यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।
---सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
23 मई 2019
19 मई 2019
मतदान केंद्र पर झपकी
अबकी वोट देने पहुंचा
तो अचानक पता चला
मतदाता सूची में
मेरा नाम ही नहीं है
किसी से पूछूं कि मेरे भीतर से
आवाज़ आई -
उज़बक की तरह ताकते क्या हो
न सही मतदाता सूची में
उस विशाल सूची में तो हो ही
जिसमें वे सारे नाम हैं
जो छूट जाते हैं बाहर
बाहर निकला
तो निगाह पड़ी सामने खड़े पेड़ पर
सोचा - वह भी तो नागरिक है इसी मिट्टी का
और देखो न मरजीवे को
खड़ा है कैसा मस्त मलंग!
मैं पेड़ के पास गया
और उसकी छांह में बैठे-बैठे
आ गई झपकी
देखा - पेड़ के नेतृत्व में चले जा रहे हैं
बहुत पेड़ और लोग...
जिसमें शामिल हैं-
बड़
पाकड़
गूलर
गंभार
मसान काली का दमकता सिन्दूर
चला जा रहा था आगे-आगे
कि सहसा एक पत्ती के गिरने का
धमाका हुआ
और टूट गई नींद
मैंने देखा
अब मेरी जेब में मेरा अनदिया वोट है
एक नागरिक का अन्तिम हथियार
मैंने ख़ुद से कहा
अब घर चलो केदार
और खोजो इस व्यर्थ में
नया कोई अर्थ
--- केदारनाथ सिंह
तो अचानक पता चला
मतदाता सूची में
मेरा नाम ही नहीं है
किसी से पूछूं कि मेरे भीतर से
आवाज़ आई -
उज़बक की तरह ताकते क्या हो
न सही मतदाता सूची में
उस विशाल सूची में तो हो ही
जिसमें वे सारे नाम हैं
जो छूट जाते हैं बाहर
बाहर निकला
तो निगाह पड़ी सामने खड़े पेड़ पर
सोचा - वह भी तो नागरिक है इसी मिट्टी का
और देखो न मरजीवे को
खड़ा है कैसा मस्त मलंग!
मैं पेड़ के पास गया
और उसकी छांह में बैठे-बैठे
आ गई झपकी
देखा - पेड़ के नेतृत्व में चले जा रहे हैं
बहुत पेड़ और लोग...
जिसमें शामिल हैं-
बड़
पाकड़
गूलर
गंभार
मसान काली का दमकता सिन्दूर
चला जा रहा था आगे-आगे
कि सहसा एक पत्ती के गिरने का
धमाका हुआ
और टूट गई नींद
मैंने देखा
अब मेरी जेब में मेरा अनदिया वोट है
एक नागरिक का अन्तिम हथियार
मैंने ख़ुद से कहा
अब घर चलो केदार
और खोजो इस व्यर्थ में
नया कोई अर्थ
--- केदारनाथ सिंह
7 मई 2019
The Impossible
It is much easier for you
To push an elephant through a needle’s eye,
Catch fried fish in galaxy,
Blow out the sun,
Imprison the wind,
Or make a crocodile speak,
Than to destroy by persecution
The shimmering glow of a belief
Or check our march
Towards our cause
One single step…
---Tawfiq Zayyad (1929-1994)
To push an elephant through a needle’s eye,
Catch fried fish in galaxy,
Blow out the sun,
Imprison the wind,
Or make a crocodile speak,
Than to destroy by persecution
The shimmering glow of a belief
Or check our march
Towards our cause
One single step…
---Tawfiq Zayyad (1929-1994)
1 मई 2019
समाजवाद
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई
नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई
गांधी से आई, आँधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई
कांगरेस से आई, जनता से आई
झंडा से बदली हो आई
डालर से आई, रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई
वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई
लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अहिंसा कहाई
महँगी ले आई, गरीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई
छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन
बखरा बराबर लगाई
परसों ले आई, बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई
धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई
अँखियन पर परदा लगाई
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
--- गोरख पांडेय
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई
नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई
गांधी से आई, आँधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई
कांगरेस से आई, जनता से आई
झंडा से बदली हो आई
डालर से आई, रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई
वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई
लाठी से आई, गोली से आई
लेकिन अहिंसा कहाई
महँगी ले आई, गरीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई
छोटका का छोटहन, बड़का का बड़हन
बखरा बराबर लगाई
परसों ले आई, बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई
धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई
अँखियन पर परदा लगाई
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
--- गोरख पांडेय
17 अप्रैल 2019
मुँह की बात
मुँह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन ।
सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन ।
जाने क्या-क्या बोल रहा था
सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर
जाग रहा था जाने कौन ।
मैं उसकी परछाई हूँ या
वो मेरा आईना है
मेरे ही घर में रहता है
मेरे जैसा जाने कौन ।
किरन-किरन अलसाता सूरज
पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है
ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन ।
--- निदा फ़ाज़ली
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन ।
सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन ।
जाने क्या-क्या बोल रहा था
सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर
जाग रहा था जाने कौन ।
मैं उसकी परछाई हूँ या
वो मेरा आईना है
मेरे ही घर में रहता है
मेरे जैसा जाने कौन ।
किरन-किरन अलसाता सूरज
पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है
ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन ।
--- निदा फ़ाज़ली
7 अप्रैल 2019
अमीर खुसरो की रचनाएं
जब यार देखा नैन भर
जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर ।
जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर ।
तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली तुम आय कर ।
जाना तलब तेरी करूँ दीगर तलब किसकी करूँ
तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर ।
मेरी जो मन तुम ने लिया, तुम उठा गम को दिया
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर ।
खुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर ।
. *********
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाएके
प्रेम भटी का मधवा पिलाके मतवारी करलीनी रे
गोरी गोरी बय्यां हरी हरी चूरीयां
बय्यां पकड़ धरलीनी रे मोसे नैना मिलाएके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रेजवा
अपनी सी करलीनी रे मो से नैना मिलाएके
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये
मोहे सुहागन कीनी रे मो से नैना मिलाएके
. **********************
बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे मैं भर लाउं मधवा से मटकी ?
पनिया भरन को मैं जो गइ थी ।
दोड़ झपट मोरा मटकी पटकी ।
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये ।
लाज रखो मोरे घुंघट पट की ।
. *************
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी ।
सब सखियन में चुनर मेरी मैली,
देख हसें नर नारी, निजाम...
अबके बहार चुनर मोरी रंग दे,
पिया रखले लाज हमारी, निजाम....
सदका बाबा गंज शकर का,
रख ले लाज हमारी, निजाम...
कुतब, फरीद मिल आए बराती,
खुसरो राजदुलारी, निजाम...
कौउ सास कोउ ननद से झगड़े,
हमको आस तिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम...
. *************
--- अमीर ख़ुसरो
जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर ।
जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर ।
तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली तुम आय कर ।
जाना तलब तेरी करूँ दीगर तलब किसकी करूँ
तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर ।
मेरी जो मन तुम ने लिया, तुम उठा गम को दिया
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर ।
खुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर ।
. *********
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाएके
प्रेम भटी का मधवा पिलाके मतवारी करलीनी रे
गोरी गोरी बय्यां हरी हरी चूरीयां
बय्यां पकड़ धरलीनी रे मोसे नैना मिलाएके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रेजवा
अपनी सी करलीनी रे मो से नैना मिलाएके
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये
मोहे सुहागन कीनी रे मो से नैना मिलाएके
. **********************
बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे मैं भर लाउं मधवा से मटकी ?
पनिया भरन को मैं जो गइ थी ।
दोड़ झपट मोरा मटकी पटकी ।
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये ।
लाज रखो मोरे घुंघट पट की ।
. *************
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी ।
सब सखियन में चुनर मेरी मैली,
देख हसें नर नारी, निजाम...
अबके बहार चुनर मोरी रंग दे,
पिया रखले लाज हमारी, निजाम....
सदका बाबा गंज शकर का,
रख ले लाज हमारी, निजाम...
कुतब, फरीद मिल आए बराती,
खुसरो राजदुलारी, निजाम...
कौउ सास कोउ ननद से झगड़े,
हमको आस तिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम...
. *************
--- अमीर ख़ुसरो
29 मार्च 2019
सुख का दुख
जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दुख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं।
यहां एक बात
इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,
बड़े सुखों को देखकर
मेरे बच्चे सहम जाते हैं,
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें
सिखा दूं कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।
मगर नहीं
मैंने देखा है कि जब कभी
कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में
बाजार में या किसी के घर,
तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,
किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।
बल्कि कहना चाहिये
खुशी झलकी है, डर छा गया है,
उनका उठना उनका बैठना
कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,
और मुझे इतना दुख होता है देख कर
कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।
मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,
इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।
इस झूले के पेंग निराले हैं
बेशक इस पर झूलो,
मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते
खड़े खड़े ताकते हैं,
अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ
तो चीख मार कर भागते हैं।
बड़े बड़े सुखों की इच्छा
इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।
∼ भवानी प्रसाद मिश्र
इस बात का मुझे बड़ा दुख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं।
यहां एक बात
इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,
बड़े सुखों को देखकर
मेरे बच्चे सहम जाते हैं,
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें
सिखा दूं कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।
मगर नहीं
मैंने देखा है कि जब कभी
कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में
बाजार में या किसी के घर,
तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,
किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।
बल्कि कहना चाहिये
खुशी झलकी है, डर छा गया है,
उनका उठना उनका बैठना
कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,
और मुझे इतना दुख होता है देख कर
कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।
मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,
इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।
इस झूले के पेंग निराले हैं
बेशक इस पर झूलो,
मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते
खड़े खड़े ताकते हैं,
अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ
तो चीख मार कर भागते हैं।
बड़े बड़े सुखों की इच्छा
इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।
∼ भवानी प्रसाद मिश्र
20 मार्च 2019
Another day
Another day. I follow another path,
Enter the leafing woodland, visit the spring
Or the rocks where the roses bloom
Or search from a look-out, but nowhere
Love are you to be seen in the light of day
And down the wind go the words of our once so
Beneficent conversation...
Your beloved face has gone beyond my sight,
The music of your life is dying away
Beyond my hearing and all the songs
That worked a miracle of peace once on
My heart, where are they now? It was long ago,
So long and the youth I was has aged nor is
Even the earth that smiled at me then
The same. Farewell. Live with that word always.
For the soul goes from me to return to you
Day after day and my eyes shed tears that they
Cannot look over to where you are
And see you clearly ever again.
--- Friedrich Holderlin
Enter the leafing woodland, visit the spring
Or the rocks where the roses bloom
Or search from a look-out, but nowhere
Love are you to be seen in the light of day
And down the wind go the words of our once so
Beneficent conversation...
Your beloved face has gone beyond my sight,
The music of your life is dying away
Beyond my hearing and all the songs
That worked a miracle of peace once on
My heart, where are they now? It was long ago,
So long and the youth I was has aged nor is
Even the earth that smiled at me then
The same. Farewell. Live with that word always.
For the soul goes from me to return to you
Day after day and my eyes shed tears that they
Cannot look over to where you are
And see you clearly ever again.
--- Friedrich Holderlin
16 मार्च 2019
Masses
. . .When the battle was over,
and the fighter was dead, a man came toward him
and said to him: “Do not die; I love you so!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .And two came near, and told him again and again:
“Do not leave us! Courage! Return to life!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .Twenty arrived, a hundred, a thousand, five hundred thousand,
shouting: “So much love, and it can do nothing against death!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .Millions of persons stood around him,
all speaking the same thing: “Stay here, brother!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .Then all the men of the earth
stood around him; the corpse looked at them sadly, deeply moved;
he sat up slowly,
put his arms around the first man; started to walk. . .
--- Cesar Vallejo and translated by Robert Bly
and the fighter was dead, a man came toward him
and said to him: “Do not die; I love you so!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .And two came near, and told him again and again:
“Do not leave us! Courage! Return to life!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .Twenty arrived, a hundred, a thousand, five hundred thousand,
shouting: “So much love, and it can do nothing against death!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .Millions of persons stood around him,
all speaking the same thing: “Stay here, brother!”
But the corpse, it was sad! went on dying.
. . .Then all the men of the earth
stood around him; the corpse looked at them sadly, deeply moved;
he sat up slowly,
put his arms around the first man; started to walk. . .
--- Cesar Vallejo and translated by Robert Bly
1 मार्च 2019
मार्च ‘79 से
उन सब से ऊब कर
जिनके पास केवल शब्द होते हैं
केवल शब्द और कोई भाषा नहीं
मैं बर्फ से ढके द्वीप पर गया
जंगल की कोई भाषा नहीं होती
अनलिखे पन्ने सभी दिशाओं में फैले रहते हैं!
मुझे वहां बर्फ पर हिरन के खुरों के निशान दिखाई दिए
उन निशानों में भाषा थी पर शब्द नहीं थे
--- टॉमस ट्रांसट्रोमर, अनुवाद और प्रस्तुति : मोनिका कुमार
जिनके पास केवल शब्द होते हैं
केवल शब्द और कोई भाषा नहीं
मैं बर्फ से ढके द्वीप पर गया
जंगल की कोई भाषा नहीं होती
अनलिखे पन्ने सभी दिशाओं में फैले रहते हैं!
मुझे वहां बर्फ पर हिरन के खुरों के निशान दिखाई दिए
उन निशानों में भाषा थी पर शब्द नहीं थे
--- टॉमस ट्रांसट्रोमर, अनुवाद और प्रस्तुति : मोनिका कुमार
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