20 दिसंबर 2024

किराए का घर

किराए का घर बदलने पर
सिर्फ़ एक किराए का घर नहीं छूटता
उसके साथ एक किराने की दुकान भी छूट जाती है

कुछ भले पड़ोसी छूट जाते हैं
कुछ पेड़
कुछ पखेरू
एक सब्ज़ी की दुकान भी छूट जाती है
उन्हीं के पास

छूट जाते हैं
चाय के अड्डे
वहाँ की धूप-हवा-पानी
कुछ ठेले और खोमचे
वहीं छूट जाते हैं
जिन सड़कों पर सुबह-शाम चलते थे
अचानक उनका साथ छूट जाता है

हमारे लिए एक साथ कितना कुछ छूट जाता है
और उन सबके लिए
बस एक अकेला मैं छूटता होऊँगा

--- संदीप तिवारी

13 दिसंबर 2024

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें

तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें

प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें

घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ
इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें

--- वसीम बरेलवी

6 दिसंबर 2024

अयोध्या, 1992

हे राम,
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकाव्य!
तुम्हारे बस की नहीं
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सर - लाखों हाथ हैं,
और विभीषण भी अब
न जाने किसके साथ है।
इससे बड़ा क्या हो सकता है
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य
अयोध्या इस समय तुम्हारी अयोध्या नहीं
योद्धाओं की लंका है,
'मानस' तुम्हारा 'चरित' नहीं
चुनाव का डंका है!
हे राम, कहाँ यह समय
कहाँ तुम्हारा त्रेता युग,
कहाँ तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
और कहाँ यह नेता-युग!
सविनय निवेदन है प्रभु कि लौट जाओ
किसी पुराण - किसी धर्मग्रंथ में
सकुशल सपत्नीक...
अबके जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे वाल्मीक!