असत् भी नहीं
अन्तरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या?
कहाँ?
किसने ढका था?
उस पल तो अगम अतल जल भी कहाँ था? ।।१।।
नहीं थी मृत्यू
थी अमरता भी नहीं
नहीं था दिन
रात भी नहीं
हवा भी नहीं
साँस थी स्वयमेव फिर भी
नही था कोई कुछ भी
परमतत्त्व से अलग या परे भी ।।२।।
अंधेरे में अंधेरा-मुँदा अँधेरा था
जल भी केवल निराकार जल था
परमतत्त्व था सृजन-कामना से भरा
ओछे जल से घिरा
वही अपनी तपस्या की महिमा से उभरा ।।३।।
परम मन में बीज पहला जो उगा
काम बनकर वह जगा
कवियों ग्यानियों ने जाना
असत् और सत् का निकट संबंध पहचाना ।।४।।
फैले संबंध के किरण धागे तिरछे
परमतत्त्व उस पल ऊपर या नीचे?
वह था बँटा हुआ
पुरुष और स्त्री बना हुआ
ऊपर दाता वही भोक्ता
नीचे वसुधा स्वधा हो गया ।।५।।
सृष्टी यह बनी कैसे?
किससे?
आई है कहाँ से?
कोई क्या जानता है?
बता सकता है?
देवताओं को नहीं ग्यात
वे आए सृजन के बाद
सृष्टी को रचां है जिसने
उसको जाना किसने? ।।६।।
सृष्टी का कौन है कर्ता?
कर्ता है वा अकर्ता?
ऊँचे आकाश में रहता
सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता
या नहीं भी जानता है
किसी को नहीं पता
नहीं पता नहीं है पता ।।७।।