दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है
आप के ब'अद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
--- गुलज़ार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें