You do not have to be good.
You do not have to walk on your knees
For a hundred miles through the desert, repenting.
You only have to let the soft animal of your body
love what it loves.
Tell me about despair, yours, and I will tell you mine.
Meanwhile the world goes on.
Meanwhile the sun and the clear pebbles of the rain
are moving across the landscapes,
over the prairies and the deep trees,
the mountains and the rivers.
Meanwhile the wild geese, high in the clean blue air,
are heading home again.
Whoever you are, no matter how lonely,
the world offers itself to your imagination,
calls to you like the wild geese, harsh and exciting —
over and over announcing your place
in the family of things.
---Mary Oliver
17 अक्टूबर 2014
25 सितंबर 2014
Alice after Wonderland
The bedroom reeks of really old sweat.
Alice has risen up from wonderland,
Waking with an adventure-woozy head.
Her slippers do not fit. Her hand
Combs a few hairs down flat. She steps
Out of her gown. Everything shivers.
The mirror is mist, her breath is bitter.
The night escapes her porous flesh.
Little girl Alice is back in time.
Gazing back through her wizened up eyes
She sees on the farther side of her dream,
A woman ugly with reality.
---Bernard Dewulf
Translated by A.Z. Foreman
Alice has risen up from wonderland,
Waking with an adventure-woozy head.
Her slippers do not fit. Her hand
Combs a few hairs down flat. She steps
Out of her gown. Everything shivers.
The mirror is mist, her breath is bitter.
The night escapes her porous flesh.
Little girl Alice is back in time.
Gazing back through her wizened up eyes
She sees on the farther side of her dream,
A woman ugly with reality.
---Bernard Dewulf
Translated by A.Z. Foreman
11 सितंबर 2014
Today I am Modest
Today I am modest as an animal,
Spread flush as rainwashed fields.
With a small fat hand I lead
My life towards compassion and children.
Today each stranger, each sufferer
Comes to me.
My heart's little gifts
Patter rain-like about me.
And already I carry Tomorrow-
Its weight closed in
And again leaping out,
Without looking, toward all the unknown.
---Esther Raab
Translated by A.Z. Foreman
Spread flush as rainwashed fields.
With a small fat hand I lead
My life towards compassion and children.
Today each stranger, each sufferer
Comes to me.
My heart's little gifts
Patter rain-like about me.
And already I carry Tomorrow-
Its weight closed in
And again leaping out,
Without looking, toward all the unknown.
---Esther Raab
Translated by A.Z. Foreman
10 सितंबर 2014
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू ही सही
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू[1] ही सही
नहीं विसाल मयस्सर[2] तो आरज़ू ही सही
न तन में ख़ून फ़राहम[3] न अश्क आँखों में
नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब[4] है बे-वज़ू ही सही
यही बहुत है केः सालिम है दिल का पैराहन
ये चाक-चाक गरेबान बेरफ़ू ही सही
किसी तरह तो जमे बज़्म मैकदे वालो
नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हा-ओ-हू ही सही
गर इन्तज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा[5] से गुफ़्तगू ही सही
दयार-ए-ग़ैर[6] में महरम[7] अगर नहीं कोई
तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू[8] ही सही
---फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
1- तलाश
2- उपलब्ध
3- मौजूद
4- आवश्यक
5- कल के वादे
6- पराई धरती
7- अपना
8- समक्ष
नहीं विसाल मयस्सर[2] तो आरज़ू ही सही
न तन में ख़ून फ़राहम[3] न अश्क आँखों में
नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब[4] है बे-वज़ू ही सही
यही बहुत है केः सालिम है दिल का पैराहन
ये चाक-चाक गरेबान बेरफ़ू ही सही
किसी तरह तो जमे बज़्म मैकदे वालो
नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हा-ओ-हू ही सही
गर इन्तज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा[5] से गुफ़्तगू ही सही
दयार-ए-ग़ैर[6] में महरम[7] अगर नहीं कोई
तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू[8] ही सही
---फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
1- तलाश
2- उपलब्ध
3- मौजूद
4- आवश्यक
5- कल के वादे
6- पराई धरती
7- अपना
8- समक्ष
29 अगस्त 2014
सर्जना के क्षण
एक क्षण भर और रहने दो मुझे अभिभूत :
फिर जहाँ मैंने सँजोकर और भी सब रखी हैं ज्योति:शिखाएँ
वहीं तुम भी चली जाना-शांत तेजोरूप।
एक क्षण भर और
लंबे सर्जना के क्षण कभी भी हो नहीं सकते।
बूँद स्वाती की भले हो, बेधती है मर्म सीपी का उसी निर्मम त्वरा से
वज्र जिससे फोड़ता चट्टान को
भले ही फिर व्यथा के तम में बरस कर बरस बीतें
एक मुक्ता-रूप को पकते।
--- अज्ञेय
फिर जहाँ मैंने सँजोकर और भी सब रखी हैं ज्योति:शिखाएँ
वहीं तुम भी चली जाना-शांत तेजोरूप।
एक क्षण भर और
लंबे सर्जना के क्षण कभी भी हो नहीं सकते।
बूँद स्वाती की भले हो, बेधती है मर्म सीपी का उसी निर्मम त्वरा से
वज्र जिससे फोड़ता चट्टान को
भले ही फिर व्यथा के तम में बरस कर बरस बीतें
एक मुक्ता-रूप को पकते।
--- अज्ञेय
21 अगस्त 2014
नहीं चुनी मैंने
नहीं चुनी मैंने ये ज़मीन जो वतन ठहरी
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना
नहीं चुना मैंने वो मज़हब जो मुझे बख्शा गया
नहीं चुनी मैंने वो जुबां जिसमें माँ ने बोलना सिखाया
और अब मैं इन सब के लिए तैयार हूँ
मारने मरने पर !
--- फज़ल ताबिश
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना
नहीं चुना मैंने वो मज़हब जो मुझे बख्शा गया
नहीं चुनी मैंने वो जुबां जिसमें माँ ने बोलना सिखाया
और अब मैं इन सब के लिए तैयार हूँ
मारने मरने पर !
--- फज़ल ताबिश
16 अगस्त 2014
यदि होता किन्नर नरेश मैं
यदि होता किन्नर नरेश मैं, राजमहल में रहता,
सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता।
बंदी जन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे,
प्रतिदिन नौबत बजती रहती, संध्या और सवेरे।
मेरे वन में सिह घूमते, मोर नाचते आँगन,
मेरे बागों में कोयलिया, बरसाती मधु रस-कण।
यदि होता किन्नर नरेश मैं, शाही वस्त्र पहनकर,
हीरे, पन्ने, मोती माणिक, मणियों से सजधज कर।
बाँध खडग तलवार सात घोड़ों के रथ पर चढ़ता,
बड़े सवेरे ही किन्नर के राजमार्ग पर चलता।
राज महल से धीमे धीमे आती देख सवारी,
रूक जाते पथ, दर्शन करने प्रजा उमड़ती सारी।
जय किन्नर नरेश की जय हो, के नारे लग जाते,
हर्षित होकर मुझ पर सारे, लोग फूल बरसाते।
सूरज के रथ सा मेरा रथ आगे बढ़ता जाता,
बड़े गर्व से अपना वैभव, निरख-निरख सुख पाता।
---द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता।
बंदी जन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे,
प्रतिदिन नौबत बजती रहती, संध्या और सवेरे।
मेरे वन में सिह घूमते, मोर नाचते आँगन,
मेरे बागों में कोयलिया, बरसाती मधु रस-कण।
यदि होता किन्नर नरेश मैं, शाही वस्त्र पहनकर,
हीरे, पन्ने, मोती माणिक, मणियों से सजधज कर।
बाँध खडग तलवार सात घोड़ों के रथ पर चढ़ता,
बड़े सवेरे ही किन्नर के राजमार्ग पर चलता।
राज महल से धीमे धीमे आती देख सवारी,
रूक जाते पथ, दर्शन करने प्रजा उमड़ती सारी।
जय किन्नर नरेश की जय हो, के नारे लग जाते,
हर्षित होकर मुझ पर सारे, लोग फूल बरसाते।
सूरज के रथ सा मेरा रथ आगे बढ़ता जाता,
बड़े गर्व से अपना वैभव, निरख-निरख सुख पाता।
---द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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