1 मई 2019

समाजवाद

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई

नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई

गांधी से आई, आँधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई

कांगरेस से आई, जनता से आई
झंडा से बदली हो आई

डालर से आई, रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई

वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई

लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अहिंसा कहाई

महँगी ले आई, गरीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई

छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन
बखरा बराबर लगाई

परसों ले आई, बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई

धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई
अँखियन पर परदा लगाई

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

--- गोरख पांडेय

17 अप्रैल 2019

मुँह की बात

मुँह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन ।

सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन ।

जाने क्या-क्या बोल रहा था
सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर
जाग रहा था जाने कौन ।

मैं उसकी परछाई हूँ या
वो मेरा आईना है
मेरे ही घर में रहता है
मेरे जैसा जाने कौन ।

किरन-किरन अलसाता सूरज
पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है
ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन ।

--- निदा फ़ाज़ली

7 अप्रैल 2019

अमीर खुसरो की रचनाएं

जब यार देखा नैन भर
जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर ।

जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर ।

तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली तुम आय कर ।

जाना तलब तेरी करूँ दीगर तलब किसकी करूँ
तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर ।

मेरी जो मन तुम ने लिया, तुम उठा गम को दिया
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर ।

खुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर ।

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छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाएके
प्रेम भटी का मधवा पिलाके मतवारी करलीनी रे
गोरी गोरी बय्यां हरी हरी चूरीयां
बय्यां पकड़ धरलीनी रे मोसे नैना मिलाएके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रेजवा
अपनी सी करलीनी रे मो से नैना मिलाएके
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये
मोहे सुहागन कीनी रे मो से नैना मिलाएके

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बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे मैं भर लाउं मधवा से मटकी ?
पनिया भरन को मैं जो गइ थी ।
दोड़ झपट मोरा मटकी पटकी ।
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये ।
लाज रखो मोरे घुंघट पट की ।

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तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी ।
सब सखियन में चुनर मेरी मैली,
देख हसें नर नारी, निजाम...
अबके बहार चुनर मोरी रंग दे,
पिया रखले लाज हमारी, निजाम....
सदका बाबा गंज शकर का,
रख ले लाज हमारी, निजाम...
कुतब, फरीद मिल आए बराती,
खुसरो राजदुलारी, निजाम...
कौउ सास कोउ ननद से झगड़े,
हमको आस तिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम...

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--- अमीर ख़ुसरो

29 मार्च 2019

सुख का दुख

जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दुख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं।
यहां एक बात
इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,
बड़े सुखों को देखकर
मेरे बच्चे सहम जाते हैं,
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें
सिखा दूं कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।

मगर नहीं
मैंने देखा है कि जब कभी
कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में
बाजार में या किसी के घर,
तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,
किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।

बल्कि कहना चाहिये
खुशी झलकी है, डर छा गया है,
उनका उठना उनका बैठना
कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,
और मुझे इतना दुख होता है देख कर
कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।

मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,
इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।
इस झूले के पेंग निराले हैं
बेशक इस पर झूलो,
मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते
खड़े खड़े ताकते हैं,
अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ
तो चीख मार कर भागते हैं।

बड़े बड़े सुखों की इच्छा
इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।

भवानी प्रसाद मिश्र

20 मार्च 2019

Another day

Another day. I follow another path,
Enter the leafing woodland, visit the spring
Or the rocks where the roses bloom
Or search from a look-out, but nowhere

Love are you to be seen in the light of day
And down the wind go the words of our once so
Beneficent conversation...

Your beloved face has gone beyond my sight,
The music of your life is dying away
Beyond my hearing and all the songs
That worked a miracle of peace once on

My heart, where are they now? It was long ago,
So long and the youth I was has aged nor is
Even the earth that smiled at me then
The same. Farewell. Live with that word always.

For the soul goes from me to return to you
Day after day and my eyes shed tears that they
Cannot look over to where you are
And see you clearly ever again.

--- Friedrich Holderlin

16 मार्च 2019

Masses

. . .When the battle was over,
and the fighter was dead, a man came toward him
and said to him: “Do not die; I love you so!”
But the corpse, it was sad! went on dying.

. . .And two came near, and told him again and again:
“Do not leave us! Courage! Return to life!”
But the corpse, it was sad! went on dying.

. . .Twenty arrived, a hundred, a thousand, five hundred thousand,
shouting: “So much love, and it can do nothing against death!”
But the corpse, it was sad! went on dying.

. . .Millions of persons stood around him,
all speaking the same thing: “Stay here, brother!”
But the corpse, it was sad! went on dying.

. . .Then all the men of the earth
stood around him; the corpse looked at them sadly, deeply moved;
he sat up slowly,
put his arms around the first man; started to walk. . .

--- Cesar Vallejo and translated by Robert Bly

1 मार्च 2019

मार्च ‘79 से

उन सब से ऊब कर

जिनके पास केवल शब्द होते हैं

केवल शब्द और कोई भाषा नहीं

मैं बर्फ से ढके द्वीप पर गया

जंगल की कोई भाषा नहीं होती

अनलिखे पन्ने सभी दिशाओं में फैले रहते हैं!

मुझे वहां बर्फ पर हिरन के खुरों के निशान दिखाई दिए

उन निशानों में भाषा थी पर शब्द नहीं थे

--- टॉमस ट्रांसट्रोमर, अनुवाद और प्रस्तुति : मोनिका कुमार