूंजी बाट में बिखरेगी हर आन बनेगी जान ऊपर
नौबत, नक़्क़ारे, बान, निशां, दौलत, हशमत, फ़ौजें, लशकर
क्या मसनद, तकिया, मुल्क मकां, क्या चौकी, कुर्सी, तख़्त, छतर
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
क्यों जी पर बोझ उठाता है इन गौनों भारी-भारी के
जब मौत का डेरा आन पड़ा फिर दूने हैं ब्योपारी के
क्या साज़ जड़ाऊ, ज़र ज़ेवर क्या गोटे थान किनारी के
क्या घोड़े ज़ीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अंबारी के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
मग़रूर न हो तलवारों पर मत भूल भरोसे ढालों के
सब पत्ता तोड़ के भागेंगे मुंह देख अजल के भालों के
क्या डिब्बे मोती हीरों के क्या ढेर ख़जाने मालों के
क्या बुक़चे ताश, मुशज्जर के क्या तख़ते शाल दुशालों के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
क्या सख़्त मकां बनवाता है खंभ तेरे तन का है पोला
तू ऊंचे कोट उठाता है, वां गोर गढ़े ने मुंह खोला
क्या रैनी, ख़दक़, रंद बड़े, क्या बुर्ज, कंगूरा अनमोला
गढ़, कोट, रहकला, तोप, क़िला, क्या शीशा दारू और गोला
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
हर आन नफ़े और टोटे में क्यों मरता फिरता है बन-बन
टुक ग़ाफ़िल दिल में सोच जरा है साथ लगा तेरे दुश्मन
क्या लौंडी, बांदी, दाई, दिदा क्या बन्दा, चेला नेक-चलन
क्या मस्जिद, मंदिर, ताल, कुआं क्या खेतीबाड़ी, फूल, चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
जब मर्ग फिराकर चाबुक को ये बैल बदन का हांकेगा
कोई ताज समेटेगा तेरा कोई गौन सिए और टांकेगा
हो ढेर अकेला जंगल में तू ख़ाक लहद की फांकेगा
उस जंगल में फिर आह 'नज़ीर' इक तिनका आन न झांकेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
~ "नज़ीर" अकबराबादी>
9 दिसंबर 2013
I am the People, the Mob
I am the people—the mob—the crowd—the mass.
Do you know that all the great work of the world is done through me?
I am the workingman, the inventor, the maker of the world's food and clothes.
I am the audience that witnesses history.
The Napoleons come from me and the Lincolns.
They die.
And then I send forth more Napoleons and Lincolns.
I am the seed ground.
I am a prairie that will stand for much plowing.
Terrible storms pass over me.
I forget.
The best of me is sucked out and wasted.
I forget.
Everything but Death comes to me and makes me work and give up what I have.
And I forget.
Sometimes I growl, shake myself and spatter a few red drops for history to remember.
Then—I forget.
When I, the People, learn to remember, when I, the People,
use the lessons of yesterday and no longer forget who robbed me last year,
who played me for a fool—then there will be no speaker in all the world say the name: "The People,"
with any fleck of a sneer in his voice or any far-off smile of derision.
The mob—the crowd—the mass—will arrive then.
---Carl Sandburg
Do you know that all the great work of the world is done through me?
I am the workingman, the inventor, the maker of the world's food and clothes.
I am the audience that witnesses history.
The Napoleons come from me and the Lincolns.
They die.
And then I send forth more Napoleons and Lincolns.
I am the seed ground.
I am a prairie that will stand for much plowing.
Terrible storms pass over me.
I forget.
The best of me is sucked out and wasted.
I forget.
Everything but Death comes to me and makes me work and give up what I have.
And I forget.
Sometimes I growl, shake myself and spatter a few red drops for history to remember.
Then—I forget.
When I, the People, learn to remember, when I, the People,
use the lessons of yesterday and no longer forget who robbed me last year,
who played me for a fool—then there will be no speaker in all the world say the name: "The People,"
with any fleck of a sneer in his voice or any far-off smile of derision.
The mob—the crowd—the mass—will arrive then.
---Carl Sandburg
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