5 सितंबर 2024

बुख़ार में कविता

'मंच पर खड़े होकर
कुछ बेवक़ूफ़ चीख़ रहे हैं
कवि से
आशा करता है
सारा देश।
मूर्खों! देश को खोकर ही
मैंने प्राप्त की थी
यह कविता...'

~ श्रीकान्त वर्मा
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{'बुख़ार में कविता' से}

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