Oct 9, 2024

वसीयत वही लिखता है

"वसीयत वही लिखता है
जिसके पास जमा-पूँजी होती है
ग़रीब आदमी वसीयत नहीं लिखता--
वह अपने दुख की किताब लिख सकता था
कि उस पर क्या बीती
उसकी लड़ाई क्या थी
उसका समझौता क्या था
उसका विरोध क्या था
और वह कैसे अकेला छोड़ दिया गया
हम सबके द्वारा
कि उसने अन्त में हारकर
आत्महत्या कर ली।"

~ विनोद कुमार शुक्ल

Oct 2, 2024

उम्र में उस से बड़ी थी

उम्र में उस से बड़ी थी लेकिन पहले टूट के बिखरी मैं 
साहिल साहिल जज़्बे थे और दरिया दरिया पहुँची मैं 

शहर में उस के नाम के जितने शख़्स थे सब ही अच्छे थे 
सुब्ह-ए-सफ़र तो धुँद बहुत थी धूपें बन कर निकली में 

उस की हथेली के दामन में सारे मौसम सिमटे थे 
उस के हाथ में जागी मैं और उस के हाथ से उजली मैं 

इक मुट्ठी तारीकी में था इक मुट्ठी से बढ़ कर प्यार 
लम्स के जुगनू पल्लू बाँधे ज़ीना ज़ीना उतरी मैं 

उस के आँगन में खुलता था शहर-ए-मुराद का दरवाज़ा 
कुएँ के पास से ख़ाली गागर हाथ में ले कर पलटी मैं 

मैं ने जो सोचा था यूँ तो उस ने भी वही सोचा था 
दिन निकला तो वो भी नहीं था और मौजूद नहीं थी मैं 

लम्हा लम्हा जाँ पिघलेगी क़तरा क़तरा शब होगी 
अपने हाथ लरज़ते देखे अपने-आप ही संभली मैं

-किश्वर नाहिद

Sep 26, 2024

पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं

पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं
इस ज़माने के कई मीर मतब कर रहे हैं

कोई हमदर्द भरे शहर में बाक़ी हो तो हो
इस कड़े वक़्त में गुमराह तो सब कर रहे हैं

कहीं ख़तरे में न पड़ जाए बुज़ुर्गी अपनी
लोग इस ख़ौफ़ से छोटों का अदब कर रहे हैं

सब लिफ़ाफ़े की हुसूली के लिए हो रहा है
हम जो ये शग़्ल जो ये कार-ए-अदब कर रहे हैं

हर कोई जान हथेली पे लिए फिर रहा है
इन दिनों वो लब-ओ-रुख़्सार ग़ज़ब कर रहे हैं

--- शकील जमाली