1 मई 2021

मजदूर हैं हम

मजदूर हैं हम
और मानते हैं कि तुमसे थोड़ा अलग है
तुम्हारे जिस्म लहू और हड्डियों से बने हैं
हमारे सीमेंट और गिट्टियों से,
तुम मां की कोख से जन्म लेते हो
हम कारखाने की भट्ठियों से,
हम खदानों का कोयला है
तुम तिजोरी का सोना
तुम्हें पूरी दुनिया चाहिए
हमें सिर्फ एक कोना
बहुत मुश्किल है
तुम्हारा और हमारा एक साथ होना

ये बराबरी का दौर है
यहां किसी को छोटा कहते अच्छा नहीं लगता
पर तुम्हें कहे भी तो क्या कहें?
तुम बेचारे महंगे मर्तबानो के मारे
अपनी प्यास के लिए मिट्टी के प्याले नहीं कमा पाए
जिंदगी भर दौड़ते रहे और हमारी तरह पैरों के छाले नहीं कमा पाए
स्क्वैर-फिट्स के बाशिंदों कभी जमीन बिछाकर सोए हो क्या?
ब्रेक्सिट पर आंसू बहाने वालों कभी भरत मिलाप देख कर रोए हो क्या?
तुम्हारे जख्म मरहमों के मोहताज हैं
और हमें चोट लग जाए तो धूप के फरिश्ते आकर अपनी उंगलियों का सेक देते हैं
तुम्हारे पास दुखों के वो हीरे कहां?
जो हमारे बच्चे खेल के फेक देते हैं

तुम जुगनूओं के जागीरदार
हम तड़पता हुआ आफ़ताब हैं
तुम नक्शों पे खींची तंग दिल हकीकत
हम नई दुनिया का दरिया दिल ख़्वाब है
तुम सिर्फ जिंदाबाद हो,
हम इंकलाब हैं
यानी तुम बहुत मामूली हो,
हम बहुत नायाब हैं

इसलिए आज हम अपनी गलती कुबूल करते हैं
हमने मांगने से पहले देने वाले का बौनापन नहीं देखा
हमारी मेहनतों का कद तुम्हारी इमारतों से बड़ा है
तुम हमें क्या दोगे?
तुम्हारी एक-एक ईंट पे हमारे पसीने का उधार चढ़ा है
तुम हमें क्या दोगे?
21वीं सदी में महाशक्ति बनने का तुम्हारा सपना, हमारे पैरों पर खड़ा है
तुम हमें क्या दोगे?
हम देते हैं तुम्हे, ये वचन की आज तुम्हें छोड़कर जा रहे हैं
पर वापस लौट के आएंगे,
तुम्हारी ये कायनात जो उजड़ गई है,
इसे फिर बसाएगे
जिंदगी का मलबा देखकर आंसू मत बहाओ,
हम ईश्वर के हाथ हैं
तुम्हारे लिए एक नई दुनिया बनाएंगे।

---मनोज मुंतशिर

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