27 अगस्त 2024

15 बेहतरीन शेर - 12 !!!

1. कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आँकिए, असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है.
    जिस शहर में मुंतज़िम अंधे हों जल्वागाह के, उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है. 
    - अदम गोंडवी

2. अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं, अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं
    और एक जाम-ए-मए तल्ख़ चढ़ा लूं तो चलूं, अभी चलता हूं ज़रा ख़ुद को संभालूं तो चलूं
    - मुईन अह्सन जज़्बी

3- मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है, 
    कि हरकत तेज़-तर है और सफ़र आहिस्ता आहिस्ता - मुनीर नियाज़ी

4- तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था, 
    उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था हबीब जालिब

3. शाम-ए-फ़िराक़ अब ना पूछ, आई और आ के टल गई | 
    दिल था कि फिर बहल गया , जां थी कि फिर संभल गई...!!! - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

4. शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूं , फ़रिश्तों अब तो सोने दो, 
 
    कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता - आहिस्ता...!!! - अमीर मीनाई

5. वही कारवाँ,वही रास्ते, वही ज़िंदगी, वही मरहले,  
 
    मगर अपने अपने मक़ाम पर, कभी तुम नहीं,कभी हम नहीं - शकील बदायूनी

6. जहाँ हर सिंगार फ़ुज़ूल हों जहाँ उगते सिर्फ़ बबूल हों,  
    जहाँ ज़र्द रंग हो घास का वहाँ क्यूँ न शक हो बहार पर  ~ विकास शर्मा राज़

7. वो तुझ को भूलें हैं तो तुझ पे भी लाज़िम है मीर,
    ख़ाक डाल. आग लगा. नाम न ले. याद न कर ! - मीर तक़ी मीर

8. गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वां तुझे, 
    पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ ! - नज़्म तबातबाई

9. इस दर्जा होशियार तो पहले कभी न थे, 
    अब क्यों क़दम क़दम पे संभलने लगे हैं हम ! - वाली आसी

10. 'रातों को दिन कह रहा, दिन को कहता रात,  
       जितना ऊँचा आदमी, उतनी नीची बात।' - अंसार कम्बरी

11. बेगुनाही जुर्म था अपना, सो इस कोशिश में हूं,  
       सुर्ख़-रू मैं भी रहूं, क़ातिल भी शर्मिंदा न हो ! - सुरूर बाराबंकवी

12- इलेक्शन तक गरीबों का वो हुजरा देखते हैं, 
       हुकूमत मिल गई तो सिर्फ "मुजरा" देखते हैं। ~उस्मान मीनाई

13- है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है, 
    कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है ~ बशीर बद्र

14- हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए, 
       बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए - अकबर इलाहाबादी

15-  जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा, 
        तिरा दिल तो है सनम-आश्ना  तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में - अल्लामा इक़बाल

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