27 नवंबर 2015

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
कहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा गा़एबाना क्या

क्या क्या उलझता है तिरी ज़ुल्फों के तार से
बख़िया-तलब है सीना-ए-सद-चाक-शाना क्या

ज़ेर-ए-जमीं से आता है जो गुल सो ज़र-ब-कफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया ख़जाना क्या

उड़ता है शौक़-ए-राहत-ए-मंज़िल से अस्प-ए-उम्र
महमेज़ कहते हैंगे किसे ताज़ियाना क्या

ज़ीना सबा ढूँढती है अपनी मुश्त-ए-ख़ाक
बाम-ए-बुलंद यार का है आस्ताना क्या

चारों तरफ से सूरत-ए-जानाँ हो जलवा गर
दिल साफ़ हो तिरा तो है आईना-ख़ाना क्या

सय्याद असीर-ए-दाम-ए-रग-ए-गुल है अंदलीब
दिखला रहा है छु के उसे दाम ओ दाना क्या

तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल
हम से खिलाफ हो के करेगा ज़माना क्या

आती है किस तरह से मिरे क़ब्ज़-ए-रूह को
देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या

होता है जर्द सुन के जो ना-मर्द मुद्दई
रूस्तम की दास्ताँ है हमारा फ़साना क्या

तिरछी निगह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार
जब तीर कज पड़े तो अड़ेगा निशाना क्या

सय्याद-ए-गुल अज़ार दिखाता है सैर-ए-ब़ाग
बुलबुल क़फ़स में याद करे आशियाना क्या

बे-ताब है कमाल हमारा दिल-ए-हज़ीं
मेहमाँ सरा-ए-जिस्म का होगा रवाना क्या

यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तो न दे
‘आतिश’ ग़जल ये तू ने कही आशिक़ाना क्या

--- हैदर अली 'आतिश'

14 नवंबर 2015

A child

A child with its ear to the rails
is listening for the train.
Lost in the omnipresent music
it cares little
whether the train is coming or going away ...
But you were always expecting someone,
always parting from someone,
until you found yourself and are no longer anywhere

---Vladimír Holan

2 अक्टूबर 2015

You start dying slowly

You start dying slowly
if you do not travel,
if you do not read,
If you do not listen to the sounds of life,
If you do not appreciate yourself.

You start dying slowly
When you kill your self-esteem;
When you do not let others help you.
You start dying slowly
If you become a slave of your habits,
Walking everyday on the same paths…
If you do not change your routine,
If you do not wear different colours
Or you do not speak to those you don’t know.

You start dying slowly
If you avoid to feel passion
And their turbulent emotions;
Those which make your eyes glisten
And your heart beat fast.

You start dying slowly
If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love,
If you do not risk what is safe for the uncertain,
If you do not go after a dream,
If you do not allow yourself,
At least once in your lifetime,
To run away from sensible advice…

~ Pablo Neruda

2 सितंबर 2015

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़[1] के इम्तिहाँ[2] और भी हैं

तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं

क़ना'अत[3]न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू[4]पर
चमन और भी, आशियाँ[5]और भी हैं

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ[6]और भी हैं

तू शाहीं[7]है परवाज़[8]है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं

इसी रोज़-ओ-शब [9]में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ [10]और भी हैं

गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन [11]में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ [12]और भी हैं

--- अल्लामा इक़बाल

शब्दार्थ:
1 ↑ प्रेम
2 ↑ परीक्षाएँ
3 ↑ संतोष
4 ↑ इन्द्रीय संसार
5 ↑ घरौंदे
6 ↑ रोने-धोने की जगहें
7 ↑ गरुड़ , उक़ाब
8 ↑ उड़ान भरना
9 ↑ सुबह -शाम के चक्कर
10 ↑ धरती और मकान
11 ↑ महफ़िल
12 ↑ रहस्य जानने वाले

14 अगस्त 2015

मैं सोच रहा,

मैं सोच रहा, सिर पर अपार
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?

जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया? 

सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया? 

जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया? 

जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?

4 अगस्त 2015

The Swallow

Oh, Swallow
As you depart our spring
slow down.
In the wood burner's exhaust pipe
as the firewood came inside,
you forgot your echo.

Oh, Swallow,
slow down.
With the feather in the
window, Swallow,

we adorned
the martyr's picture

and death flew out of the picture.

Slow down, Swallow.
The nest belongs
to whoever builds it.

---Hala Mohammad

25 जुलाई 2015

सेलफ़ोन

आप अपने सेलफ़ोन पर बात करते हैं

करते रहते हैं,

करते जाते हैं

और हँसते हैं अपने सेलफ़ोन पर

यह न जानते हुए कि वह कैसे बना था

और यह तो और भी नहीं कि वह कैसे काम करता है

लेकिन इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है

परेशानी की बात यह कि

आप नहीं जानते

जैसे मैं भी नहीं जानता था

कि कांगो में मौत के शिकार होते हैं बहुत से लोग

हज़ारों हज़ार

इस सेलफ़ोन की वजह से

वे मौत के मुँह में जाते हैं कांगो में

उसके पहाड़ों में कोल्टन होता है

(सोने और हीरे के अलावा)

जो काम आता है सेलफ़ोन के

कण्डेंसरों में

खनिजों पर क़ब्ज़ा करने के लिए

बहुराष्ट्रीय निगम

छेड़े रहते हैं एक अन्तहीन जंग

15 साल में 50 लाख मृतक

और वे नहीं चाहते कि यह बात

लोगों को पता चले

विशाल सम्पदा वाला देश

जिसकी आबादी त्रस्त है ग़रीबी से

दुनिया के 80 प्रतिशत कोल्टन के

भण्डार हैं कांगो में

कोल्टन वहाँ छिपा हुआ है

तीस हज़ार लाख वर्षों से

नोकिया, मोटरोला, कम्पाक, सोनी

ख़रीदते हैं कोल्टन

और पेंटागन भी, न्यूयॉर्क टाइम्स

कारपोरेशन भी,

और वे इसका पता नहीं चलने देना चाहते

वे नहीं चाहते कि युद्ध ख़त्म हो

ताकि कोल्टन को हथियाया जाना जारी रह सके

7 से 10 साल तक के बच्चे निकालते हैं कोल्टन

क्योंकि छोटे छेदों में आसानी से

समा जाते हैं

उनके छोटे शरीर

25 सेण्ट रोज़ाना की मजूरी पर

और झुण्ड के झुण्ड बच्चे मर जाते हैं

कोल्टन पाउडर के कारण

या चट्टानों पर चोट करने की वजह से

जो गिर पड़ती है उनके ऊपर

न्यूयॉर्क टाइम्स भी

नहीं चाहता कि यह बात पता चले

और इस तरह अज्ञात ही रहता है

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का

यह संगठित अपराध

बाइबिल में पहचाना गया है

सत्य और न्याय

और प्रेम और सत्य

तब उस सत्य की अहमियत में

जो हमें मुक्त करेगा

शामिल है कोल्टन का सत्य भी

कोल्टन जो आपके सेलफ़ोन के भीतर है

जिस पर आप बात करते हैं करते जाते हैं

और हँसते हैं सेलफ़ोन पर बात करते हुए

---एर्नेस्तो कार्देनाल
अनुवाद: मंगलेश डबराल