अना को मार के सब कुछ बचा लिया मैंने!!
कहीं भी जाऊँ नज़र में हूँ इक ज़माने की,
ये कैसा ख़ुद को तमाशा बना लिया मैंने!!
अज़ीम थे ये दुआओं को उठने वाले हाथ,
न जाने कब इन्हें कासा बना लिया मैंने!!
अंधेरे बीच में आ जाते इससे पहले ही,
दिया तुम्हारे दिये से जला लिया मैंने!!
मुझे जुनून था हीरा तराशने का तो फिर,
कोई भी राह का पत्थर उठा लिया मैंने!!
जले तो हाथ मगर हाँ हवा के हमलों से,
किसी चराग़ की लौ को बचा लिया मैंने!!