ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के
कह रही है झोपडी औ’ पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के
बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर,
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के
कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है,
ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के
हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से,
बेडि़याँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के
दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंक़लाब,
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के
एकता से बल मिला है झोपड़ी की साँस को,
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के
तेलंगाना जी उठेगा देश के हर गाँव में,
अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गाँव में
देख ‘बल्ली’ जो सुबह फीकी दिखे है आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के
---बल्ली सिंह चीमा
23 मार्च 2021
15 मार्च 2021
"Estadio Chile", or "Somos Cinco Mil"
There are five thousand of us herein this small part of the city.
We are five thousand.
I wonder how many we are in all
in the cities and in the whole country?
Here alone
are ten thousand hands which plant seeds
and make the factories run.
How much humanity
exposed to hunger, cold, panic, pain,
moral pressure, terror and insanity?
Six of us were lost
as if into starry space.
One dead, another beaten as I could never have believed
a human being could be beaten.
The other four wanted to end their terror
one jumping into nothingness,
another beating his head against a wall,
but all with the fixed stare of death.
What horror the face of fascism creates!
They carry out their plans with knife-like precision.
Nothing matters to them.
To them, blood equals medals,
slaughter is an act of heroism.
Oh God, is this the world that you created,
for this your seven days of wonder and work?
Within these four walls only a number exists
which does not progress,
which slowly will wish more and more for death.
But suddenly my conscience awakes
and I see that this tide has no heartbeat,
only the pulse of machines
and the military showing their midwives' faces
full of sweetness.
Let Mexico, Cuba and the world
cry out against this atrocity!
We are ten thousand hands
which can produce nothing.
How many of us in the whole country?
The blood of our President, our compañero,
will strike with more strength than bombs and machine guns!
So will our fist strike again!
How hard it is to sing
when I must sing of horror.
Horror which I am living,
horror which I am dying.
To see myself among so much
and so many moments of infinity
in which silence and screams
are the end of my song.
What I see, I have never seen
What I have felt and what I feel
Will give birth to the momentÂ…
We are five thousand.
I wonder how many we are in all
in the cities and in the whole country?
Here alone
are ten thousand hands which plant seeds
and make the factories run.
How much humanity
exposed to hunger, cold, panic, pain,
moral pressure, terror and insanity?
Six of us were lost
as if into starry space.
One dead, another beaten as I could never have believed
a human being could be beaten.
The other four wanted to end their terror
one jumping into nothingness,
another beating his head against a wall,
but all with the fixed stare of death.
What horror the face of fascism creates!
They carry out their plans with knife-like precision.
Nothing matters to them.
To them, blood equals medals,
slaughter is an act of heroism.
Oh God, is this the world that you created,
for this your seven days of wonder and work?
Within these four walls only a number exists
which does not progress,
which slowly will wish more and more for death.
But suddenly my conscience awakes
and I see that this tide has no heartbeat,
only the pulse of machines
and the military showing their midwives' faces
full of sweetness.
Let Mexico, Cuba and the world
cry out against this atrocity!
We are ten thousand hands
which can produce nothing.
How many of us in the whole country?
The blood of our President, our compañero,
will strike with more strength than bombs and machine guns!
So will our fist strike again!
How hard it is to sing
when I must sing of horror.
Horror which I am living,
horror which I am dying.
To see myself among so much
and so many moments of infinity
in which silence and screams
are the end of my song.
What I see, I have never seen
What I have felt and what I feel
Will give birth to the momentÂ…
---Victor Jara
8 मार्च 2021
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज
आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज
जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार
तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार
तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार
ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम ओ तअ'य्युन का हिसार
कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है
तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है
ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शो'ले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल
नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल
क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल
राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़
तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़
तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़
बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं
लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
---कैफ़ी आज़मी
क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज
आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज
जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार
तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार
तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार
ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम ओ तअ'य्युन का हिसार
कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है
तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है
ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शो'ले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल
नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल
क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल
राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़
तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़
तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़
बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं
लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
1 मार्च 2021
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।। टेक।।
आसन मारि मंदिर में बैठे, नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।।
कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।। 2।।
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।। 3।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले, गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।। 4।।
कहहि कबीर सुनो भाई साधो, जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।। 5।।
--- कबीरदास
23 फ़रवरी 2021
पुल बन गया था
मैं जिन लोगों के लिए
पुल बन गया था
वे जब मुझ पर से
गुज़र कर जा रहे थे
मैंने सुना—मेरे बारे में कह रहे थे :
वह कहाँ छूट गया
चुप-सा आदमी?
शायद पीछे लौट गया है!
हमें पहले ही ख़बर थी
उसमें दम नहीं है।
--- सुरजीत पातर
पंजाबी से अनुवाद : चमनलाल
20 फ़रवरी 2021
10-Year-Old Shot Three Times, but She’s Fine
Dumbfounded in hospital whites, you are picture-book
itty-bit, floundering in bleach and steel. Braids untwirl
and corkscrew, you squirm, the crater in your shoulder
spews a soft voltage. On a TV screwed into the wall
above your head, neon rollicks. A wide-eyed train
engine perfectly smokes, warbles a song about forward.
Who shot you, baby?
I don’t know. I was playing.
You didn’t see anyone?
I was playing with my friend Sharon.
I was on the swing
and she was—
Are you sure you didn’t—
No, I ain’t seen nobody but Sharon. I heard
people yelling though, and—
Each bullet repainted you against the brick, kicked
you a little sideways, made you need air differently.
You leaked something that still goldens the boulevard.
I ain’t seen nobody, I told you.
And at A. Lincoln Elementary on Washington Street,
or Jefferson Elementary on Madison Street, or Adams
Elementary just off the Eisenhower Expressway,
we gather the ingredients, if not the desire, for pathos:
an imploded homeroom, your empty seat pulsating
with drooped celebrity, the sometime counselor
underpaid and elsewhere, a harried teacher struggling
toward your full name. Anyway your grades weren’t
all that good. No need to coo or encircle anything,
no call for anyone to pull their official white fingers
through your raveled hair, no reason to introduce
the wild notion of loving you loud and regardless.
Oh, and they’ve finally located your mama, who
will soon burst in with her cut-rate cure of stammering
Jesus’ name. Beneath the bandages, your chest crawls
shut. Perky ol’ Thomas winks a bold-faced lie from
his clacking track, and your heart monitor hums
a wry tune no one will admit they’ve already heard.
Elsewhere, 23 seconds rumble again and again through
Sharon’s body. Boom, boom, she says to no one.
itty-bit, floundering in bleach and steel. Braids untwirl
and corkscrew, you squirm, the crater in your shoulder
spews a soft voltage. On a TV screwed into the wall
above your head, neon rollicks. A wide-eyed train
engine perfectly smokes, warbles a song about forward.
Who shot you, baby?
I don’t know. I was playing.
You didn’t see anyone?
I was playing with my friend Sharon.
I was on the swing
and she was—
Are you sure you didn’t—
No, I ain’t seen nobody but Sharon. I heard
people yelling though, and—
Each bullet repainted you against the brick, kicked
you a little sideways, made you need air differently.
You leaked something that still goldens the boulevard.
I ain’t seen nobody, I told you.
And at A. Lincoln Elementary on Washington Street,
or Jefferson Elementary on Madison Street, or Adams
Elementary just off the Eisenhower Expressway,
we gather the ingredients, if not the desire, for pathos:
an imploded homeroom, your empty seat pulsating
with drooped celebrity, the sometime counselor
underpaid and elsewhere, a harried teacher struggling
toward your full name. Anyway your grades weren’t
all that good. No need to coo or encircle anything,
no call for anyone to pull their official white fingers
through your raveled hair, no reason to introduce
the wild notion of loving you loud and regardless.
Oh, and they’ve finally located your mama, who
will soon burst in with her cut-rate cure of stammering
Jesus’ name. Beneath the bandages, your chest crawls
shut. Perky ol’ Thomas winks a bold-faced lie from
his clacking track, and your heart monitor hums
a wry tune no one will admit they’ve already heard.
Elsewhere, 23 seconds rumble again and again through
Sharon’s body. Boom, boom, she says to no one.
14 फ़रवरी 2021
Ode to the flute
A man sings
by opening his
mouth a man
sings by opening
his lungs by
turning himself into air
a flute can
be made of a man
nothing is explained
a flute lays
on its side
and prays a wind
might enter it
and make of it
at least
a small final song
by opening his
mouth a man
sings by opening
his lungs by
turning himself into air
a flute can
be made of a man
nothing is explained
a flute lays
on its side
and prays a wind
might enter it
and make of it
at least
a small final song
---Ross Gay
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