September 12, 2024

|| कविताएँ देशहित में नहीं होतीं ||

कविताएँ देशहित में नहीं होतीं
जैसे
हवाएँ नेत्रहित में नहीं होतीं
वही उकसाती हैं रेतकणों को
उछलकर किरकिरी बन जाने के लिए
वैसे ही
कविताएँ देशहित में नहीं होतीं
वही बताती हैं कि सीमाएँ क़ैद करती हैं
इंसान को
इस तरफ़ भी और उस तरफ़ भी
देती हैं इल्म
कि क्या रहम है और क्या ज़ुल्म
बताइए साँप को
ज़हर मारने की दवा भाएगी क्या!

--- विवेक आसरी

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