डिल्लू बापू पंडित थे
बिना वैसी पढ़ाई के
जीवन में एक ही श्लोक
उन्होंने जाना
वह भी आधा
उसका भी वे
अशुद्ध उच्चारण करते थे
यानी ‘त्वमेव माता चपिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश चसखा त्वमेव’
इसके बाद वे कहते
कि आगे तो आप जानते ही हैं
गोया जो सब जानते हों
उसे जानने और जनाने में
कौन-सी अक़्लमंदी है ?
इसलिए इसी अल्प-पाठ के सहारे
उन्होंने सारे अनुष्ठान कराये
एक दिन किसी ने उनसे कहा:
बापू, संस्कृत में भूख को
क्षुधा कहते हैं
डिल्लू बापू पंडित थे
तो वैद्य भी उन्हें होना ही था
नाड़ी देखने के लिए वे
रोगी की पूरी कलाई को
अपने हाथ में कसकर थामते
आँखें बन्द कर
मुँह ऊपर को उठाये रहते
फिर थोड़ा रुककर
रोग के लक्षण जानने के सिलसिले में
जो पहला प्रश्न वे करते
वह भाषा में
संस्कृत के प्रयोग का
एक विरल उदाहरण है
यानी ‘पुत्तू ! क्षुधा की भूख
लगती है क्या ?’
बाद में यही
सरकारी हिन्दी हो गयी
---पंकज चतुर्वेदी
14 सितंबर 2019
8 सितंबर 2019
Preface
"चुटकुलों, भँड़ैती, विद्रूप से मज़ेदार बनी
कविता अब भी ख़ुश करना जानती है।
तब उसकी श्रेष्ठता को बहुत सराहा जाता है।
किन्तु जहाँ ज़िंदगी दाँव पर लगी हो ऐसी संगीन लड़ाइयाँ
गद्य में लड़ी जाती हैं। ऐसा हमेशा नहीं था।
और हमारा पछतावा अनक़ुबूला रह गया है।
उपन्यास और निबन्ध काम आते हैं, लेकिन टिकेंगे नहीं।
एक साफ़ छन्द ज़्यादा वज़न सँभाल सकता है
जटिल गद्य के एक समूचे मालगाड़ी के डिब्बे की बनिस्बत।"
--चेस्वाव मिवोश ('प्राक्कथन' शीर्षक कविता से)
{अनुवाद : विष्णु खरे}
"First, plain speech in the mother tongue.
Hearing it, you should be able to see
Apple trees, a river, the bend of a road,
As if in a flash of summer lightning.
And it should contain more than images.
It has been lured by singsong,
A daydream, melody. Defenseless,
It was bypassed by the sharp, dry world.
You often ask yourself why you feel shame
Whenever you look through a book of poetry.
As if the author, for reasons unclear to you,
Addressed the worse side of your nature,
Pushing aside thought, cheating thought.
Poetry, seasoned with satire, clowning,
Jokes, still knows how to please.
Then its excellence is much admired.
But serious combat, where life is at stake,
Is fought in prose. It was not always so.
And our regret has remained unconfessed.
Novels and essays serve but will not last.
One clear stanza can take more weight
Than a whole wagon of elaborate prose."
--Czeslaw Milosz {from 'Preface'}
कविता अब भी ख़ुश करना जानती है।
तब उसकी श्रेष्ठता को बहुत सराहा जाता है।
किन्तु जहाँ ज़िंदगी दाँव पर लगी हो ऐसी संगीन लड़ाइयाँ
गद्य में लड़ी जाती हैं। ऐसा हमेशा नहीं था।
और हमारा पछतावा अनक़ुबूला रह गया है।
उपन्यास और निबन्ध काम आते हैं, लेकिन टिकेंगे नहीं।
एक साफ़ छन्द ज़्यादा वज़न सँभाल सकता है
जटिल गद्य के एक समूचे मालगाड़ी के डिब्बे की बनिस्बत।"
--चेस्वाव मिवोश ('प्राक्कथन' शीर्षक कविता से)
{अनुवाद : विष्णु खरे}
"First, plain speech in the mother tongue.
Hearing it, you should be able to see
Apple trees, a river, the bend of a road,
As if in a flash of summer lightning.
And it should contain more than images.
It has been lured by singsong,
A daydream, melody. Defenseless,
It was bypassed by the sharp, dry world.
You often ask yourself why you feel shame
Whenever you look through a book of poetry.
As if the author, for reasons unclear to you,
Addressed the worse side of your nature,
Pushing aside thought, cheating thought.
Poetry, seasoned with satire, clowning,
Jokes, still knows how to please.
Then its excellence is much admired.
But serious combat, where life is at stake,
Is fought in prose. It was not always so.
And our regret has remained unconfessed.
Novels and essays serve but will not last.
One clear stanza can take more weight
Than a whole wagon of elaborate prose."
--Czeslaw Milosz {from 'Preface'}
5 सितंबर 2019
दस्तूर
दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ
अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
---हबीब जालिब
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ
अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
---हबीब जालिब
4 सितंबर 2019
तैयार रहे…...
तैयार रहे…...
हिंसक भीड़ के हाथों,
पीटे जाने के लिए.
बार-बार,
बहानों से घेरे जाने के लिए,
असहमतियों के चलते,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
क्योंकि
धर्म,संस्कृति,सभ्यता पर,
चढांई जाती है,
धार.
तैयार रहे कि
आबादी के बिना भी,
बनाए जा सकतेे है देश.
शिक्षा-अध्यापकों के बिना,
महज टैंक खड़े करके भी,
बनाए जा सकते है विश्वविद्यालय.
उसी तरह जैसे,
अफवाहों, मिथकीय परिकल्पनाओं,
श्रद्धा और भावनाओं पर,
बिजूके की तरह ,
खड़ा किया जा सकता है,
कलफ लगा इतिहास.
तैयार रहो,
कि लोक को मिटा कर भी,
खड़ा किया जा सकता है तन्त्र.
तैयार रहो कि ,
एक दशक पहले तक,
जिनसे बचते चलते थे तुम.
आज उन्होंने तुम्हें भी समेट लिया है.
इसलिए,
पंखनुचे फड़फडा़ते परिन्दों की तरह,
अर्थ विहीन शब्दों से कामचलाने के लिए,
तैयार रहें.
अब इंसान ही नही,
संस्थाओं, संकल्पनाओं और
संस्कृतियों की हत्याएं भी मुमकिन हैं.
इसलिए अलग-अलग मौकों पर,
अलग-अलग बहानों से,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
कि अगली माबलिंचिंग,
किसी सड़क,गली या कस्बे में नही,
किसी सदन में भी मुमकिन है,
जहां पूरे के पूरे देश को ,
पीट-पीट कर बेदम किया जा सकता है.
आप बस अच्छे नागरिक बने,
सवाल ना करें और,
तैयार रहें...
---Ashrut Parmanand
हिंसक भीड़ के हाथों,
पीटे जाने के लिए.
बार-बार,
बहानों से घेरे जाने के लिए,
असहमतियों के चलते,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
क्योंकि
धर्म,संस्कृति,सभ्यता पर,
चढांई जाती है,
धार.
तैयार रहे कि
आबादी के बिना भी,
बनाए जा सकतेे है देश.
शिक्षा-अध्यापकों के बिना,
महज टैंक खड़े करके भी,
बनाए जा सकते है विश्वविद्यालय.
उसी तरह जैसे,
अफवाहों, मिथकीय परिकल्पनाओं,
श्रद्धा और भावनाओं पर,
बिजूके की तरह ,
खड़ा किया जा सकता है,
कलफ लगा इतिहास.
तैयार रहो,
कि लोक को मिटा कर भी,
खड़ा किया जा सकता है तन्त्र.
तैयार रहो कि ,
एक दशक पहले तक,
जिनसे बचते चलते थे तुम.
आज उन्होंने तुम्हें भी समेट लिया है.
इसलिए,
पंखनुचे फड़फडा़ते परिन्दों की तरह,
अर्थ विहीन शब्दों से कामचलाने के लिए,
तैयार रहें.
अब इंसान ही नही,
संस्थाओं, संकल्पनाओं और
संस्कृतियों की हत्याएं भी मुमकिन हैं.
इसलिए अलग-अलग मौकों पर,
अलग-अलग बहानों से,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
कि अगली माबलिंचिंग,
किसी सड़क,गली या कस्बे में नही,
किसी सदन में भी मुमकिन है,
जहां पूरे के पूरे देश को ,
पीट-पीट कर बेदम किया जा सकता है.
आप बस अच्छे नागरिक बने,
सवाल ना करें और,
तैयार रहें...
---Ashrut Parmanand
2 सितंबर 2019
अंत्येष्टि से पूर्व
अंत्येष्टि से पूर्व
हे देव,
मुझे बिजलियाँ, अँधेरे और साँप
डरा देते हैं
मुझे घने जंगल की नागरिकता दो
मेरे भय को मित्रता करनी होगी जंगल से
रहना होगा साहसी!
हे देव,
मैंने एक जगह रुक वर्षों आराम किया
मुझे वायु बना दो
मैं कृषकपुत्रों की गीली बनियानों
और रोमछिद्रों में
समर्पित करूँ स्वयं को!
हे देव,
मैं अपने माता-पिता की सेवा न कर सकी
मुझे सुशीतल ओस बना दो
मैं गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की घास पर
वे रखें मुझ पर पाँव और
मैं उन्हें स्वस्थ रखूँ
हे देव,
मैं कभी सावन में झूली नहीं
मुझे झूले की मज़बूत गाँठ बना दो
मैं उन सभी स्त्रियों और बच्चों को सुरक्षित रखूँ
जो पटके पर खिलखिलाते हुए बैठें
और तृप्त हो उतरें!
हे देव,
कुछ लोगों ने छला है मुझे
मुझे वटवृक्ष बना दो
सैकड़ों पक्षी मेरे भरोसे भरें भोर में उड़ान और
रात भर करें मुझमें विश्राम
मैं उन्हें विश्वसनीय और सुरक्षित नींद दूँ!
हे देव,
मेरा सब्र है एक संपन्न नवजात शिशु
वह प्रतिपल देखभाल माँगता है
मुझे एक हज़ार आठ मनकों वाली
रुद्राक्ष की माला बना दो
मेरे सब्र को होना होगा अनगढ़!
हे देव,
मुझे पत्रों की प्रतीक्षा रहती है
मुझे घाटी के प्रहरियों की
प्रेमिकाओं का दूत बना दो
उन्हें भी होता होगा संदेशों का मोह
मैं दिलासा दे उन्हें व्योम कर सकूँ!
हे देव,
मैंने प्रश्नों के बीज बोए
वे कभी फूल बन न खिल सकें
मुझे भूरी संदली मिट्टी बना दो
मैं तप कर और भीग कर रचूँ
अनेकों खलिहान!
हे देव,
मैं धरती और सितारों के बीच
बेहद बौनी लगती हूँ
मुझे पहाड़ बना दो
मैं बादल के फाहों पर आकृतियाँ बना
उन्हें मनचाहा आकार दूँ!
हे देव,
मैं अपनी पकड़ से फिसल कर
नहीं रच पाती कोई दंतकथा
मुझे काँटेदार रास्ता बना दो
मेरे तलवों को दरकार है अनुभव
टीस और मवाद और ठहराव के!
हे देव,
चिकने फ़र्श पर मेरे पैर फिसलते हैं
मुझे छिले हुए पंजे दो
मेरे पंजों की छाप
सबको चौराहों का संकेत दे
और बताए रास्ता!
हे देव,
मेरे आँसू घुटने पर बहने को तत्पर रहते हैं
मुझे मरुस्थल बना दो
सूखी धरा और उसकी वीरानियों को
यह हक़ है कि
मेरे आँसुओं को वे दास बना लें!
हे देव,
प्रेम मेरी नब्ज़ पकड़
मेरी तरंगें नापता है
मुझे बोधिसत्व का ज़ख़ीरा बना दो
त्याग मेरा कर्म हो
मुझे अस्वीकार का अधिकार चाहिए!
हे देव,
मेरे कुछ सपने अधूरे रह गए हैं
मुझे संभव और असंभव के बीच की दूरी बना दो
मैं पथिकों का बल बनूँ
उनकी राह की
बनूँ जीवन-कथा!
हे देव,
मैंने अब तक
पुलों पर सफ़र किया है
शहर के पुल बेहद कमज़ोर हैं
मुझे तैराक बना दो कि
मैं हर शहरी बच्चे को तैरना सिखा सकूँ!
हे देव,
मेरे बहुत से दिवस बाँझ रहे हैं
मुझे गर्भवती बना दो
मेरी कोख से जन्मे कोई इस्पात
जो ढले और गले केवल संरक्षण करने को
सभ्यताओं को जोड़े रखे!
हे देव,
मैं अपनी
कविताओं की किताब न छपवा सकी
मुझे स्याही बना दो
मैं समस्त कवियों की लेखनी में जा घुलूँ
और रचूँ इतिहास!
--- जोशना बैनर्जी आडवानी
हे देव,
मुझे बिजलियाँ, अँधेरे और साँप
डरा देते हैं
मुझे घने जंगल की नागरिकता दो
मेरे भय को मित्रता करनी होगी जंगल से
रहना होगा साहसी!
हे देव,
मैंने एक जगह रुक वर्षों आराम किया
मुझे वायु बना दो
मैं कृषकपुत्रों की गीली बनियानों
और रोमछिद्रों में
समर्पित करूँ स्वयं को!
हे देव,
मैं अपने माता-पिता की सेवा न कर सकी
मुझे सुशीतल ओस बना दो
मैं गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की घास पर
वे रखें मुझ पर पाँव और
मैं उन्हें स्वस्थ रखूँ
हे देव,
मैं कभी सावन में झूली नहीं
मुझे झूले की मज़बूत गाँठ बना दो
मैं उन सभी स्त्रियों और बच्चों को सुरक्षित रखूँ
जो पटके पर खिलखिलाते हुए बैठें
और तृप्त हो उतरें!
हे देव,
कुछ लोगों ने छला है मुझे
मुझे वटवृक्ष बना दो
सैकड़ों पक्षी मेरे भरोसे भरें भोर में उड़ान और
रात भर करें मुझमें विश्राम
मैं उन्हें विश्वसनीय और सुरक्षित नींद दूँ!
हे देव,
मेरा सब्र है एक संपन्न नवजात शिशु
वह प्रतिपल देखभाल माँगता है
मुझे एक हज़ार आठ मनकों वाली
रुद्राक्ष की माला बना दो
मेरे सब्र को होना होगा अनगढ़!
हे देव,
मुझे पत्रों की प्रतीक्षा रहती है
मुझे घाटी के प्रहरियों की
प्रेमिकाओं का दूत बना दो
उन्हें भी होता होगा संदेशों का मोह
मैं दिलासा दे उन्हें व्योम कर सकूँ!
हे देव,
मैंने प्रश्नों के बीज बोए
वे कभी फूल बन न खिल सकें
मुझे भूरी संदली मिट्टी बना दो
मैं तप कर और भीग कर रचूँ
अनेकों खलिहान!
हे देव,
मैं धरती और सितारों के बीच
बेहद बौनी लगती हूँ
मुझे पहाड़ बना दो
मैं बादल के फाहों पर आकृतियाँ बना
उन्हें मनचाहा आकार दूँ!
हे देव,
मैं अपनी पकड़ से फिसल कर
नहीं रच पाती कोई दंतकथा
मुझे काँटेदार रास्ता बना दो
मेरे तलवों को दरकार है अनुभव
टीस और मवाद और ठहराव के!
हे देव,
चिकने फ़र्श पर मेरे पैर फिसलते हैं
मुझे छिले हुए पंजे दो
मेरे पंजों की छाप
सबको चौराहों का संकेत दे
और बताए रास्ता!
हे देव,
मेरे आँसू घुटने पर बहने को तत्पर रहते हैं
मुझे मरुस्थल बना दो
सूखी धरा और उसकी वीरानियों को
यह हक़ है कि
मेरे आँसुओं को वे दास बना लें!
हे देव,
प्रेम मेरी नब्ज़ पकड़
मेरी तरंगें नापता है
मुझे बोधिसत्व का ज़ख़ीरा बना दो
त्याग मेरा कर्म हो
मुझे अस्वीकार का अधिकार चाहिए!
हे देव,
मेरे कुछ सपने अधूरे रह गए हैं
मुझे संभव और असंभव के बीच की दूरी बना दो
मैं पथिकों का बल बनूँ
उनकी राह की
बनूँ जीवन-कथा!
हे देव,
मैंने अब तक
पुलों पर सफ़र किया है
शहर के पुल बेहद कमज़ोर हैं
मुझे तैराक बना दो कि
मैं हर शहरी बच्चे को तैरना सिखा सकूँ!
हे देव,
मेरे बहुत से दिवस बाँझ रहे हैं
मुझे गर्भवती बना दो
मेरी कोख से जन्मे कोई इस्पात
जो ढले और गले केवल संरक्षण करने को
सभ्यताओं को जोड़े रखे!
हे देव,
मैं अपनी
कविताओं की किताब न छपवा सकी
मुझे स्याही बना दो
मैं समस्त कवियों की लेखनी में जा घुलूँ
और रचूँ इतिहास!
--- जोशना बैनर्जी आडवानी
23 अगस्त 2019
उपचार
बेवफ़ा प्रेमिका से तुम्हारे टूटे हुए दिल का उपचार
तुम करो तीन प्रक्रियाओं से आबद्ध
पहला कि उसे जाने दो
दूसरा कि करो स्वीकार कि तुम्हारी जगह किसी और को लाएगी
अपने बिस्तर पर सजाएगी
और तीसरा कि करो कल्पना वास्तविक
कि वह रही नहीं
वह मर गई पिछले वर्ष सितंबर में
हो एक सड़क हादसे का शिकार
--- Shayak Alok
तुम करो तीन प्रक्रियाओं से आबद्ध
पहला कि उसे जाने दो
दूसरा कि करो स्वीकार कि तुम्हारी जगह किसी और को लाएगी
अपने बिस्तर पर सजाएगी
और तीसरा कि करो कल्पना वास्तविक
कि वह रही नहीं
वह मर गई पिछले वर्ष सितंबर में
हो एक सड़क हादसे का शिकार
--- Shayak Alok
21 अगस्त 2019
Poetry and prose
Sometimes I am caught
between poetry and prose, like two lovers
I can't decide between.
Prose says to me, let's build
something long and lasting.
Poetry takes me by the hand,
and whispers, come with me,
let's get lost for awhile.
--- Lang Leav
between poetry and prose, like two lovers
I can't decide between.
Prose says to me, let's build
something long and lasting.
Poetry takes me by the hand,
and whispers, come with me,
let's get lost for awhile.
--- Lang Leav
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