“तुमने देखी है काशी?
जहाँ, जिस रास्ते
जाता है शव -
उसी रास्ते
आता है शव!
शवों का क्या
शव आएँगे,
शव जाएँगे -
और अगर हो भी तो
क्या फर्क पड़ेगा?
तुमने सिर्फ यही तो किया
शव को रास्ता दिया
और पूछा -
किसका है यह शव?
जिस किसी का था,
और किसका नहीं था,
कोई फर्क पड़ा?”
--- श्रीकान्त वर्मा
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