दुनिया मैं बादशाह है सो है वोह भी आदमी
और मुफलिस ओ गदा है सो है वोह भी आदमी
जार दर बे नवा है सो है वोह भी आदमी
नेमत जो खा रहा है सो है वोह भी आदमी
टुकड़े जो मांगता है सो है वोह भी आदमी
अब्दाल ओ कुतब ओ घुस ओ वाली आदमी हुई
मुनकर भी आदमी हुए और कुफ्र से भरे
क्या क्या करिश्मे कश्फ़ ओ करामत के किये
हद ता के अपने जोर ओ रियाज़त के जोर पे
खालिक से जा मिला है सो है वोह भी आदमी
फिर'औं ने किया था जो दावा खुदाई का
शाद्दाद भी बहिश्त बना कर हुआ खुदा
नमरूद भी खुदा ही कहाता था बार माला
यह बात है समझने की आगे कहूं मैं क्या
यां तक जो हूँ चूका है सो है वोह भी आदमी
यां आदमी ही नार है और आदमी ही नूर
यां आदमी ही पास है और आदमी ही दूर
कुल आदमी का हुस्न ओ काबा मिएँ है यान ज़हूर
शैतान भी आदमी है जो करता है मकर ओ जोर
और हादी, रहनुमा है सो है वोह भी आदमी
मस्जिद भी आदमी ने बने है यां मियां
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबा ख्वान
पढ़ते हैं आदमी ही नमाज़ और कुरान यां
और आदमी ही उन की चुराते हैं जूतियाँ
उनको जो ताड़ता है सो है वोह भी आदमी
यां आदमी पे जान को वारे है आदमी
और आदमी ही तेग से मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुन के दौड़ता है सो है वोह भी आदमी!
Here is an excerpt from "Aadmi Nama" ; Rediscovering Nazir Akbarabadi through Agra Bazaar.
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